खंडहर जो कल तक डराते थे, वह अब मन को खूब भाते हैं !
कह सकते हैं कि खण्डहर_अच्छे_हैं….
शशिभूषण मैठाणी (पारस)
खण्डहर एक ऐसा शब्द है जो जहन में आते ही शरीर में सिहरन पैदा कर देता है । खण्डहर का अर्थ किसी पुराना घर से अथवा हवेली से है । जहां पर लंबे समय से कोई आता-जाता नहीं है । और वह रखरखाव की कमी में धीरे-धीरे उजड़ने लगता है या बुरी तरह से उजड़ा चुका होता है । बीतते समय के साथ ऐसे घरों में इंसानों के बजाय खुंखार एवं जहरीले जानवरों का डेरा बसने लगता है । भूत-प्रेत, सांप, कौआ,चमगादड़ के लिए तो ऐसे खण्डहर सबसे मुफ़ीद जगहें मानी जाती हैं ।
हर रोज जैसे-जैसे अंधेरा छाने लगता है तो बस्तियों के बीच के खण्डहर भूतहा लगने लगते हैं । इन खंडहरों के आसपास से गुजरते वक़्त मन में अनेकों अनेक बुरे खयालात पनपने लगते हैं और बदन में एक अज़ीब झुरझुर्री सी उठने लगती है । जिस कारण खण्डहरों के बीच बचे खुचे लोग भी हर रात एक खौफ के साए में जीने को मजबूर रहते हैं ।
चाहे बात देश की हो या दुनियाँ की हर जगह वीरान पड़े खण्डहरों को अशुभ संकेत ही माना जाता है । विभिन्न धर्मों में उल्लेख मिलता है कि, जिस-जिस ने भी अपनी पैतृक सम्प्पति को अपनी आंखों के सामने बंजर बनाया है, उसे एक निश्चित समय के पश्चात स्वाभाविक रूप से बुरे परिणाम भी भुगतने पड़ते हैं । अच्छे खासे तरक्की कर रहे परिवारों की रौनक धीरे-धीरे क्षीण होने लगती है । और ऐसे एक नहीं अनेकों उदाहरण हमारे आसपास मौजूद हैं । इसलिए हर व्यक्ति को चाहिए कि वह अपने मूल का समूल नाश न करे, वक़्त रहते उसे संरक्षित करे, संवर्धित करे । कम से कम खंडहर हो रहे अपने पैतृक मकानों को ससम्मान जमींदोज करें, उसके एक-एक पत्थर लकड़ी को खोलकर अलग-अलग करें और भूमि को समतल कर दे । फिर उस समतल भूमि के ऊपर फलदार पौधों का रोपण कर दें या फिर खण्डहर हो रहे भवन का जीर्णोद्धार करें और सुसज्जित करें, अपनी स्मृतियों को संजोए । और आने वाली पीढ़ी को उसके महत्व को समझाएं । गांवों के यह मकान एक ढाँचामात्र नहीं है, बल्कि यह आपके जीवन के संघर्षों व तरक्की की एक-एक कहानी को स्वयं समेटे हुए होते हैं । खंडहरों मे नकारात्मक शक्तियों का वास होता है, इसलिए इन बुलंद भवनों को खण्डहर होने से बचाएं अपनी रचनात्मकता का परिचय देकर अपने आसपास के समाज में सकारात्मक भूमिका निभाएं ।
■मैठाणा डॉक्टर विनोद कोठियाल ने जर्जर भवन को हवेली बना डाला :
“फिर से सजने लगा है बड़खौला..” बीते दो-तीन दशकों में उत्तराखण्ड के पहाड़ों में तेजी से बीरान हुए हजारों गांवों में अब आशा की नई किरण दिखाई देने लगी है । यहां अब सुनसान हुए गांव, खंडहर हुए मकानों में फिर रौनक लौटने लगी है ।
आप लोगों ने अगर बीते वर्ष 2020 माह अगस्त में मेरी एक रिपोर्ट पढ़ी होगी तो, आपको ध्यान होगा कि मैंने उसमें अपने गांव के मदन कोठियाल जी के शानदार प्रयासों का जिक्र करते हुए एक रिपोर्ट लिखी थी । उसी दरमियान में गांव में अलग-अलग भवनों की फोटो अपने मोबाइल में कैद कर आया था । जिनमें से अधिकांश भवन बुरी तरह ढह गए थे तो कुछ आज भी अपनी स्वर्णिम गाथा के साथ जीर्णशीर्ण हालात खड़े थे । ऐसा ही एक मकान था डॉक्टर विनोद कोठियाल जी व एडवोकेट दिनेश कोठियाल जी मैं नवम्बर 2020 में देहरादून आया तो मेरी मुलाकात मेरी बड़ी बहिन के घर डॉक्टर विनोद कोठियाल भैजी के साथ हो गई ।
मैंने उन्हें जानकारी दी कि आपका मकान बहुत दयनीय हालत में है और एक तरफ झुक गया है । आने वाली बरसात या हल्के भूकंप में वह गिर सकता है । जिस कारण बड़खौला के ठीक नीचे वेदाखौला के मकानों को भारी नुकसान के अलावा जानमाल का भी नुकसान हो सकता है । मुझे डॉक्टर विनोद भैजी ने कहा कि भुल्ला तू सही कह रहा है, मुझे मकान ठीक करना है और अब वहीं रहना भी है, मेरा बड़ा लगाव है घर से ।
