यू-सैक ने किया सतत विकास एवं पर्यावरणीय चुनौतियों को लेकर वेबिनार
देहरादून : उत्तराखण्ड अन्तरिक्ष उपयोग केन्द्र (यू-सैक) द्वारा हिमालयन नॉलेज नेटवर्क (एच.के.एन) विषय पर एक परामर्श बेबीनार का आयोजन किया ।यूसैक की ओर से आयोजित वेबिनार में विभिन्न शोध संस्थानों के वैज्ञानिकों, विश्वविद्यालय के प्राध्यापकों, विभिन्न रेखीय विभागों एवं गैर-सरकारी संगठनों के अधिकारियों व परियोजना प्रबंधकों के साथ विचार-विमर्श किया गया। वेबिनार का लक्ष्य राज्य के सतत विकास के लिए प्राथमिकता वाले किन्हीं दो विषयगत क्षेत्रों की पहचान करना था। वेबिनार में यूसैक के निदेशक प्रो. एमपी बिष्ट ने रिमोट सेंसिंग व भौगोलिक सूचना प्रणाली तकनीक से सृजित एवं एकत्रित सूचनाओं के बारे में जानकारी दी।
वेबिनार में यू सैक के निदेशक प्रो. एम पी बिष्ट ने यू -सैक द्वारा किए जा रहे कार्यक्रमों की जानकारी देते हुए रिमोट सेंसिंग व भौगोलिक सूचना प्रणाली तकनीकी से सृजित एवं एकत्रित सूचनाओं के बारे में अवगत कराया तथा बताया कि सूचना का साझाकरण व उनको उचित समय पर नीति निर्धारण कर्ताओं को पहुँचाना अति आवश्यक है। हिमालयन नाॅलेज नेटवर्क अनेक नेटर्वकों से मिलकर भव्य एवं विस्तृत रूप से ज्ञान प्रसारित करने का माध्यम के रूप में विकसित होने जा रहा है।
वेबिनार में हिमालयन नाॅलेज नेवटर्क के नोडल अधिकारी डाॅ0 जी.सी.एस. नेगी, वरिष्ठ वैज्ञानिक जी.बी. पंत पर्यावरण संस्थान, अल्मोडा, द्वारा विस्तृत जानकारी देते हुये बताया कि पर्वतीय क्षेत्रों में अनेक पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं जैसे कृषि, ग्लेशियरों, कार्बन सिंक वैल्यू, सांस्कृतिक एवं जैविक विविधता के क्षेत्रों में समृध होने के बावजूद भी पर्वतीय क्षेत्रों पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया है। उन्होंने बताया पर्यावरण विकास के क्षेत्र में सम्पूर्ण हिमालयी क्षेत्र में 145 से अधिक विश्वविद्यालयों , 2000 से अधिक प्रोफेसरों व 500 से अधिक वैज्ञानिकों का साझा मंच है, फिर भी विभिन्न संस्थानों में सूचना की सीमित साझेदारी है।
कार्यक्रम में यू-सैक के वैज्ञानिक एवं उत्तराखण्ड राज्य के एच.के.एन. परियोजना के नोडल अधिकारी डाॅ0 गजेन्द्र सिंह ने बताया कि यू-सैक द्वारा राज्य इकाई के रूप में विभिन्न संस्थानों, रेखीय विभागों ,एजेन्सीयों के पास उपलब्ध सूचना व आंकड़ों के आधार पर उत्तराखण्ड राज्य के लिये दो प्राथमिकता वाले विषयगत क्षेत्रों के लिये दस्तावेज तैयार करना है। उन्होंने राज्य में पानी की कमी, जैव-विविधता हरास, वनाग्नि, लैण्ड्सस्लाइड, जलवायु परिवर्तन, रिस्पोंसिव टूरिज्म, कृषि क्षेत्रों के कम होने आदि अनेक चुनौतियों से अवगत कराया।
कार्यक्रम में परिचर्चा की अध्यक्षता करते हुये भारतीय वन्यजीव संस्थान के पूर्व निदेशक डाॅ0 जी.एस. रावत ने उत्तराखण्ड राज्य में विभिन्न चुनौतियों पर विभिन्न संस्थानों, रेखीय विभागों व गैर सरकारी संगठनों के प्रतिनिधियों द्वारा दिये गये सुझावों को सूचीबद्व किया। वेबिनार का संचालन कर रहे यू-सैक के वैज्ञानिक शशांक लिंगवाल ने परामर्श कार्यशाला के निष्कर्ष से अवगत कराते हुये बताया कि ,एग्री हार्टीकल्चर डेवलपमेंट, डिजास्टर रिस्क रिडक्शन , रिस्पोंसिव टूरिज्म व जैव विविधता विषयों को चिन्हिंत किया गया है। जिसे कि नीति-निर्धारकों की अनुमति उपरान्त विषयगत दस्तावेजीकरण कर नीति आयोग को प्रदान किया जायेगा।
वेबिनार में एस.एस. रसैली- ए.पी.सी.सी.एफ., आर.एन.झा.- सदस्य सचिव जैव विविधता बोर्ड, प्रो0 एस.के. गुप्ता -एच.एन.बी. गढवाल विष्वविद्यालय, प्रो0 ललित तिवारी- कुमाउ यूनिवर्सिटी, डाॅ0 अविनाष आनन्द- सी.ई.ओ.- भेड एवं ऊन विकास परिषद, पूनम चंद- पर्यटन विभाग, डाॅ0 राजेष खुल्बे- आई.सी.ए.आर., डाॅ0 मंजू सुन्द्रियाल- यूसर्क, डाॅ0 किरण नेगी- हेस्को, डाॅ0 पंकज तिवारी- आरोही, डाॅ0 संदीप भट्ट- आई.आई.टी, रूडकी, डाॅ0 पंकज जोषी- डब्लू.डब्लू.एफ, डाॅ0 वी.आर.एस. रावत- एफ.आर.आई., डाॅ0 प्रियदर्षी उपाध्याय, डाॅ0 अरूणा रानी, डाॅ0 सुषमा गैरोला, पुष्कर कुमार, आर.एस. मेहता, सुधाकर भट्ट, नवीन चन्द्र, संजय द्विवेदी, सोनम बहुगुणा, भावना फर्सवाण ने प्रतिभाग कर परिचर्चा की।
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