केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में मतदाता सूची में संशोधन का काम एक दफा फिर सवालों के घेरे में आ गया है .
पिछले महीने 15 सितंबर से नए मतदाताओं के रजिस्ट्रेशन, नाम हटाने, सुधारने और जगह छोड़कर जा चुके या मर चुके मतदाताओं के नाम हटाने को लेकर विशेष संशोधन प्रक्रिया अपनी रफ़्तार से चल रही थी. लेकिन मंगलवार को जम्मू ज़िला प्रशासन की ओर से जारी किए गए एक आदेश ने केंद्र शासित राज्य की राजनीति में उबाल पैदा कर दिया है.
मंगलवार को जारी किए गए इस आदेश में कहा गया कि पिछले एक साल से जो लोग जम्मू जिले में रह रहे हैं वो मतदाता सूची में अपना नाम शामिल करवा सकते हैं. केंद्र शासित प्रदेश के 20 ज़िलों में से यह आदेश केवल जम्मू के जिला अधिकारी ने ज़ारी किया है, जिसने सब सियासी दलों का ध्यान आकर्षित किया है.
इसके बाद कश्मीर घाटी के सभी क्षेत्रीय विपक्षी दलों समेत कांग्रेस और ग़ुलाम नबी आज़ाद की हाल में बनी डेमोक्रेटिक आज़ाद पार्टी ने इसकी कड़ी आलोचना की है.
पार्टियों का आरोप है कि बीजेपी जम्मू-कश्मीर में अपनी साख बचाने की भरपूर कोशिश कर रही है. साथ ही राजनीतिक दलों ने ज़िला प्रशासन पर पूरी प्रक्रिया में पारदर्शिता न होने के आरोप भी लगाए.
पार्टियों की सख़्त प्रतिक्रिया के बाद मंगलवार शाम जम्मू जिला उपायुक्त अवनी लवासा ने ये आदेश वापिस ले लिया है. आदेश वापस लिए जाने से पहले बीबीसी हिंदी ने अवनी लवासा से बात करने की कोशिश थी.
इससे पहले मतदाता सूची अपडेट करने पर जम्मू कश्मीर के मुख्य निर्वाचन अधिकारी हृदेश कुमार सिंह के बयान के बाद कश्मीर की सियासी पार्टियां लामबंद हो गई थीं.
चुनाव अधिकारी ने इस प्रक्रिया में बाहरी राज्यों के मतदाताओं को शामिल करने की बात कही थी. इसके विरोध में क्षेत्रीय दलों ने आपत्ति दर्ज करवाते हुए चुनाव आयोग के फैसले का विरोध किया था. बाद में चुनाव आयोग ने सर्वदलीय बैठक बुला कर सभी सियासी पार्टियों की चिंता दूर करते हुए अपनी सफाई दी थी.
जम्मू ज़िला उपायुक्त अवनी लवासा की ओर से जारी आदेश के अनुसार, विशेष संशोधन प्रक्रिया के दौरान जम्मू ज़िले में मतदाताओं का रजिस्ट्रेशन सुनिश्चित करने के लिए ‘सभी तहसीलदारों को जरूरी फील्ड वेरिफिकेशन करनी है.
इसके बाद उन लोगों को आवास प्रमाण पत्र जारी करने के लिए अधिकृत किया गया है, जो एक साल से ज्यादा समय से जम्मू जिले में रह रहे हैं.
आदेश में उन दस्तावेजों की सूची भी जारी की है, जिन्हें निवास के प्रमाण के तौर पर स्वीकार किया जा सकता है.
जम्मू-कश्मीर में परिसीमन आयोग की रिपोर्ट के आधार पर फोटो मतदाता सूचियों के विशेष सारांश संशोधन का कार्य 15 सितंबर से जारी है, जो 25 अक्टूबर तक जारी रहेगा. सोमवार को बैठक कर चुनाव आयोग ने मतदाता सूची की प्रगति की समीक्षा की थी.
