सियासत में दोस्ती-दुश्मनी कभी स्थायी नहीं रहती. सीएम नीतीश कुमार के रुख को देखकर तो यह असल में साबित होता है. कल के धुर विरोधी आज बेहद कट्टर समर्थक हो सकते हैं. नीतीश कुमार ने कई बार ऐसे कदम उठाए हैं जो हर बार ये संकेत देने वाले रहे हैं कि बिहार की राजनीति में बड़ा बदलाव होने वाला है.
एक तरफ देश में पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों की घड़ी आ गई है तो दूसरी ओर आम चुनाव भी चौखट तक आ पहुंचे हैं. विधानसभा चुनावों और लोकसभा चुनाव के बीच जो बचा हुआ खाली समय होगा, वह नेताओं के इधर से उधर भागने का हो सकता है. कोई किसी का साथ छोड़ेगा, तो कहीं किसी का हाथ थामेगा. कहीं किसी की अफवाह उड़ेगी और कहीं किसी की अटकलें होंगी. कदम फूंक-फूंक कर रखे जाएंगे. या तो सब ही अपने लगेंगे या फिर किसी पर यकीन करने को दिल नहीं करेगा. ये सब तो जब होगा, तब होगा लेकिन अभी के लिए ध्यान खींचा है बिहार सीएम की एक बात ने, उनके एक बयान ने.
सीएम नीतीश का ऐसा बयान, दोस्त-दुश्मन दोनों परेशान
तकरीबन 24 घंटे पहले मंच पर खड़े होकर नीतीश कुमार ने ऐसी बात कह दी है कि दोस्त कन्फ्यूज हैं कि क्या उन्होंने दुश्मनी का दांव चल दिया है तो वहीं दुश्मन सोचने पर जुट गया है कि आखिर नीतीश कुमार से दुश्मनी हुई किस बात पर थी. पर नीतीश तो नीतीश हैं, अपनी नीति चलकर वो निकल गए हैं अगली रणनीति के लिए. असल में मामला ये है कि, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक बड़ा बयान दिया है.
मोतिहारी में बोले- जितने लोग हमारे हैं, सब साथी हैं
गुरुवार को वह मोतिहारी में केंद्रीय विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में शामिल होने पहुंचे थे. यहां सीएम नीतीश कुमार ने कहा है कि उनकी और बीजेपी की दोस्ती कभी खत्म नहीं होगी. दरअसल, सीएम नीतीश जिस कार्यक्रम में शामिल होने पहुंचे थे, वहां राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर भी मौजूद थे. इसके अलावा कार्यक्रम में कई बीजेपी नेता भी शामिल थे. दीक्षांत समारोह के दौरान जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के भाषण देने की बारी आई तो उन्होंने कहा,’जितने लोग हमारे हैं, सब साथी हैं.
‘हमारी दोस्ती कभी खत्म नहीं होगी’
सीएम नीतीश यहीं नहीं रुके, उन्होंने कहा, छोड़िए ना भाई. हम अलग हैं आप अलग हैं. इसको छोड़ दीजिए. इससे क्या मतलब है. हमारा दोस्ती कहियो खत्म होगा? (हमारी दोस्ती कभी खत्म होगी?). चिंता मत कीजिए, जब तक जीवित रहेंगे, तब तक आप लोगों (BJP) से संबंध बना रहेगा. हम सब मिलकर काम करेंगे. यह बात उन्होंने राष्ट्रपति, राज्यपाल को देखते हुए और बीजेपी नेताओं की तरफ इशारा करते हुए कही.
…तो आखिर क्या करने वाले हैं नीतीश कुमार
यानी कि जिस बीजेपी और एनडीए से एक साल पहले नीतीश हाथ छुड़ाकर और गांठ खोलकर भागे थे, आज फिर उसके साथ दोस्ती की बात कर रहे हैं. खुद बीजेपी वाले भी नहीं समझ पाए कि माजरा क्या है, लेकिन ये पहली बार नहीं है कि सीएम नीतीश ने ऐसा दांव फेंका हो कि दोस्त-दुश्मन दोनों एक-दूसरे को दीदें फाड़कर देखने लगे. वह पहले भी ऐसा कर चुके हैं, जिसने चौंकाया ही है.
बीजेपी नेता संजय मयूख के घर खरना खाने गए थे नीतीश कुमार
इसी साल के मार्च की बात है. चैती छठ का मौका था. बिहार में कार्तिक छठ की तरह ही इस चार दिवसीय पर्व को भी उसी धूमधाम से मनाया जाता है. बिहार में छठ पूजा सिर्फ आध्यात्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि ये पॉलिटिकल सोशल इंजीनियरिंग भी है. इसी चैती छठ के मौके पर बीजेपी नेता संजय मयूख के घर खरना खाने का आयोजन था. सीएम नीतीश भाजपा नेता संजय मयूख के घर खरना का प्रसाद खाने पहुंच गए थे. खरना चार दिन के चलने वाले चैती छठ पर्व का दूसरा दिन होता है, खरना के प्रसाद का महत्व इसलिए है, क्योंकि यह अधिक से अधिक लोगों में बांटने की कोशिश होती है और जो भी ये प्रसाद खा लेता है, ऐसा मानते हैं कि उससे कोई बैर नहीं रहा, वह अपनी ही जमात का आदमी हुआ. तो क्या उस दिन खरना के बहाने अपनी दोस्ती ही गाढ़ी करने पहुंचे थे.
