आज महिलाएं स्कूल- कॉलेज में स्वतंत्र रूप से पढ़ सकती हैं। किसी संगठन में पुरुषों के समान ही काम करने के साथ ही समाज के उत्थान में अपना योगदान दे सकती हैं। अपने सपनों को साकार कर सकती हैं, तो इस सब का श्रेय भारत की कुछ महान विभूतियों को जाता है। इन्हीं विभूतियों में से से एक नाम ‘महात्मा ज्योतिराव फुले’ का है। महात्मा ज्योतिराव फुले की आज जयंती है। 11 अप्रैल 1827 को पुणे के गोविंदराव और चिमनाबाई के घर में जन्मे ज्योतिराव का परिवार पेशवाओं के लिए फूलवाला के तौर पर काम करते थे। इस कारण उन्हें मराठी में ‘फुले’ कहा जाता था। उस दौर में समाज में फैली महिला विरोधी कुरीतियों, उनके शोषण के खिलाफ आवाज उठाने वाले 19वीं सदी के महान समाज सुधारक ज्योतिबा फुले के प्रयासों को हमेशा महिला सशक्तिकरण की दिशा में अभूतपूर्व योगदान की तरह याद किया जाता है। ज्योतिबा फुले एक समाज प्रबोधक, विचारक, समाजसेवी, लेखक, दार्शनिक और क्रांतिकारी कार्यकर्ता हैं। ज्योतिबा फुले ने अपना पूरा जीवन महिलाओं को शिक्षा का अधिकार दिलाने, बाल विवाह को रोकने, विधवा विवाह का समर्थन करने में लगा दिया।
स्त्री और पुरुष जन्म से ही स्वतंत्र हैं। इसलिए दोनों को सभी अधिकार समान रूप से भोगने का अवसर प्रदान होना चाहिए।
शिक्षा स्त्री और पुरुष की प्राथमिक आवश्यकता है।
शिक्षा के बिना समझदारी खो गई, समझदारी के बिना नैतिकता खो गई, नैतिकता के बिना विकास खो गया, धन के बिना शूद्र बर्बाद हो गया। शिक्षा महत्वपूर्ण है।
अच्छा काम करने के लिए गलत उपायों का सहारा नहीं लेना चाहिए।
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