रावत पूरे पांच साल नही अब त्रिवेंद्र रावत पूरे पांच साल ..
कुलदीप एस राणा
कुछ वर्ष पहले उत्तराखंड की सियासत में यह वाक्य खूब चर्चा में रहा “रावत पूरे पांच साल” । जो कि बदलते समय के साथ “त्रिवेंद्र रावत पूरे पांच साल में” परिवर्तित होता दिख रहा है। तमाम अटकलों के बावजूद त्रिवेंद्र रावत अटल है।
विगत चार वर्षों में त्रिवेंद्र रावत ने अपने राजनीतिक विरोधियों को यह बात दिया है वह गली-गली में जाकर भुट्टे-पकोड़े तलने वाले मुख्यमंत्री नही है। और न ही उन्हें सत्ता के लिए राजनीति की चाशनी में उत्तराखंड के विकास के मुद्दों की जलेबी बनानी है। वह बात कम और काम ज्यादा करने में यकीन रखने वाले मुख्यमंत्री हैं। इसलिए वह बेबाक है।वह राज्य के विकास के मुद्दों को राजनीतिक लाभ हानि के तराजू में नही तौलते हैं, उन्हें राज्यहित में जो सही लगता है वह बेख़ौफ़ होकर निर्णय करते हैं। वह सस्ती पब्लिसिटी के पीछे भागने वाले वाले नेता भी नही लगते है। और न ही वह सोशल मीडिया के सेल्फी वाले नेता है। उनके नाम को चर्चा में रखने के लिए उनके विरोधी की काफी है जो त्रिवेंद्र रावत की निर्णय लेने की क्षमता के कायल है। जिनमे वरिष्ठ कांग्रेसी एवं सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत भी शामिल है।
इसमे कोई दोराय नही है कि त्रिवेंद्र सिंह रावत ने राज्य हित मे अनेक बेबाक निर्णय लिए है। उनमे विकट परिस्थितियों में अपनी नेतृत्व क्षमता का प्रदर्शन भी किया है। चाहे वह कोरोना काल हो या हाल ही में जोशीमठ के रैणी गांव में ग्लेशियर टूटने से उत्पन्न आपदा के हालात। त्रिवेंद्र रावत जनता की उम्मीदों पर खरा उतरने को प्रयासरत दिखे है।
विगत 20 वर्षों में उत्तराखंड राज्य ने अनेक आपदायें देखी और तत्कालीन नेतृत्व को भी परखा है। उत्तराखंड देश का एक मात्र राज्य है जहां केंद्र की स्वास्थ्य बीमा योजना का लाभ पूरे राज्यवासियों को दिया जा रहा है, त्रिवेंद्र रावत ने अटल आयुष्मान के नाम से बीमा योजना में पूरे राज्यवासियों को शामिल कर उत्तराखंड के प्रत्येक परिवार की स्वास्थ्य सुरक्षा प्रदान करने का कार्य किया है। जबकि केंद्र से मात्र गरीब परिवार को इसमे शामिल किया गया है शेष परिवारों का खर्च राज्य सरकार स्वयं वहन कर रही है। अब उत्तराखंड सचिवालय के चौथे तल पर अब चाय पानी में करोड़ों रुपये फूंकने की खबरे अखबारों में नही दिखती है। भ्र्ष्टाचार पर आईएएस अधिकारियों को सस्पेंड करने की हिम्मत राजनीति के पंडित कहे जा के वाले पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय नारायण दत्त तिवारी भी नही जुटा पाए थे। एनएच 74 वाले मामले प्रथम द्रष्टया दोषी पाये जाने पर दो आईएएस अधिकारियों को सस्पेंड करने वाला त्रिवेंद्र रावत सूबे का पहला मुख्यमंत्री है। उक्त प्रकरण में अनेक आरोपी आज भी जेल में है। आयुर्वेदिक विवि का पूर्व कुलसचिव मृत्युंजय मिश्रा प्रकरण कौन भूल सकता है जो आज भी सलाखों के पीछे है।
राजनीति में सत्ता की कोठरी काजल से भरी मानी गयी है किंतु विगत चार सालों में त्रिवेंद्र रावत ने अपने विरोधियों को यह बता दी है कि काजल से भरी राजनीति की कोठरी से बेदाग निकलने का हुनर वह जानते है।
चार साल में त्रिवेंद्र रावत ने अपनी तरफ से उत्तराखंड के विकास से जुड़े हर मुद्दे को हल करने का प्रयास किया है जिनमे अधिकांश में वह सफल भी हुए है। त्रिवेंद्र रावत का यह कहना कि सम्पूर्ण राज्य की निगाहें हम पर है सारा राज्य आशा भरी नजर से हमे देंख रहा है से स्पस्ट झलकता है कि वह जनमानस के अंतर्मन को समझते है। गैरसैंण को उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने का निर्णय से इसका अंदाजा लगाया ही जा सकता है। गैरसैंण पर राजनीति तो दोनो दलों के नेताओं ने की किन्तु राज्यहित एवं राज्यवासियों की भावना को राजनीति से ऊपर रख कर निर्णय सिर्फ त्रिवेंद्र सिंह रावत ने लिया। राज्य निर्माण के बाद से ही पटरी से उतर चुकी राज्य की शासन व्यवस्था को पुनः पटरी पर लाने का दम त्रिवेंद्र रावत ने दिखाया है। नीति आयोग के नवाचार सुचिकांक में उत्तराखंड का नाम आना इस बात का प्रमाण है। हालांकि अब भी सुधार का सफर काफी लंबा है। परंतु त्रिवेंद्र रावत के आत्मविस्वास को देखकर लगता नही की सत्ता परिवर्तन जैसी नकारात्मक अपवाहों से वह विचलित होने वाले है। वह अपना कार्यकाल पूरा करके ही रहेंगे। देखा जाए तो उत्तराखंड के समग्र विकास के लिए यह जरूरी भी प्रतीत होता है क्योंकि अतीत में सत्ता परिवर्तन से इस राज्य को क्या मिला है यह प्रत्येक राज्यवासी अच्छी तरह आए जानता है।
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