उस खनकती आवाज को भुलाया थोड़ा न जा सकता है…
प्रकाश उप्रेती की कलम से संस्मरण
…तब कैसेट्स का ज़माना आ चुका था। रामनगर में कैसेट्स मिलते थे। गांव का कोई भी व्यक्ति दिल्ली से आता था तो उनसे कैसेट्स मंगाए जाते थे। आस-पास के गांवों के बीच में कैसेट्स की उधारी चलती थी। बस मित्रता पक्की होनी चाहिए, यही शर्त होती थी।
वह समय सुनने का था। देखने को तो अमीर लोगों की शादियों में VCR ही होता था। यह मौका न के बराबर ही आता था। हमनें फिल्में देखी नहीं बल्कि सुनी थीं। पारे बाखे में जब भुवन चाचा घातक, घायल, दिल वाले दुल्हनिया ले जाएंगे, शोले जैसी फिल्मों के कैसेट्स चलाते तो हमारे कान खड़े हो जाते थे। अगर उस समय भ्योव लकड़ी काटने या भैंस चराने गए हुए रहते तो वहीं से आवाज मारते थे-“भुवन का जरा आवाज तेज क दियो” (भुवन चाचा, आवाज़ तेज कर दो)। आवाज तब तक लगाते रहते जब तक टेपरिकॉर्डर की आवाज बढ़ न जाती थी। फ़िल्म के हर डायलॉग को ‘मन की बात’ से भी ज्यादा ध्यान से सुनते थे।
टेपरिकॉर्डर में सुबह-सुबह भजन लगते थे। धूप आने के बाद फ़िल्म की कैसेट लग जाती थी। शाम से लेकर देर रात तक गाने बजते थे। गानों में भी कुछ गाने ऐसे थे जिनको सुनने के लिए हम काम-धाम छोड़ देते थे। वो गाने ईजा से लेकर अम्मा तक को मुँह ज़बानी याद थे। उधर टेपरिकॉर्डर में गाना बजता-
“रंगीली बिंदी, घाघर काई,
धोती लाल किनर वाई,
हाय हाय हाय रे मिजाता,
हो हो होई रे मिजाता…”
इधर हम सबके कान खड़े हो जाते थे। ईजा हमको कहतीं- “कल नि पाड़ रे, हीरा सिंग ज्यू गीत छू” (हल्ला मत करो, हीरा सिंह राणा जी का गाना है)। हम चुप हो जाते थे। ईजा बहुत धीमी आवाज में गाने को दोहराती रहती थीं।
एक बार हीरा सिंह राणा जी के गाने बजने शुरू होते तो फिर क्रम से वही बजते थे। इस गाने के बाद जो गाना बजता था । उस गाने को सुनकर अम्मा को अपने “मैत” (मायके) की याद आ जाती थी। गाने में जहाँ का जिक्र आता है, उसी फाट में अम्मा का मायका था। उधर टेपरिकॉर्डर पर गाना-
ये मेरी मानीले डानी…
हम तेरी बलाई ल्यूँ ला
तू भगवती छै भवानी
हम तेरी बलाई ल्यूँ ला…
इधर अम्मा और ईजा बाहर “ढिकोम” (आँगन की दीवार में) सुनने के लिए बैठ जाते थे। हम तो इसके साथ बजने वाली धुन से ही मगन हो जाते थे। साँझ के समय जब ये गाना और धुन बजती तो सीधे कलेजे पर लगती थी।
इन गानों के जरिए ही ईजा और अम्मा ने हमारा परिचय हीरा सिंह राणा जी से करा दिया था। उनको राणा जी के लगभग सभी गाने याद थे। धीरे-धीरे हम भी उस आवाज की गिरफ्त में आने लगे जिन्हें ईजा हीरा सिंह राणा ज्यूँ कहती थीं।
अब एक दिन गाँव में उड़ते-उड़ते खबर आई कि रूद्रेश्वर महादेव, सनणा के उद्घाटन में ‘हीरा सिंह राणा ज्यूक पार्टी आमे’। सनणा में रुद्रेश्वर महादेव मंदिर का जीर्णोद्धार हो रहा था और रोड से वहां तक सड़क जा रही थी, यह बात सभी जानते थे। ईजा के साथ ‘मकोट’ (ननिहाल) जाते हुए हम भी देखते थे। वह बीच रास्ते में ही पड़ता था।
