दिहाड़ी मजदूरों से बद्दतर पत्रकारों की स्थिती
अमित सहगल
कोरोना के संकट के समय पिछले विगत वर्ष से हर जगह के पत्रकार जन उपयोगी सूचनाओं को एकत्र कर पहुंचाने का कार्य करते आ रहे है।
केंद्र सरकार ने एवं राज्य सरकारों ने आर्थिक पैकेज में से लगभग सभी मजदूरों के खातों में मदद के लिए धनराशि ट्रांसफर करी पर देश मे कोरोनाकाल मे सभी सूचनाओं को आम जन तक पहुचाने के कार्य का बीड़ा सिर्फ क्षेत्रीय पत्रकारों और सोशल मीडिया ने उठाया है।
पत्रकारों की सुध लेने के नाम पर उन्हें सिर्फ ठेंगा दिखाया जाता है सारा मलाई तो बड़े समाचार पत्रों के लाला ही खा जाते है। पिछले साल से तो कई बड़े समाचार पत्रों और चैंनलों में कार्यरत पत्रकारों की तनख्वाह में भी कटौती कर दी गयी और पत्रकार उस कटौती में भी शर्मसार होकर काम करने को मजबूर है क्योंकि क्षेत्रीय पत्रकारों की आर्थिक स्थिति से वो अच्छी तरह वाकिफ है।
कहने को पत्रकार देश का वो चौथा स्तंभ है, समाज की आवाज उठाने का माध्यम है पर अंदर से कलमकार खोखला हो चुका है, जो कभी भी भरभरा कर गिर सकता है।
सिस्टम में मौजूद अधिकारी एवं हमारे नेताओ ने और समाज के गणमान्य लोगों ने भी कभी पत्रकारों की सुध लेने की नही सोची, देश के किसी भी नेता ने पत्रकारों के लिए कभी भी आर्थिक पैकेज की ना तो बात की और ना ही उनके बारे में सोचा।
कोरोना से पत्रकारों की मौत भी हो रही है उनके बाद उनके परिवार का क्या हाल हो रहा होगा?
क्या कभी किसी ने सोचा?
जिंदा रहते पत्रकार हर जगह गाली खाता है जिसके खिलाफ खबर लिखे उससे और जब थक हार कर घर पहुँचे तो घर वालो से भी।
नेताओ और अधिकारियों का कोपभाजन झेलने के लिए तो जेल भी जाना पड़ता है पत्रकार को, क्या कभी किसी ने सोचा?
पूरा दिन सर खपाने के बाद पत्रकार शाम को घर किसी ना किसी की बद्दुआए लेकर घर जाता है, क्या कभी किसी ने सोचा?
पत्रकार अपने बच्चो की स्कूल फीस टाइम पर दे नही पाता, घर का किराया समय पर दे नही पाता, राशन वाले की उधारी समय पर दे नही पाता, और जब इतनी दिक्कत झेलने के बाद शरीर छोड़कर जाता है तो परिवार सड़क पर आ जाता है, क्या कभी किसी ने सोचा?
दिहाड़ी मजदूरों को जब आर्थिक पैकेज मिल सकता है तो क्या पत्रकारों को नही मिल सकता कोई आर्थिक पैकेज सरकार की तरफ से।
क्या पत्रकार दिहाड़ी मजदूर से भी बद्दतर स्थिती में है, जरा सोचिए?
इस कोरोनाकाल में पत्रकार हर मोर्चे पर किसी ना किसी मदद कर रहे है पर जब उनको मदद की दरकार होती है तो वो किसी से बोल भी नही पाते।
पत्रकार देश का चौथा स्तंभ है अगर वो अपने आपको असहाय दिखा देगा तो तीनो स्तंभ खुद अपने बलबूते पर भी खड़े नही रह पाएंगे।
चारो स्तंभ एक दूसरे को मजबूती प्रदान कर रहे है इसलिए किसी एक को भी कमजोर मत होने दीजिये।
ऐसे वक़्त में एक दूसरे का सहारा बनिये।
जरा पत्रकारों के बारे में भी सोचिये।
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