उत्तराखंड में 6 माह के लिए ऊर्जा कर्मचारियों की हड़ताल स्थगित
देहरादून: उत्तराखंड सरकार से बातचीत के बाद ऊर्जा संगठनों ने हड़ताल वापस ले ली है. ऊर्जा निगम के संयुक्त संघर्ष मोर्चा के पदाधिकारियों ने हड़ताल वापस लेने का ऐलान किया है. ऊर्जा मंत्री हरक सिंह रावत की अध्यक्षता में संयुक्त संघर्ष मोर्चा के पदाधिकारियों के साथ बैठक हुई. वहीं, उत्तराखंड जल विद्युत निगम लिमिटेड, उत्तराखंड पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड और पावर ट्रांसमिशन कॉर्पोरेशन ऑफ उत्तराखंड लिमिटेड में हड़ताल रोकने के लिए अगले 6 महीने के लिए आवश्यक सेवा अनुरक्षण कानून (एस्मा) लागू किया गया है.
उत्तराखंड के इतिहास में ये पहली बार है, जब ऊर्जा मंत्री खुद ऊर्जा निगम के कर्मचारियों के साथ उनकी समस्याओं को लेकर बैठक की है. इससे पहले सोमवार (26 जुलाई) को कर्मचारियों की ऊर्जा सचिव सौजन्या और मुख्य सचिव सुखवीर सिंह संधू से भी वार्ता हुई थी, लेकिन ये वार्ता विफल रही, जिसके बाद रात 12 बजे से ऊर्जा कर्मी हड़ताल पर चले गए थे.
बिजली गुल होने से क्या हुई परेशानी? ऊर्जा कर्मियों की हड़ताल के कारण उत्तरकाशी में मंगलवार (27 जुलाई) सुबह मनेरी भाली एक और मनेरी भाली-दो की टरबाइन थम गईं और बिजली उत्पादन बंद हो गया. इस कारण सरकार ने करीब 250 मेगावाट बिजली एनटीपीसी से ली है.
देहरादून में सभी बिजलीघरों में ताले लटके रहे, साथ ही 20 फीसदी इलाकों में बिजली आपूर्ति ठप रही. उत्तराखंड जल विद्युत निगम लिमिटेड के लगभग सभी पावर हाउस में बिजली उत्पादन ठप रही.
क्या है कर्मचारियों की मांग: उत्तराखंड में ऊर्जा निगम के कार्मिक पिछले 4 सालों से एसीपी की पुरानी व्यवस्था तथा उपनल के माध्यम से कार्य कार्योजित कार्मिकों के नियमितीकरण एवं समान कार्य हेतु समान वेतन की मांग कर रहे हैं. 22 दिसंबर 2017 को कार्मिकों के संगठनों तथा सरकार के बीच द्विपक्षीय समझौता हुआ. लेकिन आज तक उस समझौते पर कोई कार्यवाही नहीं हुई.
ऊर्जा निगम के कार्मिक इस बात से नाराज हैं कि सातवें वेतन आयोग में उनकी पुरानी चली आ रही 9-5-5 की एसीपी व्यवस्था को समाप्त कर दिया गया है, जो उन्हें उत्तर प्रदेश के समय से ही मिल रही थी. यही नहीं, पे-मैट्रिक्स में भी काफी छेड़खानी की गई. संविदा कार्मिकों को समान कार्य समान वेतन के विषय में कोई कार्यवाही नहीं हुई. इसके अतिरिक्त ऊर्जा निगमों में इंसेंटिव एलाउंसेस का रिवीजन नहीं हुआ.
उत्तराखंड सरकार ने हड़ताल पर लगाई रोक: वहीं, ऊर्जा कर्मचारियों की हड़ताल को देखते हुए धामी सरकार ने सख्त फैसला लेते हुए हड़ताल पर रोक लगा दी है. सरकार ने उत्तर प्रदेश अत्यावश्यक सेवाओं का अनुरक्षण अधिनियम, 1966 (उत्तराखण्ड राज्य में यथा प्रवृत्त) (उत्तर प्रदेश अधिनियम संख्या 30 सन् 1966) की धारा 3 की उपधारा (1) के अधीन शक्ति का प्रयोग कर अगले 6 माह के लिए हड़ताल को प्रतिबंधित कर दिया है.
