राज्य आंदोलनकारी भावना पांडे ने ठोकी ताल, हल्द्वानी से लड़ेंगी चुनाव
हल्द्वानी से भावनात्मक लगाव, जनभावनाओं की करेंगी कद्र
जनाकांक्षाओं में असफल जनप्रतिनिधियों पर चुनाव लड़ने पर लगे प्रतिबंध
देहरादून। राज्य आंदोलनकारी भावना पांडे ने अगले विधानसभा चुनाव में हल्द्वानी सीट से चुनाव लड़ने की घोषणा की है। उन्होंने कहा कि हल्द्वानी के लोगों ने उनसे यहां से चुनाव लड़ने की मांग की है। जनता की भावनाओं को देखते हुए उन्होंने इस सीट से चुनाव लड़ना तय किया है। उन्होंने बताया कि हल्द्वानी से उनका बचपन से ही नाता रहा है और जल्द ही वो हल्द्वानी में अपना कार्यालय खोलेंगी।
राज्य आंदोनकारी भावना पांडे इन दिनों तीसरे विकल्प की तैयारी में जुटी हैं। जल्द ही वे प्रदेश में एक नई पार्टी का गठन करने जा रही हैं। भावना पांडे ने हल्द्वानी सीट से विधानसभा चुनाव लड़ने की घोषणा के दौरान बताया कि वो स्वयं चुनाव नहीं लड़ना चाहती थीं। वो चाहती थी कि उनके दल के 50 उम्मीदवार चुनाव लड़ें और वो एक साथ इन सभी सीटों पर अपने उम्मीदवारों का प्रचार-प्रसार करें, लेकिन हल्द्वानी से लगातार लोग उनके पास आ रहे हैं। भावना पांडे के अनुसार इन लोगों का कहना है कि इंदिरा हृदयेश अब बुजुर्ग हो चुकी हैं। उनके बेटे को जनता स्वीकार नहीं करेगी। भाजपा के नेता रौतेला में दमखम नहंी है। ऐसे में हल्द्वानी शहर राजनीतिक तौर पर वीरान हो जाएगा। भावना पांडे के मुताबिक जनता की मांग को देखते हुए और जनभावनाओं की कद्र करते हुए उन्होंने हल्द्वानी सीट से चुनाव लड़ने का फैसला किया है।
राज्य आंदोलनकारी भावना पांडे के अनुसार उनको 16 साल की उम्र में हल्द्वानी छोड़कर विभिन्न शहरों में नौकरी के लिए जाना पड़ा। लेकिन वो जब भी हल्द्वानी आती तो घंटों रिक्शे में बैठकर शहर भ्रमण करतीं। वो भावुक होकर बताती हैं कि नानक स्वीट्स, सब्जी मंडी से लेकर शहर के विभिन्न हिस्सों में घूमती। वो कहती हैं कि हल्द्वानी शहर की मिट्टी की सौंधी महक उनकी सांसों में बसी हैं। उनका हल्द्वानी से भावनात्मक लगाव है। ऐसे में जब लोगों ने उनसे हल्द्वानी से चुनाव लड़ने की बात कही तो वो इंकार नहीं कर सकीं। उन्होंने बताया कि जल्द ही काठगोदाम रोड पर स्थित मयूर होटल में अपना कार्यालय खोलेंगी।
राज्य आंदोलनकारी भावना पांडे ने सांसदों और विधायकों द्वारा विधायक निधि खर्च न करने पर घोर आपत्ति जतायी। उन्होंने कहा कि विकास कार्यों के लिए ही सांसद या विधायक चुने जाते हैं, लेकिन जब वो विकास नहंी करेंगे तो उन्हें असफल घोषित कर देना चाहिए। उन्होंने कहा कि निशंक ने अपनी सांसद निधि का शून्य प्रतिशत खर्च किया तो गढ़वाल सांसद तीरथ सिंह रावत ने महज 8 प्रतिशत खर्च किया। उन्होंने केंद्र व राज्य सरकारों से पूछा कि जब एक बच्चे को होमवर्क न करने और परीक्षा में सही उत्तर न देने पर फेल कर दिया जाता है तो यह नियम जनप्रतिनिधियों पर लागू क्यों नहीं होता? उन्होंने कहा कि जो जनप्रतिनिधि जनाकांक्षाओं पर खरे नहीं उतरते हैं तो उनके चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया जाना चाहिए।
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