दिल्ली सरकार को सुप्रीम झटका, 10 पॉवर प्लांट वाली याचिका खारिज
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को केजरीवाल सरकार द्वारा दिल्ली में कथित वायु प्रदूषण फैलाने के लिए जिम्मेदार पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के 10 पॉवर प्लांट्स को बंद करने की मांग के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया।
जस्टिस नवीन सिन्हा और आर.एस. रेड्डी की बेंच ने दिल्ली सरकार को करारा झटका देते हुए जनहित याचिका (पीआईएल) पर विचार करने से इनकार कर दिया और वकील से याचिका वापस लेने को कहा। इसके बाद दिल्ली सरकार ने याचिका वापस ले ली।
दिल्ली सरकार द्वारा दायर जनहित याचिका में केंद्र को पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के 10 थर्मल पॉवर प्लांट्स में फ्यूल गैस डिसल्फराइजेशन (FGD) डिवाइस लगाने का निर्देश देने की मांग की गई थी क्योंकि डिवाइस के अभाव में पॉवर प्लांट राष्ट्रीय राजधानी की हवा को प्रदूषित करने में प्रमुख योगदान देते हैं।
याचिका में इन थर्मल पॉवर प्लांट्स के लिए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) द्वारा पारित एक आदेश को रद्द करने की भी मांग की गई, जिसमें एफजीडी की स्थापना की समय सीमा बढ़ा दी गई थी।
दिल्ली सरकार की ओर से हुए पेश वरिष्ठ वकील कॉलिन गोंजाल्विस ने बेंच को बताया कि बिजली प्लांट्स में सल्फेट आदि का 80 प्रतिशत योगदान होता है और वहां सल्फर डाईऑक्साइड और नाइट्रोजन डाईऑक्साइड का नियंत्रण होना चाहिए। “ये किलर गैसें हैं।”
गोंजाल्विस ने कहा कि आईआईटी कानपुर की रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली में प्रदूषण का स्तर ज्यादा है। उन्होंने आगे कहा कि सीपीसीबी ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि 2019 तक एफजीडी को स्थापित कर दिया जाएगा। इस पर जस्टिस नवीन सिन्हा ने जवाब दिया कि अब समय सीमा वर्ष 2022 है।
गोंजाल्विस ने तर्क दिया कि प्रदूषण बदतर होता जा रहा है और समय सीमा करीब होनी चाहिए। बेंच ने कहा कि हम आपके मामले को समझ गए हैं। राज्य सरकार भारत सरकार के खिलाफ एक जनहित याचिका के तहत आ गया है। इस पर गोंजाल्विस ने जवाब दिया कि राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है क्योंकि यह पॉवर प्लांट्स से प्रभावित है।
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