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प्रकृति है तो संतति है और संस्कृति है- स्वामी चिदानन्द सरस्वती

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ऋषिकेश, 6 अक्टूबर। भारत में प्रत्येक वर्ष वन्यजीव सप्ताह 2 अक्टूबर से 8 अक्टूबर तक मनाया जाता है। इसका उद्देश्य जनसामान्य में वन्यजीवों के संरक्षण और उनकी सुरक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ायी जा सके।
भारत के जंगलों में वन्य प्राणियों की विभिन्न प्रजातियाँ पायी जाती हैं अतः उनके संरक्षण के लिये लोगों, परिवारों और प्रत्येक समुदायों को प्रकृति से जोड़ना, उनके अंदर प्राणियों के संरक्षण की भावना पैदा करना तथा वन्यजीवों व पर्यावरण की सुरक्षा के लिए जागरूक करना ताकि विलुप्त हो रही वनस्पतियों, पशु-पक्षियों एवं प्राणियों को बचाया जा सके।
परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती महाराज ने कहा कि मनुष्य प्रकृति, पर्यावरण और वन्यजीव एक-दूसरे से किसी न किसी रूप में जुड़े हुए हैं। पर्यावरण से ही मानव का जीवन सम्भव है और पर्यावरण को स्वच्छ, शुद्ध व साफ-सुथरा रखने के लिये वनस्पति, पक्षियों एवं वन्यजीवों की सुरक्षा करना आवश्यक है। वनस्पति और वन्य जीवन प्रकृति की अमूल्य धरोहर है।
औद्योगीकरण और शहरीकरण के कारण प्रतिदिन पर्यावरण प्रदूषण बढ़ रहा है, प्रदूषण को नियंत्रित करना बहुत जरूरी है। प्रदूषण को कम करने के लिये हमें अपनी जीवनशैली में छोटे-छोटे परिवर्तन करने होंगे, जिसमें प्रमुख रूप से एकल उपयोग प्लास्टिक का उपयोग न करें, शाकाहारी बनें, जितनी जरूरत हो उतनी वस्तुओं को खरीदें, वस्तुओं का पुनः उपयोग करने की आदत विकसित करें तभी प्रकृतिक चीजों के साथ संतुलन ला सकते है। पर्यावरण एवं   वन्यजीवों के बिना मनुष्य जीवन का अस्तित्व संकटग्रस्त हो सकता है इसलिए वन्यजीवों एवं वनस्पतियों के महत्व को समझना जरूरी है। प्रकृति से हमें जो भी प्राप्त हो रहा है, यथा जल, वायु, पेड़-पौधे, मिट्टी और वनस्पतियां और अन्य अनेक चीजें जो भी हमें प्राप्त हो रही है वह बहुत महत्वपूर्ण हैं और इसे हम बना नहीं सकते इसलिये इनका संरक्षण करना अति आवश्यक है। हमें एक बात हमेशा याद रखनी होगी प्रकृति है तो धरती पर मानव का जीवन सम्भव है। प्रकृति है तो संतति है और संस्कृति है।
मानवीय गतिविधियों के कारण लगभग 41 हजार से भी अधिक जीवों की प्रजातियां विलुप्त के कगार पर पहुंच गई हैं। अनेकों जीवों का  जीवन संकट में है। अगर हम इसी प्रकार प्रदूषण करते रहे, प्लास्टिक का उपयोग करते रहे तो प्रदूषण का स्तर और बढ़ते जायेगा जिससे विलुप्त हो रहे जीवों के साथ हमारा जीवन भी संकट में पड़ सकता है इसलिये आईये प्रकृति के साथ प्रकृतिमय जीवन जिये।

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