सरकार की ओर से जारी अधिसूचना के अनुसार, यूजेवीएन लिमिटेड, उत्तराखंड पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड और पावर ट्रांसमिशन कॉरपोरेशन ऑफ उत्तराखंड लिमिटेड में समस्त श्रेणी की सेवाओं में तत्कालिक प्रभाव से हड़ताल पर रोक लगा दी है.
गौरतलब है कि इस एक्ट के मुताबिक, राज्य या केंद्र सरकारें अपनी जरूरत के हिसाब से इसे लागू कर सकती हैं. एक्ट को ऐसे वक्त में लागू किया जाता है जब राज्य में कर्मचारियों की जरूरत अधिक होती है.
एस्मा क्या है: एसेंशियल सर्विसेज मेंटेनेंस एक्ट (ESMA), 1968 में भारत की संसद द्वारा अधिनियमित किया गया था. इसका मुख्य उद्देश्य उन वस्तुओं की निर्बाध गति को बनाए रखना है जो सामान्य नागरिक के सामान्य जीवन के लिए आवश्यक हैं.
एसेंशियल सर्विसेज मेंटेनेंस एक्ट (ESMA) को अनावश्यक हड़ताल को रोकने हेतु लगाया जाता है. अगर किसी राज्य में किसी जरूरी डिपार्टमेंट के कर्मचारी हड़ताल पर चले जाते हैं और सरकार उनकी मांगें नहीं मानती है और उनसे हड़ताल ख़त्म करने को कहती है और फिर भी वे हड़ताल ख़त्म नहीं करते हैं तो सरकार उनके खिलाफ ESMA के तहत कार्रवाही करती है.
लेकिन ESMA लागू करने से पूर्व इससे प्रभावित होने वाले कर्मचारियों को किसी समाचार पत्र या अन्य माध्यम से सूचित किया जाता है. ESMA अधिकतम 6 माह के लिए लगाया जा सकता है. लेकिन यदि सरकार मानती है कि इसे और बढ़ाने की जरूरत है, तो वह इसे कितने भी समय के लिए बढ़ा सकती है हालांकि एक बार में 6 माह से अधिक का ऑर्डर नहीं दिया जा सकता है.
ESMA के अंतर्गत सजा का प्रावधान
- ESMA लागू होने के बाद यदि कर्मचारी हड़ताल पर जाता है तो वह अवैध एवं दण्डनीय है. क्रिमिनल प्रोसीजर 1898 (5 ऑफ 1898) के अन्तर्गत एस्मा लागू होने के उपरान्त इस आदेश से सम्बन्धि किसी भी कर्मचारी को बिना किसी वारन्ट के गिरफतार किया जा सकता है.
- इस एक्ट में यह भी कहा गया है कि यदि किसी आवश्यक सेवा के रखरखाव के लिए ओवरटाइम करने की जरूरत है तो कर्मचारी इससे इनकार नहीं कर सकता है.
- कोई भी व्यक्ति जो अन्य व्यक्तियों को हड़ताल में भाग लेने के लिए उकसाता है, उसको एक वर्ष की जेल या एक हजार रुपए का जुर्माना या फिर दोनों हो सकता है.
- यदि कोई व्यक्ति हड़ताल को वित्तीय मदद देता है, तो इस कानून के अंतर्गत ऐसा करना जुर्म है.ऐसी व्यक्ति को एक वर्ष तक का कारावास, एक हजार रुपए का जुर्माना या दोनों हो सकता है.
एस्मा एक्ट आवश्यक सेवाओं को निर्बध रूप से चलाने का एक जरिया है, जिससे प्रतिकूल परिस्थितियों में भी ये सेवाएं प्रभावित न हो और आम नागरिक को किसी तरह की असुविधाओं का सामना न करना पड़े.
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