एक-दूसरे के खिलाफ प्रोपेगेंडा, वोटों के पोलराइजेशन के लिए धार्मिक और जाति आधारित मुद्दों को हवा दी जा रही है और इससे भी बड़ी बात की सस्ती लोकप्रियता के लिए जनता से ऐसे वादों का बहु प्रचार (पोपुलाइजेशन) किया जा रहा है, जिसे मतदाता को भ्रमित करने की कोशिश की तौर पर देखा जाना चाहिए।
इसके सामने प्रदेश के जनसरोकारों से जुड़े मुद्दे फीके और गौंण है और वोटों को प्रभावित करने के लिए कतिपय सियासी दल इस पीपीपी मॉडल के तरीके को अपना रहा है, जो उन्हें छोटा और ज्यादा मारक प्रतीत हो रहा है। इसकी ताजा बानगी तीन ऐसे बयानों से जुड़ी है, जिसे सियासी दलों ने तूल देने की कोशिश की। इनमें ताजा मामला मुस्लिम विवि को लेकर दिए गए एक बयान का है, जिसे लेकर भाजपा ने कांग्रेस पर हमला बोला।
अचानक पार्टी उस सरकारी आदेश को भी सामने ले आई, जिसमें समुदाय विशेष के लोगों के लिए जुमे के दिन अल्प अवकाश की सुविधा थी। इस आदेश के बहाने भाजपा ने तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत पर धावा बोल दिया है। सोशल मीडिया पर उनकी तस्वीरों को बदल कर वायरल किया जा रहा है। सियासी जानकारों की निगाह में ये हरीश रावत को टारगेट करने के साथ ही वोटों के ध्रुवीकरण का भी प्रयास है।
सच्चाई जो भी हो, लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के बयान भी ध्रुवीकरण की सियासत से अछूते नहीं रहे। पिछले दिनों उनका बयान आया कि कांग्रेस की सरकार बनने पर ब्राह्मण आयोग बनाया जाएगा। पूर्व सीएम की भावना एक जाति वर्ग के लिए कितनी ही तटस्थ क्यों न हो, लेकिन उनके इस बयान जात-पात की सियासत के तौर पर देखा गया।
जैसे-जैसे मतदान की तारीख नजदीक, चुनाव में धर्म और जाति की राजनीति हो रही हावी
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