राणा जी की पार्टी आ रही है, यह खबर धीरे-धीरे पुख्ता हो गई थी। ईजा सनणा ‘घट’ (चक्की) पीसने गई हुई थीं। उनको दुकान में एक पर्चा मिला। ईजा उस पर्चे को घर ले आई थीं। उस पर्चे में रुद्रेश्वर महादेव के उद्घाटन की तारीख और राणा जी की फ़ोटो के साथ उनके पार्टी के आने की सूचना थी। हम सब ने वो पर्चा देखा और मन ही मन उन गानों में डूबने लगे जिनको कैसेट्स के जरिए सुनते थे। मन में बार -बार यही लग रहा था कि कैसे होंगे हीरा सिंह राणा, कैसे गाते होंगे, ये सब धुन भी वही बजाते होंगे क्या?? इस तरह के कई प्रश्न मन में कौंध रहे थे।
अब वो दिन भी आ गया था। 2 बजे से राणा जी का प्रोग्राम था। सारे गाँव वालों ने सुबह जल्दी-जल्दी अपना काम निपटा लिया। हम आधी छुट्टी में ही इस्कूल से घर आ गए थे। ईजा सुबह-सुबह घा लेने चली गई थीं। घा लाने के बाद उन्होंने जल्दी भैंस को पानी पिला दिया था। तब तक हम भी आ गए थे। उस दिन ईजा ने 12 बजे तक बाहर का सारा काम करने के साथ-साथ झोई-भात भी तैयार कर दिया था।
हम सब ने झोई-भात खाया और तैयार हो गए। हमारे तैयार होते-होते ही “आरे-पारे बाखे से धत्ता-धत” (आमने-सामने के घरों से जोर-जोर की आवाज) लगने लगी थी- ” हिटो रे सनणक महादेव हैं” (चलो सनणा के महादेव मंदिर को)। हम जल्दी-जल्दी तैयार होने लगे थे। धीरे-धीरे गाँव के सभी बच्चे, जवान और बूढ़े सनणा को जाने वाले रास्ते की तरफ दिखाई देने लगे। जो नहीं आए उनको कोई न कोई आवाज लगा रहा था। गाँव किसी उत्सव जैसे माहौल में डूबा हुआ था। हम भी ईजा को, हिट ईजा…हिट ईजा बोलने पर लगे थे। ईजा का काम ही खत्म नहीं हो रहा था। तैयार होने के बाद भी वो कभी घास छन के अंदर तो कभी गोठ में लकड़ी रखने लग जाती थीं। जैसे-जैसे लोग सनणा के रास्ते में नीचेको जाते दिखाई देते तो हमारी बैचनी और बढ़ जाती थी।
खैर, ईजा ने सब काम निपटाया और हम रुद्रेश्वर महादेव में राणा जी की पार्टी को सुनने के लिए चल दिए। थोड़ा आगे-पीछे गाँवों के सभी लोग चल रहे थे। रास्ते भर में तरह तरह की बातें हो रही थीं लेकिन एक बात सबमें कॉमन थी कि किसी ने आज तक किसी भी गायक को लाइव गाते हुए नहीं सुना था। उनमें से कुछ लोगों ने राणा जी को देखा जरूर था लेकिन गाना गाते हुए नहीं देखा था। ईजा और हम तो उन्हें आज ही पहली बार देखने वाले थे। चलते-चलते सनणा पहुंच गए। सनणा के बाजार से लेकर रुद्रेश्वर महादेव तक लोग ही लोग थे। सड़क के किनारे कई दुकानें लगी हुई थीं। एकदम कौतिक हो रखा था।
अब हम भी उसमें शामिल हो गए थे। एक व्यक्ति माइक पर घोषणा कर रहा था, “हीरा सिंह राणा जी आ गए हैं। कुछ ही देर में उनका प्रोग्राम शुरू होने वाला है। कृपया आप नीचे बैठ जाएं”।