इस बैठक में सभी जिलों के अधिकारियों को इस प्रक्रिया में तेजी लाने के निर्देश दिए थे.
आधिकारिक सूत्रों ने बीबीसी हिंदी को बताया है कि अब तक लगभग छह लाख नागरिकों ने अपना वोट बनवाने के लिए आवेदन किया है. इनमें से कितने नागरिकों के वोट रजिस्टर होंगे ये पूरी प्रक्रिया के खत्म होने पर ही पता चलेगा.
आधिकारिक सूत्रों का कहना है की जम्मू ज़िले से अब तक 50 हज़ार से भी कम आवेदन हासिल हुए हैं.
कश्मीर घाटी के विपक्षी दलों को डर है कि अगर जम्मू-कश्मीर में ‘सामान्य रूप से रहने वाले’ लोग बड़ी संख्या में मतदाता सूची में जगह पा गए तो वे हमेशा के लिए इस क्षेत्र में मतदाताओं की गणितीय स्थिति को बदल देंगे.
जम्मू-कश्मीर में ‘सामान्य रूप से रहने वालों’ की संख्या का कोई आधिकारिक आंकड़ा माजूद नहीं है लेकिन अनुमान के मुताबिक जम्मू कश्मीर में बड़ी संख्या में बाहरी राज्यों से मजदूर और प्राइवेट सेक्टर में कर्मचारी बसे हुए हैं और अगर इनमें से अधिकतर लोग यहाँ अपने मत का इस्तेमाल करना चाहेंगे तो वे चुनावी तस्वीर बदल सकते हैं .
पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने इस आदेश को डोगरा संस्कृति को पहला झटका बताया है.
वहीं, नेशनल कांफ्रेंस का कहना है कि जम्मू-कश्मीर में 25 लाख गैर-स्थानीय मतदाताओं को जोड़ने की योजना को आगे बढ़ाया जा रहा है.
महबूबा मुफ्ती ने इसे ये डोगरा संस्कृति, पहचान, रोजगार और व्यवसाय को पहला झटका बताया है.
उन्होंने ट्वीट में लिखा , “जम्मू-कश्मीर के बीच धार्मिक और क्षेत्रीय विभाजन पैदा करने के भाजपा के प्रयासों को विफल किया जाना चाहिए क्योंकि चाहे वह कश्मीरी हों या डोगरा, हमारी पहचान और अधिकारों की रक्षा तभी संभव होगी जब हम सामूहिक लड़ाई लड़ेंगे.”
नेशनल कांफ्रेंस ने कहा कि भाजपा चुनावों से ‘डरती’ है और जानती है कि वह बुरी तरह हारेगी. पार्टी का कहना है कि सरकार, जम्मू-कश्मीर में 25 लाख गैर-स्थानीय मतदाताओं को जोड़ने की अपनी योजना पर काम कर रही है.
जम्मू में कांग्रेस प्रवक्ता रविंद्र शर्मा ने कहा, “ये स्थानीय मतदाताओं की शक्ति को कम करने के लिए भाजपा का गेम प्लान है .
घाटी के वरिष्ठ कम्युनिस्ट नेता, सीपीएम के मोहम्मद यूसुफ तारिगामी ने इसे गैर-स्थानीय लोगों को मतदान का अधिकार देने की एक व्यापक योजना की शुरुआत बताया है.
ग़ुलाम नबी आज़ाद की पार्टी (डेमोक्रेटिक आज़ाद पार्टी ) के महासचिव राजिंदर सिंह चिब ने बीबीसी को बताया, “भाजपा को इस बात की भनक लग चुकी है की उनके पैरों के नीचे से सियासी ज़मीन खिसकना शुरू हो चुकी है. यही वजह है कि भाजपा वोटर लिस्ट के साथ छेड़खानी कर रही है.”
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