गंभीर पेयजल संकट की ओर बढ़ रहे है उत्तराखंड के जिले
दर्जनों नदियों का उदगम क्षेत्र होने के बावजूद उत्तराखंड धीरे-धीरे गंभीर पेयजल संकट की ओर बढ़ रहा है. उत्तराखंड के अर्बन एरिया के ही आंकडे अगर उठकर देखें तो मांग के अनुरूप प्रतिदिन 13 करोड़ लीटर से भी ज्यादा पानी की कमी बनी हुई है. पहाडों में अल्मोड़ा तो मैदान में ऊधमसिंह नगर सबसे अधिक जल संकट से जूझ रहे हैं. उत्तराखंड में 917 छोटे-बड़े ग्लेशियरों से दर्जनों बारहमासा बहने वाली नदियां निकलती हैं जो देश के कई राज्यों को भी पीने का पानी देती हैं , लेकिन खुद उत्तराखंड पानी के संकट से जूझ रहा है. उत्तराखंड के अर्बन एरिया के 92 छोटे-बडे़ शहरों को प्रतिदिन 701 मिलियन लीटरर्स पानी चाहिए होता है, लेकिन इन शहरों को कुल 567 मिलियन लीटर पानी ही मिल पाता है. यानि की प्रतिदिन के हिसाब से 133 मिलियन लीटर पानी की कमी बनी हुई है. एक मिलियन लीटर का मतलब होता है दस लाख लीटर पानी. मांग के अनुरूप करीब 13 करोड़ लीटर पानी और चाहिए , जिसकी आपूर्ति नहीं हो पा रही है. इसने गर्मियों के मददेनजर जल संस्थान की चिंता बढ़ा दी है
मैदान से ऊधमसिंह नगर और पहाड़ से अल्मोड़ा में सबसे अधिक जल संकट है. ऊधमसिंह नगर में प्रतिदिन 27 मिलियन लीटर पानी की जगह दस मिलियन लीटर पानी ही मिल पा रहा है. हालांकि जल संस्थान की महाप्रबंधक नीलिमा गर्ग का कहना है कि यहां हैंडपंप और टयूबवेल अधिक होने के कारण अधिकांश आपूर्ति इनसे हो जाती है. अल्मोडा में प्रतिदिन 21 मिलियन लीटर पानी की मांग के अनुरूप महज आठ मिलियन लीटर पानी ही मिल पा रहा है. ठीक इसी तरह देहरादून, हल्द्वानी,पौड़ी, पिथौरागढ़ में भी मांग के अनुरूप पानी उपलब्ध नहीं है.
इसके विपरीत लक्सर, सतपुली, कोटद्वार, झबरेडा, स्वर्गाश्रम, श्रीनगर, डोईवाला,ऋषिकेश ऐसे क्षेत्र भी हैं, जहां लोगों को पर्याप्त पानी मिल रहा है. जल संकट से निपटने के लिए विभाग चालू योजनाओं को अपग्रेड करने की भी योजना बना रहा है लेकिन, ये अभी प्रस्ताव तक ही सीमित हैं. बहरहाल, सूखते जल स्रोत, अंडरग्राऊंड वाटर का गिरता स्तर भविष्य में गहराते जल संकट की चेतावनी दे रहा है.
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