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PM Modi Nepal Visit: क्या मोदी का दौरा चीन के घटते प्रभाव का संकेत? जानें पड़ोसियों से भारत के सुधरते रिश्तों की वजह

अपने इस दौरे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने समकक्ष नेपाली पीएम देउबा के साथ द्विपक्षीय वार्ता करेंगे। पीएम का देउबा के साथ लंच का कार्यक्रम भी है। दोनों देशों के बीच सात अहम समझौते होंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह दौरा कूटनीतिक लिहाज से काफी अहम माना जा रहा है। आइए समझते हैं क्यों?

बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक दिवसीय दौरे पर पड़ोसी देश नेपाल के लुंबिनी पहुंचे हैं। प्रधानमंत्री ने यहां लुंबनी में मायादेवी मंदिर में पूजा की, पवित्र पुष्कर्णी तालाब और अशोक स्तंभ की परिक्रमा की। भारत की मदद से बन रहे बुद्धिस्ट कल्चरल सेंटर के भूमि-पूजन में भी शामिल हुए।

अपने इस दौरे पर वह नेपाली पीएम देउबा के साथ द्विपक्षीय वार्ता भी करेंगे। पीएम का देउबा के साथ लंच का कार्यक्रम भी है। इस दौरान दोनों देशों के बीच सात अहम समझौते होंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह दौरा कूटनीतिक लिहाज से काफी अहम माना जा रहा है।

पांचवी नेपाल यात्रा-
2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी की यह पांचवी बार नेपाल यात्रा है। वहीं, नेपाल के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा दो बार भारत आ चुके हैं। 2017 और हाल ही में 2022 में उन्होंने भारत की यात्रा की थी।

नेपाल में प्रमुख रूप से दो राजनीतिक पार्टियों का दबदबा है। पहला कम्युनिस्ट पार्टी और दूसरा नेपाली कांग्रेस। अभी नेपाली कांग्रेस पार्टी की सरकार है। 13 जुलाई 2021 को ही शेर बहादुर देउबा प्रधानमंत्री बने थे। इसके पहले 2018 से 2021 तक कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल के केपी शर्मा ओली प्रधानमंत्री थे। केपी शर्मा के कार्यकाल के दौरान भारत-नेपाल के रिश्तों में काफी खटास आई थी।

विदेश मामलों के जानकार प्रो. प्रदीप सोमवंशी कहते हैं, ‘शर्मा कम्युनिस्ट विचारधारा के थे और वह चीन के प्रभाव में थे। उन दिनों चीन की राजदूत का दखल सीधे प्रधानमंत्री से लेकर नेपाल के राष्ट्रपति कार्यालय तक था। इससे भारत और नेपाल के बीच कई विवाद शुरू हो गए थे। दोनों देशों में तनाव की स्थिति बन गई थी।’

प्रो. सोमवंशी के मुताबिक, ‘ नेपाल और चीन के बीच नजदीकियां बढ़ने का असर भारत पर पड़ेगा। नेपाल पर ज्यादा प्रभाव डालकर चीन उसकी जमीन का इस्तेमाल भारत के खिलाफ कर सकता है। यह सबसे खतरनाक स्थिति होगी। ऐसे में भारत को हर हाल में नेपाल से अपने रिश्ते सही रखने होंगे, वहीं नेपाल को भी चीन से सावधान रहने की जरूरत है।’

रक्षा विशेषज्ञ डॉ. महेश करंदीकर भी यही मानते हैं। वह कहते हैं, ‘जब से देउबा प्रधानमंत्री बने हैं, भारत-नेपाल के रिश्तों में सुधार देखने को मिला है। यह अच्छी बात है। नेपाल को श्रीलंका के हालातों से सीख लेनी चाहिए। अगर नेपाल किसी भी तरह से चीन पर निर्भर हो जाता है तो आने वाले समय में उसकी हालत बहुत बुरी हो जाएगी। भारत-नेपाल के बीच अच्छे रिश्ते दोनों के लिए जरूरी हैं

विदेश मामलों के जानकार आदित्य पटेल कहते हैं, ‘चीन के कर्ज तले दबा श्रीलंका बर्बाद हो गया है। आर्थिक, सामाजिक स्थिति को काफी नुकसान पहुंचा है। लोग भूखे सोने को मजबूर हैं। महंगाई चरम सीमा पर है। ऐसे समय में भी चीन ने अपना कर्ज न तो माफ किया और न ही ब्याज पर कोई छूट दी, लेकिन श्रीलंका को भारत का सहारा मिला। इस कठिन परिस्थिति में भारत ने श्रीलंका की न केवल आर्थिक मदद की बल्कि खाद्य, तेल व अन्य जरूरी संसाधन भी मुहैया करा रहा है। इससे दोनों देशों के बीच रिश्ते जहां, मजबूत हो रहे हैं, वहीं श्रीलंका और चीन के बीच दूरियां बढ़ती जा रही हैं।’

आदित्य ने कहा, ‘श्रीलंका और नेपाल ही नहीं पिछले कुछ साल में चीन ने भूटान, म्यांमार, मालदीव में भी भारत के रिश्तों को खराब करने की कोशिश की थी। हालांकि, समय रहते भारत ने इन सभी को संभाल लिया। कोरोना के दौरान भारत ने भूटान को काफी मदद दी। इसी तरह म्यांमार में राजनीतिक हालात खराब थे। सेना ने वहां की सत्ता पर कब्जा कर लिया था। इसके बाद पूरी दुनिया ने म्यांमार को मदद भेजना बंद कर दिया। भारत ने म्यांमार सेना की इस कार्रवाई की तो निंदा की, लेकिन वहां के लोगों के लिए मदद जरूर जारी रखी। मालदीव में भी चीन ने मुख्य विपक्षी पार्टी के साथ मिलकर भारत विरोधी आंदोलन शुरू करवाया। हालांकि, सत्ताधारी पार्टी ने इस आंदोलन को ज्यादा तवज्जो नहीं दिया। इससे दोनों देशों के बीच रिश्ते अभी भी काफी अच्छे हैं।’

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