मोरारीबापू द्वारा पुंडरीक आश्रम-वृंदावन में आज से नौ दिवसीय रामकथा।
भगवत्-चरणारविन्दों से अंकित व्रज मंडल विशिष्ट तीर्थस्थान हैं। यहां
गुजरात के मोरारीबापू के श्री मुख से वृंदावन के पुंडरीक आश्रम में २० मार्च से २८ मार्च तक रामचरितमानस कथा का गान आयोजित हुआ है। मोरारीबापू के कुल कथाक्रम की यह 857 वीं कथा है। आपके व्यासासन में मथुरा, वृंदावन में गाई जाने वाली आपकी यह नवमी कथा है। बापू ने अपनी १४ साल की उम्र से रामकथा का गान आरंभ किया था। छह दशक से भी अधिक समय से विश्व के १७० राष्ट्र में अपने श्री मुख से रामकथा का गान किया है। बापू का श्रीकृष्ण के प्रति पहले से बहुत गहरा भाव रहा है। राम कथा कहते कहते वे कृष्ण कथा में सहज ही उतर जाते हैं। फिर श्रीकृष्ण कथा से बाहर निकलना उनके लिए बड़ा मुश्किल हो जाता है। आह्लाद और अश्रू से भीगी उनकी कृष्ण कथा सुनना भी एक परम सौभाग्य है। बापू निंबार्कीय परंपरा से हैं इसलिए श्रीकृष्ण के प्रति उनकी सहज प्रीति स्वाभाविक है। श्रीरामचरितमानस और भगवद् गीता नित्य सेवन करते हैं। आज से नौ दिन तक हम बापू की सत्संग सरिता में अवगाहन करेंगे।
पूज्य स्वामी कार्ष्णि गुरु शरणानंदजी महाराज के पावन सन्निधि में, श्री पुंडरीक गोस्वामी महाराज की पावन उपस्थिति में,पूज्य संतों की उपस्थिति में, कोरोना के प्रोटोकॉल के अनुरूप सीमित संख्या के श्रोतागण के बीच, रामकथा का मंगलाचरण हुआ। प्रारंभ में श्री पुंडरीक जी ने अपनी पावन परंपरा के महापुरुषों को हृदय में रखते हुए बापू के प्रति अपना अनूठा भाव प्रदर्शित किया। आपने १९९३ में अपने गुरुदेव महुवा गए थे और दक्षिणा में बापू की कथा लेकर आए थे। इस प्रसंग का पावन संस्मरण करते हुए, उनके ही पदचिह्नों पर चलते हुए बापू की कथा का आपने समायोजन किया है, ऐसा आपने बताया। उन दिनों के अपने गुरुदेव और पिताश्री के आशीर्वादक अमृत वचनों को ध्वनि यंत्र माध्यम द्वारा विनम्रता से आज फिर से परिवर्षण करवाया। तत्पश्चात्, श्री कार्ष्णि गुरु स्वामी शरणानंदजी ने पूर्ववत् अपना प्रेम-योग बापू के प्रति प्रकट किया। वक्ता और श्रोता की पूरी परंपरा को वंदन करते हुए उन्होंने अपने आशीर्वाद की वर्षा की।
कथा के प्रारंभ में पूज्य बापू ने कहा, मैं, ये कथा, पांच दादाओं की अनुकंपा और आशीर्वाद के साथ प्रारंभ कर रहा हूं। बापू ने कहा कि वृंदावन प्रेम देता है। अगर वृंदावन प्रेम न दे तो वृंदावन वृंदावन नहीं है। अयोध्या सत्य न दे तो अयोध्या अयोध्या नहीं है और कैलाश करुणा ना दे तो कैलाश कैलाश नहीं है यही मेरी त्रिवेणी है।
प्रथम दिन की कथा की परंपरा निभाते हुए बापू ने रामचरितमानस की महिमा का गान किया। इसके साथ बापू ने प्रथम दिन की कथा को विराम दिया।
इस कथा के निमित्त मात्र यजमान श्री शुभोदय बजोरिया है। उनके पिताजी स्वर्गीय श्री रमाशंकर बजोरिया जी कई सालों से मोरारीबापू की व्यासपीठ से जुड़े रहे। श्री वृंदावन में छटीकरा रोड पर स्थित वैजयंती आश्रम, पुंडरीक आश्रम में २० मार्च शाम ४ से ७ बजे तक और २१ से २८ मार्च तक सुबह नौ बजे से दोपहर देढ़ बजे तक कथा गान होगा। आस्था चैनल और चित्रकूट धाम-तालगाजरडा के यूट्यूब के माध्यम से कथाप्रेमी रामकथा का श्रवण कर पाएंगे।
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