ईजा का वो मैत का इलाका था तो उनको बहुत से जानने वाले मिल रहे थे। वो हर किसी से मिलते हुए थोड़ा-थोड़ा रुक जाती थीं। उनके रुकते ही हमें बैचेनी हो जाती क्योंकि हम जल्दी से नीचे मैदान में पहुंचकर आगे बैठना चाहते थे। सबकी खबर-बात लेते हुए आखिर हम नीचे रुद्रेश्वर महादेव मंदिर के मैदान में पहुँच गए। वहाँ देखा तो एक स्टेज लगा हुआ था। उस पर कुछ लोग अलग-अलग वाद्ययंत्र लेकर बैठे थे। एक आदमी उन सबके पास जा-जाकर कुछ पूछ रहा था। मैदान पूरा खचाखच भरा हुआ था। बच्चे आम के पेड में भी बैठे हुए थे। हम भी इधर-उधर देखते-देखते आगे की तरफ जा रहे थे। आगे कोई मकोट के मिल गए उन्होंने ईजा को जगह दे दी । अब हम वहीं बैठ गए थे, स्टेज के सामने ही। वहां से सब साफ दिखाई दे रहा था।
तभी स्टेज पर हल्की सफेद दाढ़ी, सांवला चेहरा, जानी-पहचानी कद-काठी, कुर्ता- पजामा, फतोई और टोपी पहना हुआ एक आदमी आया। उनके आते ही माइक से आवाज आई-“हमारे बीच में हीरा सिंह राणा जी आ चुके हैं, जोरदार तालियों से उनका स्वागत कीजिए”। इसके साथ ही पूरा मैदान तालियों से गूंज गया। हम तो खड़े होकर ताली बजाने लगे थे। तभी पीछे से आवाज आई- ‘अरे नना बैठ जा’ (अरे लड़के बैठ जा)। मैं झप्प से बैठ गया।
तालियाँ जैसे ही कम हुई। वैसे ही राणा जी ने कुछ शब्द कहे और पहला गाना शुरू किया-
ए मानिला का ढना बति
काशीपुरा देख़्यूँ छु…
यो..फुटिया कपाई परि
परदेसो लेखियों छो….
फूल फटंगा हाई सुवा जून लागे
यो परेदेसमा तेरी याद आ गे….
इस गाने के साथ ही पूरा मैदान झूमने लगा। वही धुन, वही आवाज जिसे हम टेपरिकॉर्डर में सुनते थे। हम तो एकदम खो गए। जीवन का यह पहला लाइव शो था। उसके बाद तो राणा जी ने कई गाने गाए और शाम तक शो चलता रहा। जबतक वो गाते रहे लोग टस से मस नहीं हुए। उधर राणा जी गाते इधर से लोग उसे दोहराते जाते थे। ऐसा लग रहा था कि पूरा पहाड़ उनके गानों में उमड़ आया हो।
शाम होते-होते उनका प्रोग्राम खत्म हुआ हम भी पूरे जोश के साथ घर को लौट आए। चेहरे पर उस दिन अलग ही भाव था। हीरा सिंह राणा जी को सामने गाते हुए जो देखा था। ईजा भी कह रही थीं- “अपण जसे मैस छैं राणा ज्यूँ लेकिन गानि कतु भल” (राणा जी अपने जैसे ही आदमी हैं लेकिन कितना अच्छा गाते हैं)। पूरे रास्ते गाँव के लोग अलग-अलग बातें करते हुए आ रहे थे। कोई वो गाना तो कोई वो नहीं, वो का जिक्र कर रहा था। इन बातों और उन यादों के साथ हम घर वापस आ गए।
रुद्रेश्वर महादेव मंदिर में हर साल शिव रात्रि के दिन मेला लगता है। अब उसका सांस्कृतिक रूप से और विकास हो गया है। पहले सनणा में “गिरक कौतिक” भी लगता था। अब उसकी जगह रुद्रेश्वर महादेव में शिव रात्रि के दिन ही मेला लगता है। उसके बाद आगे के सालों में भी हीरा सिंह राणा जी यहाँ आते रहे हैं। ईजा को जब मैंने बताया कि- ‘ईजा हीरा सिंह राणा जी अब नहीं रहे’। सुनते ही ईजा का निराशा से भरा और व्यथित करने वाला शब्द था- ऊ जा.. कसिक….
(उनके इस रूप से बहुत बाद में परिचित हो पाया…
त्यर पहाड़, म्यर पहाड़
हौय दुःखों को ड्यौर पहाड़
बुजुर्गों ले जोड़ पहाड़
राजनीति ले तोड़ पहाड़
ठेकेदारों ले फोड़ पहाड़
नान्तिनों लै छोड़ पहाड़.)
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