उत्तरकाशी की इंद्रावती नदी के उद्गम व 9 रिचार्ज जोन की खोज हुई पूरी
उत्तरकाशी : हिमालयी राज्य में दम तोड़ती जा रही गैरहिमानी नदियों को विज्ञानी तकनीक से संवारने की दिशा में तेजी से काम हो रहा है। कुमाऊं में पांच प्रमुख नदियों को बचाने में जुटे कोसी पुनर्जनन महा अभियान के अगुवा प्रो. जीवन सिंह रावत ने एक और भगीरथ प्रयास शुरू कर दिया है। उत्तरकाशी (गढ़वाल) में महानदी भागीरथी की सहायक इंद्रावती पर शोध कर उन्होंने इसके उद्गम व नौ रिचार्ज जोन खोज लिए हैं। भौगोलिक सूचना विज्ञान (जीआइएस) की मदद से माइक्रोप्लान व मानचित्र भी तैयार किए जा चुके हैं। ताकि यांत्रिक व जैविक उपचार के जरिये वर्षाजल को सहेज कर इंद्रावती की सूखती कोख को फिर से भरा जा सके।
कुमाऊं में जीवनदायिनी कोसी, गरुड़ गंगा, कुंजगढ़, सिरौतागाढ़ व शिप्रानदी के बाद अब गढ़वाल में गैरहिमानी इंद्रावती का जीआइएस तकनीक से उद्धार किया जाएगा। नेशनल जीयो स्पेशल चेयरप्रोफेसर (विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी) एवं जल विशेषज्ञ सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय अल्मोड़ा के प्रो. जीवन सिंह रावत ने डीएम उत्तरकाशी मयूर दीक्षित की पहल पर जीआइएस मानचित्र व माइक्रोप्लान तैयार कर शोध रिपोर्ट उन्हें भेज दी है।
शोध में खुले ये रहस्य
गढ़वाल में गैरहिमानी इंद्रावती पर प्रो. जीवन सिंह रावत के इस पहले शोध ने कई राज खोले हैं तो नदी पुनर्जनन की राह भी दिखाई है। इंद्रावती का जलागम क्षेत्र 49.25 वर्ग किमी में फैला है। किसी दौर में यह सदानीरा भटवाड़ी ब्लॉक के 29 गांवों की करीब 8500 आबादी की प्यास बुझा 25.59 फीसद कृषि भूमि (12.60 वर्ग किमी) को सींचती थी। जलागम में 69.11 प्रतिशत (34.035 वर्ग किमी) वन भूमि व 5.30 फीसद (2.61 वर्ग किमी) बंजर जमीन है।
2623 मीटर की ऊंचाई पर है उद्गम
इंद्रावती का उद्गम समुद्रतल से 2623 मीटर की ऊंचाई पर हरुता जंगल है। इसकी पांच सहायक नदियां सौन, किन गधेरा, रेई, हकनाली व गाटा हैं जो कभी 9.67 किमी क्षेत्र को सींचती थीं। 169 बरसाती गधेरे व धारे 107 किमी तथा चार क्रम की 222 अन्य छोटी सहायक नदियां, नाले व धारे 160.27 किमी के दायरे को सींचते थे। अब बेपानी होने से इंद्रावती संकटग्रस्त है।
1965 में मिले थे संकट के संकेत
गैरहिमानी नदी की सहायक तीसरे क्रम की 10 सहायक नदियों पर साठ के दशक से संकट छाने लगा था। संरक्षण के अभाव में ये सभी 1965 से मौसमी में बदल गईं। इन्द्रावती के नौ रिचार्ज जोन सुकर्णाखाल (सनकुराना), धनपुर, रयाल, चंदेथौर, मोरिंदिया, पंकाईचाक, ककराड़ी, हातलखाल व भटवाड़ी हैं।
वर्षाजल से ऐसे भरेंगे भूजल भंडार
बंजर भूमि पर 10 सेमी व्यास व 30 सेमी गहरे जलसोखता रंध्र बनाएंगे। ढलान में गर्त, कृत्रिम खाल व पक्के चैकडेम बना वर्षाजल की बूंद बूंद को रिचार्ज क्षेत्रों में ही रोक संतृप्त चट्टानों यानी भूमिगत जलभंडारों तक पहुंचाएंगे। वहीं पौधरोपण के गड्ढे, चहारदीवारी, बहुपयोगी घास व झाड़ी प्रजातियों के पौधे लगा भूकटाव रोकने में मिलेगी मदद।
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