लो जी चले गए डीजी सूचना मेहरबान सिंह बिष्ट! अधिकारियों का आना और जाना सत्ता चलाने वालों पर निर्भर करता है। नए मुख्यमंत्री बने तो साफ था कि शासन के बड़े अधिकारियों के विभागों में फेरबदल होगा। सरकार के बड़े विभागों में सूचना एवं लोक संपर्क विभाग आता है, क्योंकि सरकार के प्रचार प्रसार का जिम्मा इसी विभाग पर होता है। खैर, छोड़िए ये सारी बातें। शोसल मीडिया पर अचानक सूचना महानिदेशक डॉ. मेहरबान सिंह बिष्ट के खिलाफ एक मुहिम सी चलाई गई । इस मुहिम में नए सीएम को संबोधित कर कहा गया कि डीजी सूचना को हटाओ। इस अपील का कोई आधार ही नहीं था। आधार हीन अपील को फेसबुक पर वायरल किया गया जिसने पोस्ट डाली और जिन्होंने उस पर कमेंट कर उसे शेयर किया वो एक बात जरूर साफ करते है कि यह मुहिम एक पहा़ड़ी के विरुद्ध थी।
डॉ. मेहरबान सिंह बिष्ट सूचना के महानिदेशक रहें या न रहें ये तो फैसला सत्ता के आदेश पर शासन को करना होता है, लेकिन उनके दामन पर काले छीटें लगाने का अधिकार इन तथाकथित चौथे खंभे के कुकुरमुत्तों को किसने दिया?
फेसबुकिया पत्रकारिता आज से नहीं पिछले 8 सालों से चरम पर है लेकिन फेसबुक पर ऐसे लोगों की भी भरमार है जो बहुत जरुरी जीनकीरियां साझा करते हैं, जनता को जागरूक करते हैं, जनता की बात उठाते हैं, जन मुद्दों पर बडे़ फैसले करवाने को भी मजबूर करते हैं। लेकिन बाढ़ उन शैवालों की है जो किसी को दागदार बनाने के लिए इस टूल का इस्तेमाल करते हैं।
डॉ मेहरबान सिंह बिष्ट के मामले में भी कुछ इसी तरह की बातें मेरे समझ में आती हैं। मैं दावे के साथ कहता हूं कि डॉ. मेहरबान सिंह बिष्ट को जो लोग शोसल मीडिया पर भ्रष्ट कह रहे हैं या उनको भ्रष्ट कहलवाने का प्रयास कर रहे हैं वो लोग एक भी प्रमाण लाकर इसी शोसल मीडिया पर रखें। सूचना विभाग के महानिदेशक के तौर पर डॉ. मेहरबान सिंह बिष्ट ने किस तरह का भ्रष्टाचार किया उसका प्रमाण दें।
किसी को भी बिना किसी प्रमाण के भ्रष्ट कहना एक बड़ी प्रताड़ना देना है। और किसी को भी प्रताड़ित करने एक जुर्म है।
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