देहरादूनः सूबे की त्रिवेंद्र रावत सरकार अपने चार साल के कार्यकाल का पूरा हिसाब किताब आम जन के समक्ष रखने जा रही है। यह हिसाब ठीक चार साल पूरे होने पर 18 मार्च को दिया जायेगा। प्रदेशभर में कामों का लेखा जोखा रखने के लिए बाकायद जनपद स्तर पर आयोजन किए जाएंगे। अधिकारियों से लेकर विधायकों को भी इस आयोजन के लिए निर्देशित किया गया है। जाहिर तौर पर 18 मार्च को बातें कम काम ज्यादा के बैनर पर सूबे में सीएम त्रिवेंद्र का काम बोलेगा। और डंके की चोट पर बोलेगा।
ज्यादातर मामलों में यह देखा जाता रहा है कि चुनावी वर्ष में राजनैतिक दल विकास कामों का बेजा ढोल पीटते दिखते हैं। यानी विकास को शोर इस तरह किया जाता है जिसमें शोर तो बहुत सुनाई देता है लेकिन समझ में कुछ नहीं आता। दूर यदि ना भी जाएं तो कम से कम उत्तराखंड में इससे पूर्व सत्ता में आई सरकारों के कार्यकाल में तो ऐसा ही देखा गया। कभी शिक्षा के नाम के ढोल बजे तो कभी स्वास्थ्य के नाम। लेकिन यह सूबे में पहली बार हो रहा है जब सरकार स्वयं ही जनपद स्तर पर अपना रिपोर्ट कार्ड जनता के समक्ष रख रही है। इसके लिए खुद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने प्रदेश के सत्तर विधान सभाओं के सभी विधायकों को भी निर्देश जारी किए हैं कि उनके क्षेत्र में जो भी विकास कार्य हुए हैं उनका पूरा लेखा जोखा जनता के पटल पर पूरी पारदर्शिता के साथ रखें। विकास कामों को लेकर बाकायदा पुस्तिका प्रकाशित की जाएगी।
भाजपा के शीर्ष नेता और देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीति का अनुपालन करते हुए उत्तराखंड में भी यह पहली बार होगा जब कोई सरकार अपने चार साल के काम काज का हिसाब किताब जनता के समक्ष रखेगी। सरकार के इस फंडे से सिस्टम के अमले की भी सुस्ती गायब है। उन्हें भी निर्धारित समय तक लक्ष्य हासिल करने हैं। जिन क्षेत्रों में किसी वजह से लेट लतीफी हुई वहां अधिकारियों में काम पूरा करने की चिंता भी है। यानी कुल मिलाकर सरकार के इस कार्यक्रम ने उन कामों को भी गति दे दी है जो सिस्टम के उदासीन रवैए से लंबित हो जाती थी। जनता के समक्ष जब कार्यक्रम होगा तो इससे कागजों में होने के वाले कामों का छद्म भी सामने आने का भय भी उस चलन को रहेगा जो ना तो जनता के हित में होता है और ना सरकार के।
चार साल का कार्यकाल पूरा करने पर पहली बार कोई सरकार अपने काम का डंका जनता के सामने पीटने जा रही है। जाहिर तौर पर जनता के सामने जो दावे होंगे उनमें झूठ की गुंजाइश अपेक्षाकृत कम रहती है। जनता के सामने हवाई दावे भी नहीं हो पायेंगे। और जमीनी दावों के बूते ही त्रिवेंद्र सरकार चार साल के लेखे जोखे को लेकर सीना ठोक रही है।
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