हर्षिलः प्रकृति की एक सुंदर उपत्यका
देहरादून। प्रकृति की एक सुंदर उपत्यका हर्षिल। यहां का प्राकृतिक सौंदर्य देखते ही बनता है। घाटी के सीने पर भागीरथी का शान्त और अविरल प्रवाह हर किसी को आनन्दित करता है। पूरी घाटी में नदी-नालों और जल प्रपातों की भरमार है। हर कहीं दूधिया जल धाराएं इस घाटी का मौन तोडने में डटी हैं। नदी झरनों के सौंदर्य के साथ-साथ इस घाटी के सघन देवदार के वन मनमोहक हैं। जहां तक दृष्टि जाती है वृक्ष हि वृक्ष दिखाई देते हैं। यहां पहुंचकर पर्यटक इन वृक्षों की छांव तले अपनी थकान को मिटाता है। वनों से थोडा ऊपर दृष्टि पडते ही आंखें खुली की खुली रह जाती है। हिमाच्छादित पर्वतों का आकर्षण तो देखते ही बनता है। ढलानों पर फैले हिमनद भी देखने योग्य है।
हर्षिल उत्तरकाशी जिले में उत्तरकाशी-गंगोत्री मार्ग के मध्य स्थित एक ग्राम और कैण्ट क्षेत्र है। यह स्थान गंगोत्री को जाने वाले मार्ग पर भागीरथी नदी के किनारे स्थित है। हर्षिल समुद्र तल से ७,८६० फुट की ऊंचाई पर स्थित है। यहां से ३० किलोमीटर की दूरी पर स्थित है गंगोत्री राष्ट्रीय उद्यान जो १,५५३ वर्ग किमी के क्षेत्र में फैला है। हरसिल उत्तरकाशी से ७३ किलोमीटर आगे और गंगोत्री से २५ किलोमीटर पीछे तक सघन हरियाली से आच्छादित है। गढ़वाल के अधिकांश सौन्दर्य स्थल दुर्गम पर्वतों में स्थित हैं जहां पहुंचना बहुत कठिन होता है। यही कारण है कि प्रकृति प्रेमी पर्यटक इन स्थानों पर पहुंच नहीं पाते हैं। लेकिन ऐसे भी अनेक पर्यटक स्थल हैं जहां सभी प्राकृतिक विषमता और दुरुहता समाप्त हो जाती है। वहां तक पहुंचना सहज और सुगम होता है। यही कारण है कि इन सुविधापूर्ण प्राकृतिक स्थलों पर अधिक पर्यटक पहुंचते हैं।
दिल्ली-हरिद्वार-हरसिल रिज, अरावली पर्वत श्रृंखला के उत्तरी फैलाव का भूमिगत रिज है, जिसका फैलाव उत्तर उत्तरपूर्व-दक्षिण दक्षिण पश्चिम तक है और जिसका विस्तार अजमेर और जयपुर से होता हुआ आगे अंबा माता-देरि से दिल्ली तक है। पिछले कुछ वर्षों में भोट जातीय समूह से सम्बन्धित जध लोग छोटी संख्या में यहां आकर बस गये हैं और ये लोग तिब्बती भाषा से मिलती जुलती एक भाषा बोलते हैं।
ऋषिकेश से हरसिल की लंबी यात्रा के बाद यात्री हरसिल में रुक सकते हैं। भोजपत्र के वृक्ष और देवदार के मनमोहक वनों की तलहटी में बसे हरसिल की सुंदरता पर बगल में बहती भागीरथी और आसपास के झरने चार चांद लगा देते हैं। गंगोत्री जाने वाले अधिकतर तीर्थ यात्री हरसिल की इस सुंदरता का आंनंद लेने के लिये यहां रुकते हैं। अप्रैल से अक्टूबर तक हरसिल आना सुगम है, लेकिन बर्फबारी के चलते नवंबर से मार्च तक यहां बहुत कम ही पर्यटक पहुंच पाते हैं। हरसिल की घाटियों का सौंदर्य इन्हीं महीनों में खिलता है, जब यहां की पहाडियां और पेड बर्फ से अच्छादित रहते हैं। गौमुख से निकलने वाली भागीरथी का शांत स्वभाव यहां देखने योग्य है। यहां से कुछ ही दूरी पर डोडीताल है इस ताल में रंगीन मछलियां ट्राडा भी पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र हैं। इन ट्राडा मछलियों को विल्सन नामक एक अंग्रेज लाये थे। बगोरी, घराली, मुखबा, झाला और पुराली गांव इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति और इतिहास को समेटे हैं। हरसिल देश की सुरक्षा के नाम पर खींची गई भीतरी पंक्ति में रखा गया है जहां विदेशी पर्यटकों के ठहरने पर प्रतिबंध है। विदेशी पर्यटक हरसिल होकर गंगोत्री, गौमुख और तपोवन सहित हिमालय की चोटियो में तो जा सकते हैं लेकिन हरसिल में नहीं ठहर सकते हैं। हरसिल से सात किलोमीटर की दूरी पर सात तालों का दृश्य विस्मयकारी है। इन्हें साताल कहा जाता है। हिमालय की गोद मे एक श्रृखंला पर पंक्तिबद्ध फैली इन झीलों के दमकते दर्पण में पर्वत, आसमान और बादलों की परछाइयां कंपकपाती सी दिखती हैं। ये झील ९,००० फीट की ऊंचाई पर फैली हैं। इन झीलों तक पहुंचने के रास्ते मे प्रकृति का एक नया ही रूप दिखाई देता है। यहां पहुंचकर प्रकृति का संगीत सुनते हुए झील के विस्तृत सुनहरे किनारों पर घूमा जा सकता है।
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