तब मुझे डॉक्टर विनोद की बातों पर यकीन नहीं हुआ । क्योंकि आज आप दिल्ली, मुम्बई, चंडीगढ़, देहरादून के अलावा किसी भी अन्य शहरों में रह रहे पहाड़ियों से कहें कि गांव चलो, तो वह अपने गांव प्रेम पर अपनी सारी भावनाएं उस वक़्त आपके सामनी उड़ेल देता हैं । और ऐसा लगता है कि यह व्यक्ति बस दो चार दिन में ही शहर छोड़, गांव में अपने पुश्तैनी मकान को जागृत करने चल पड़ेगा । क्योंकि ऐसा बहुत कम हम पहाड़ी करते हैं जो बातें कम और धरातल पर काम ज्यादा कर दिखाते हैं ।
लेकिन यहां मैंने अपनी इसी पूर्व धारणा के उलट डॉक्टर विनोद कोठियाल जी व्यवहार को पाया । सबसे पहले तो मैं डॉक्टर विनोद भैजी के रचनात्मक, सकारात्मक व्यवहार को सल्यूट करता हूँ, और उन्हें कोटि-कोटि प्रणाम करता हूँ कि उन्होंने गांव के अन्य लोगों के सामने एक शानदार उदाहरण प्रस्तुत करने के साथ-साथ नई उमंग भर दी है ।
यहां फोटो में देखिए ! यह वही मकान है जो 5 महीने पहले तक जर्जर हालत में था उसे हमारे डॉक्टर साहब ने शहर से वापस गांव लौटकर वापस शानदार हवेली में तब्दील कर दिया है ।
■अब पूरे पहाड़ में लौटने लगे हैं बड़ी संख्या में लोग :
एक समय में जो लोग रोजी रोटी के जुगाड़ में अपने घर, गांवों को छोड़कर पहाड़ों से मैदानों की ओर पलायन कर चुके थे, वह अब फिर से अपनी जड़ों को वापस मजबूत करने लौट रहे हैं । और यह समूचे प्रदेश के लिए खासकर सीमांत क्षेत्रों के लिए सुखद पहलू है । यह बात भी सच है कि कोरोना महामारी ने दुनियाभर के इंसानों को वापस पटरी पर लाने का काम किया है । जीवनशैली में अनावश्यक बदलाव ले लाया इंसान काफी हद तक अब बाह्य आडम्बर छोड़ वास्तविक जीवन जीने लगा है ।
इसका सबसे बड़ा लाभ हुआ उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों को । घरों से सैकड़ों हजारों किलोमीटर दूर शहरों में जाकर महज 10 से 30 हजार रुपया महीने कमाने वाले अधिकांश युवक गांवों की ओर लौट आए हैं । और सभी ने अपने-अपने स्तर से रोजगार के छोटे बड़े साधन भी अपने-अपने कौशल के अनुरूप जुटा लिए हैं । गांवों की ओर लौटने के क्रम में राह ताकते बुजुर्गों का इंतजार भी समाप्त हुआ है ।
पहाड़ों में वीरान गाँवों व खंडहर होते मकानों को फिर से आबाद करने का काम तेजी से होने लगा है । वो दिन दूर नहीं जब उत्तराखंड अपने पहाड़ी संस्कृति खान-पान व रहन-सहन के लिए पार्टन के क्षेत्र में नए कीर्तिमान स्थापित करेगा । मैं आशावादी व्यक्ति रहा हूँ हमेशा से, मुझे लगता है कि आने वाले महज 10 वर्षों में पहाड़ों का भाग्य तेजी से बदलने वाला है । बस जरूरत है तो नकारात्मक सोच छोड़ रचनात्मकता के साथ सकारात्मक प्रयासों पर ध्यान देने की ।
अब नई पीढ़ी के पढ़े लिखे नौजवान अपने पुराने घरों को त्यागने का मन पीछे छोड़ आगे बढ़ रहे हैं ।
यह संकेत दे रहा है कि अब हर पहाड़ी, पहाड़ को आबाद करने के लिए अपने-अपने हिस्से की हिस्सेदारी में भागीदार बनने जा रहा है । हर पहाड़ी पुराने विचारों और पुराने जमाने को पीछे छोड़, नई उम्मीद नई उमंग के साथ नवाचार को अपना रहे हैं ।
आज का पहाड़ी पुराने व बुरे ख़यालों को पीछे छोड़कर पुरानी समृद्ध पहाड़ी संस्कृति व परम्पराओं को आत्मसात कर नए विचारों के साथ अपने जीवन मे लगातार बदलाव लाने की कोशिश कर रहे हैं ।
पहाड़ी युवाओं के यह सपने उनके जीवन मे नई जीवन शैली को स्थापित करने के भी संकेत देते देते हैं ।
अन्त में…
“दाग अच्छे हैं की तर्ज पर लिखना चाहूंगा कि यह खण्डहर भी अच्छे हैं ।”
क्योंकि अब पहाड़ों के इन खण्डहरों से ही बदलेगी तेजी से तक़दीर ।
#शशि_भूषण_मैठाणी_पारस
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