जी-20 में पीएम मोदी से की गर्मजोशी से मुलाकात
बहुत दूर न जाएं तो पिछले ही महीने की बात है. सितंबर में देश में जी20 समिट आयोजित की गई थी. इसमें राज्यों के मुख्यमंत्री भी आमंत्रित थे. जाहिर है सीएम नीतीश कुमार भी इसमें शामिल हुए, लेकिन इसी दौरान आई एक फोटो ने हालात बदल दिए, जज्बात बदल दिए. दरअसल एक तस्वीर में दिख रहा है कि पीएम मोदी और सीएम नीतीश कुमार बहुत ही हंसते हुए प्रेम से मिल रहे हैं. इस तस्वीर ने याद दिला दिया साल 2017, जब पीएम मोदी के साथ नीतीश कुमार की ऐसी ही एक मुलाकात हुई और नीतीश कुमार महागठबंधन छोड़कर एनडीए में शामिल हो गए. बिना कुछ बोले एक तस्वीर ने यह अफवाहें फैलवा दीं कि सीएम नीतीश बीजेपी में शामिल हो सकते हैं.
बीजेपी से समय-समय पर दिखाते रहे हैं प्रेम!
ये तो रहीं ऐसी बातें जो बीजेपी के साथ उनकी दबी-छिपी और दिल में बाकी रह गई दोस्ती को उजागर करती हैं, लेकिन कुछ ऐसे भी वाकये हैं, जब नीतीश उनके ऊपर भड़क गए, जिनके साथ वह गठबंधन हाथ थामें चल रहे हैं. दरअसल विपक्षी एकता को लेकर नीतीश कुमार ने देशभर में दौड़-दौड़ के यात्राएं की हैं, लेकिन सामने आया कि कांग्रेस ने जिस तरह से विपक्षी गठबंधन पर अपना कब्जा जमाकर छाता डालने की कोशिश की है. नीतीश को ये नागवार गुजरा है. उन्होंने इस गठबंधन का नाम ‘इंडिया’ रखने पर आपत्ति जताई थी.
जब INDIA गठबंधन नाम से भड़के सीएम नीतीश कुमार
सूत्रों के मुताबिक, बैठक में नीतीश कुमार ने INDIA नाम पर कड़ा ऐतराज जताया था. उन्होंने कहा कि इस नाम का क्या मतलब है? माना जा रहा है कि नीतीश की आपत्ति अंग्रेजी में नाम को लेकर थी. इतना ही नहीं कहा ये भी जा रहा है कि कांग्रेस की ओर से गठबंधन के नाम पर भी कोई चर्चा नहीं की गई, ऐसे में नीतीश इससे भी परेशान हैं. जानकारों की मानें तो सभी विपक्षी दलों को एकजुट करने में नीतीश कुमार की अभी तक अहम भूमिका रही है. लेकिन कांग्रेस ने जिस तरह से गठबंधन को हाईजैक किया, उससे जदयू और आरजेडी नेताओं में नाराजगी है. इतना ही नहीं नीतीश कुमार, लालू यादव और तेजस्वी यादव बैठक के बाद हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी शामिल नहीं हुए. ये वाकया 19 जुलाई को सामने आया था.
राजद के एमएलसी पर भड़क गए थे नीतीश
इससे पहले 10 जुलाई की बात थी, जब नीतीश कुमार महागठबंधन विधानमंडल दल की बैठक में नाराज हो गए थे. बैठक में नीतीश कुमार आरजेडी MLC सुनील सिंह पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ फोटो खिंचाने पर भड़क गए थे. सूत्रों के मुताबिक, नीतीश के आरोपों पर सुनील सिंह भड़क गए और उठ कर जवाब देने लगे. हालात इतने बिगड़ गए कि डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव को बीच-बचाव करना पड़ा था. सूत्रों के मुताबिक, विधानमंडल दल की बैठक में नीतीश कुमार न सिर्फ आरजेडी MLC सुनील सिंह पर, बल्कि कांग्रेस और अपनी पार्टी के कुछ विधायकों पर भी नाराज दिखे.
सियासत में दोस्ती-दुश्मनी कभी स्थायी नहीं रहती. सीएम नीतीश कुमार के रुख को देखकर तो यह असल में साबित होता है. कल के धुर विरोधी आज बेहद कट्टर समर्थक हो सकते हैं. नीतीश कुमार ने कई बार ऐसे कदम उठाए हैं जो हर बार ये संकेत देने वाले रहे हैं कि बिहार की राजनीति में बड़ा बदलाव होने वाला है.
क्या फिर से आवाज दे रही है सुशासन बाबू की अंतरआत्मा?
परिस्थितियां करीब-करीब 2017 जैसी ही बन गई हैं. जब नीतीश ने महागठबंधन से अलग होने का फैसला लिया था. तब आईआरसीटीसी घोटाले में तेजस्वी का नाम उछला था और अंतरात्मा की आवाज पर सुशासन बाबू ने अपनी राहें आरजेडी से अलग कर ली थीं. अब तो एक घोटाले में सप्लीमेंट्री चार्जशीट तक दायर हो चुकी है. लैंड फॉर जॉब स्कैम लालू परिवार पूरी तरह फंसा हुआ है. ऐसे में जेडीयू और आरजेडी गठबंधन के भविष्य को लेकर भी सवाल खड़े हो रहे हैं.
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