उत्तराखंड का राज्य पुष्प कहे जाने वाला बुरांश(Rhododendron) औषधीय गुण से भरपूर है लेकिन इस बार इस बहुगुणकारी फूल पर भी लॉक डाउन की मार पड़ी है। अल्मोड़ा के सरकारी फलसंरक्षण केन्द्र में इस बार बुरांश का एक लीटर जूस भी नहीं बन पाया है।
पहाड़ के जंगलों में होने वाला बुरांश औषधीय गुण से भरपूर है। हृदय के लिए गुणकारी होने के साथ ही कई व्याधियों में बुरांश फायदेमंद बताया जाता है।बुरांस या बुरुंश (रोडोडेंड्रॉन / Rhododendron) सुन्दर फूलों वाला एक वृक्ष है।
गर्मियों के दिनों में ऊंची पहाड़ियों पर खिलने वाले बुरांश के सूर्ख फूलों से पहाड़ियां भर जाती हैं। हिमाचल प्रदेश में भी यह पैदा होता है। बुरांश हिमालयी क्षेत्रों में 1500 से 3600 मीटर की मध्यम ऊंचाई पर पाया जाने वाला सदाबहार वृक्ष है।
बुरांस के पेड़ों पर मार्च-अप्रैल माह में लाल सूर्ख रंग के फूल खिलते हैं। बुरांस के फूलों का इस्तेमाल दवाइयों में किया जाता है, वहीं पर्वतीय क्षेत्रों में पेयजल स्रोतों को यथावत रखने में बुरांस महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
बुरांश(Rhododendron)— हृदय रोगियों के लिए माना जाता है गुणकारी
बुरांस(Rhododendron) के फूलों से बना शरबत हृदय-रोगियों के लिए बेहद लाभकारी माना जाता है। बुरांस के फूलों की चटनी और शरबत बनाया जाता है, ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी लोग बुरांश के मौसम् के समय घरों में बुरांस की चटनी बनवाना नहीं भूलते। बुरांस की चटनी ग्रामीण क्षेत्रों में काफी पसंद की जाती है।
इसी के चलते बसंत ऋतु में खिलने वाले बुरांश (Rhododendron)नाम का यह फूल काफी पसंद किया जाता है ओर लोग इसे संरक्षित करते हैं। इसे जूस के रूप में रखा जाता है।
कई लोग घरों में इसका जूस बनाते हैं तो कई उद्यान विभाग के सरकारी फल संरक्षण केन्द्र में इसका जूस बनाते हैं। अल्मोड़ा में गर्मी के सीजन में बुरांश का जूस बनाने के इच्छुक लोग भारी संख्या में उद्यान विभाग के दफ्तर पहुंचते थे। इस बार वहां एक लीटर जूस भी नहीं बन पाया।
पिछले वर्ष अल्मोड़ा जनपद में 22 हजार लीटर बुरांश का जूस बनाया गया था जिसमें दर्जनों महिलायें इस काम से जुड़ी थी लेकिन इस बार एक लीटर
जूस भी नहीं बन पाया है। भी लाँक डाउन के कारण नही बनने से महिलाओं के सामने रोजी रोटी का संकट है।
बताते चलें कि पहाड़ों में बड़े उधोग धंधे नही होने से छोटे-छोटे उद्योगों में ही लोग रोजगार करते है।
अल्मोड़ा के धौलादेवी, लमगड़ा सहित कई क्षेत्रों में भारी संख्या में बुरांश होता है। अप्रैल माह में ही बुरांश के फूलों को तोड़कर फूलों का जूस बनाया जाता है। जो स्वाद और स्वास्थ्य दोनों के लिए बेहतर होता है।
जिला उद्यान अधिकारी टीएन पांडे ने बताया कि पिछले वित्तीय वर्ष में कुल 37 हजार लीटर फल उत्पाद बनाए गए थे। जिसमें 22 हजार लीटर जूस ही बुरांश का था लेकिन इस बार लॉक डाउन हो जाने के कारण अप्रैल से अब तक एक लीटर जूस का उत्पादन भी नहीं हो पाया है।
महिलाओं की आजीविका हुई प्रभावित
बताते चलें कि बुरांश के फूलों को तोड़ने लेकर जूस बनाने तक अधिकांश महिलायें ही काम करती हैं जिनसे उनका रोजगार भी चलता है। कई महिलायें तो इन्ही दो महिनों में काम कर पूरे वर्ष का खर्चा चलाते है। अब काम नही मिलने से परेशान है।
बुरांश(Rhododendron) के प्रति लोगों का रुझांन काफी है इसके चलते लोग भी फूलों को चुन कर खुद जूस या स्क्वैश बनाने पहुंचते हैं इस बार लॉक डाउन के चलते यह कार्य ठप रहा जिसका सीधा असर फल संरक्षण केन्द्र में पार्ट टाइम काम करने वाले मजदूरों पर पड़ा है।
ममता नाम की महिला का कहना है कि वह पूरा खर्चा यहीं कार्य कर चलाती है। लेकिन इस बार पिछले दो माह से कोई काम नहीं हो पाया है और जिससे उनकी आजीविका सीधे तौर पर प्रभावित हुई है।
यह भी बताते चले कि जिले में हजारों की संख्या में मई जून मे पर्यटक आते हैं। जो सैकड़ों लीटर बुरांश का जूस खरीदकर अपने घरों को ले जाते थे। इसके साथ ही अप्रैल माह में लाँक डाउन के कारण जूस ही नही बन पाया है।
जिससे इनमें काम करने वाले महिलाओँ को नुकसान तो हुआ ही इसके साथ ही कई बीमारियों को लिए अमृत माना जाने वाला जूस भी मरीजों को नही मिल पाएगा
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