पिथौरागढ़. उत्तराखंड के सुदूर पहाड़ी इलाकों में स्वरोजगार को अपनाकर मत्स्यपालन के क्षेत्र में नाम कमाने का एक उदाहरण पिथौरागढ़ के कनालीछीना क्षेत्र का ‘आदर्शमत्स्यग्राम डूंगरी’ है. इस क्षेत्र में ग्रामीणों ने मछली पालन के उद्देश्य से कठिनाईयों का सामना करके अपने गांव की तस्वीर बदल दी है. इस पहल के परिणामस्वरूप, लगभग 150 परिवार अच्छी आमदनी कर रहे हैं और इसके आदर्शक रूप से उन्हें ‘आदर्श ग्राम’ घोषित किया गया है.
ग्रामीण परिवेश में संसाधनों का उचित उपयोग कर अपने गांव में स्वरोजगार को अपनाने का उदाहरण डूंगरी गांव ने प्रस्तुत किया है. पहाड़ों में जंगली जानवरों के हमले से कई गांव खेती छोड़ने के मजबूर हो चुके हैं, लेकिन डूंगरी गांव के लोगों ने मत्स्यपालन के क्षेत्र में अपने स्वरोजगार की मिसाल प्रस्तुत की है. मत्स्य विभाग के सहयोग से पानी की उपलब्धता के बाद, ग्रामीण परिवारों ने मछली पालन के माध्यम से आत्मनिर्भरता की पथ पर कदम बढ़ाया है. डूंगरी गांव को आदर्श ग्राम घोषित किया गया है क्योंकि यहां के परिवारों ने स्वरोजगार के माध्यम से अच्छी आमदनी करने का संदेश दिया है. मत्स्य विभाग के अधिकारी डॉ रमेश चलाल ने यह बताया कि पानी की उपलब्धता वाले क्षेत्रों में भी मत्स्यपालन के लिए ग्रामीणों की रुचि बढ़ रही है और यह लोगों की आजीविका को मजबूती देने में मदद कर सकता है
डूंगरी गांव से प्रेरित होकर आज पिथौरागढ़ के कई ग्रामीण लोग मछली पालन के व्यवसाय से जुड़ गए हैं. डूंगरी के स्थानीय निवासी हेमराज बिष्ट ने बताया कि मत्स्य विभाग के सहयोग से उनके गांव के ग्रामीण सभी सीजन में एक तालाब से 60 हजार रुपये तक कमाई कर रहे हैं, और उन्होंने ज्यादा मछली उत्पादन के लिए सरकारी सहायता की मांग भी की है. आदर्श ग्राम डूंगरी में आज 200 से अधिक मत्स्य तालाब हैं, जहां हर साल लगभग 80 कुंतन के मछलियों का उत्पादन हो रहा है. यहां मत्स्य उत्पादन से ग्रामीणों ने अपने गांव की जीवनशैली को बेहतर बनाने का काम किया है, और इसके लिए वे अलग-अलग प्रजातियों जैसे रेनबो ट्राउट, चाइनीज कार्प, इंडियन कॉर्प्स और पानगास की मछलियों का उत्पादन कर रहे हैं.
Share this content: