पटना: राजनीति में दलों का गठबंधन हो या वोट हासिल करने का जातीय समीकरण, इसमें बीजेपी को तो महारथ हासिल है। बस बिहार के मामले में 2015 की कसक उसे आज तक टीस मारती है। बिहार की राजनीति में प्रयोग करते हुए अब तक कई दशक गुजर गए। इस लिहाजा भाजपा को कब दो कदम दौड़ जाना है और कब एक कदम पीछे हो जाना है, उसे बखूबी पता है। लेकिन इन सबके बावजूद लालू यादव के माय यानि मुस्लिम और यादव वोट बैंक में सेंध लगा पाना उसके लिए सपने जैसा ही है। कोशिश तो कई दफे की गई लेकिन हर बार भाजपा मात खा गई। इसीलिए अब बिहार में पार्टी एक नए प्लान को गढ़ने के जुगाड़ में है।
भाजपा और राजद का एम वाई समीकरण
राष्ट्रीय जनता दल के सरकार में रहते भाजपा ये समझ चुकी थी कि एम वाई समीकरण में घुसपैठ करना असम्भव सा है। फिर भी भाजपा के रणनीतिकारों ने बिहार से मुस्लिम नेता में शाहनवाज हुसैन को और यादव नेता में हुकुमदेव नारायण यादव और नंदकिशोर यादव को मौका दिया कि वो एम वाई समीकरण को तोड़ कर दिखाएं। इसके लिए हुकुमदेव यादव को एमपी बनने के बाद केंद्रीय मंत्री मंडल में भी जगह दी गई। वो कपड़ा,खाद्य-प्रसंस्करण मंत्री,कृषि राज्य मंत्री और भूतल परिवहन मंत्री तक बनाए गए। वो खुद तो जीतते रहे पर ओवर ऑल वोट ट्रांसफर कराने में असफल रहे।
फिर नंदकिशोर को मिला जिम्मा
यादव नेता में लालू यादव के विकल्प के तौर पर नंद किशोर यादव के पीछे भाजपा ने पूरी ताकत झोंक दी। इन्हें 1998 में प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया। पथ निर्माण और स्वस्थ विभाग का मंत्री भी बनाया गया। पर ये भी लालू के एम वाई समीकरण में घुसपैठ कर भाजपा में वोट ट्रांसफर कराने में नाकाम ही साबित हुए। इसके बाद भाजपा ने तेजस्वी यादव के बरक्स भाजपा नेता नित्यानंद राय को सामने खड़ा किया।
नित्यानंद राय विधायक से एम पी और फिर गृह राज्य मंत्री भी बने। भाजपा के बिहार प्रभारी भूपेंद्र यादव ने नित्यानंद राय को प्रदेश अध्यक्ष तक बनाया। लेकिन इनका भी हाल वही हुआ जो अन्य का हुआ। मुस्लिम मतों में सेंधमारी को ध्यान में रखते भाजपा ने शाहनवाज हुसैन को केंद्रीय मंत्री भी बनाया। पर इनका भी यही हाल हुआ। सो अब भाजपा एम वाई समीकरण पर ज्यादा माथापच्ची करने से बेहतर अन्य श्रोतों से वोट अर्जित करने का प्लान बना रही है, इस पर बकायदा काम भी शुरू हो गया है।
भाजपा का LK प्लान
बीजेपी इन दिनों अपने LK यानि लव-कुश प्लान पर काम कर रही है। इसी वजह से भाजपा इन दिनों कुर्मी और कुशवाहा वोट पर ध्यान केंद्रित किया है। मतलब साफ है कि इन वोटों का वाहक बने Nitish Kumar अब अपनी अंतिम पारी खेल रहे है। इनके बाद ऐसा कोई नहीं जो कुर्मी और कुशवाहा वोट पर सियासी खेल खेल सके। ऐसे में भाजपा ने तुरुप का ने पत्ता सम्राट चौधरी को बनाया है। उन्हें विधान परिषद में प्रतिपक्ष का नेता बनाया। कुर्मी की राजनीति के लिए इनके पास अनुभवी नेता प्रेम रंजन पटेल हैं। इनके अलावा राजीव रंजन और सरोज रंजन पटेल भी हैं।
इसके अलावा इनके फोल्ड में जदयू से नाराज चल रहे नेता आर सी पी सिंह भी हैं। भाजपा इन दिनों अब एम वाई के विकल्प के रूप में लव कुश को जोड़ कर लालू यादव के एम वाई समीकरण के विकल्प के रूप में आजमाना चाहती है। अब अपने इस नए अभियान में कुर्मी या कुशवाहा को भाजपा प्रदेश अध्यक्ष की कमान मिल जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
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