Site icon Memoirs Publishing

कांग्रेस को अब भी क्यों है नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू से उम्मीद ?

कांग्रेस

2014 के लोकसभा चुनाव के बाद राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन यानी एनडीए की कोई अहमियत नहीं थी. यह गठबंधन एक प्रतीक से ज़्यादा नहीं था.

2014 से 2020 के बीच एनडीए के कई अहम साथी अलग भी हुए। इनमें 2020 में शिरोमणि अकाली दल और 2019 में अविभाजित शिव सेना एनडीए से अलग हो गए थे।

लेकिन मोदी के तीसरे कार्यकाल में एनडीए अचानक से प्रासंगिक हो गया है। यह प्रासंगिकता बीजेपी की ज़रूरत के कारण बढ़ी है।

यानी एनडीए अब बीजेपी की ज़रूरत है, न कि इसमें शामिल बाकी दलों की। लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले बिल्कुल उलट स्थिति थी।

जनता दल यूनाइटेड प्रमुख और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के अलावा तेलगू देशम पार्टी के प्रमुख चंद्रबाबू नायडू के बिना मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री नहीं बन सकते हैं, लेकिन अतीत में ये भी कई बार एनडीए छोड़ चुके हैं।

ऐसे में सवाल उठ रहा है कि नायडू और नीतीश क्या कांग्रेस के नेतृत्व वाले गठबंधन इंडिया की तरफ़ भी रुख़ कर सकते हैं?

सरकार बनाने के लिए 272 सीटें चाहिए, लेकिन बीजेपी को 240 सीटें ही मिली हैं।

बीजेपी के लिए नायडू और नीतीश अहम हैं। टीडीपी को 16 और जदयू को 12 सीटें मिली हैं और दोनों मिलकर नई सरकार में 28 सीटों का योगदान करेंगे।

नीतीश कुमार और नायडू की पार्टी ने खुलकर कहा है कि वे एनडीए के साथ हैं।

लेकिन यह भी कहा जा रहा है कि दोनों एनडीए में बेहतर डील और अपनी शर्तों पर रहेंगे। अगर ऐसा नहीं होता है, तो नीतीश और नायडू के लिए इंडिया गठबंधन भी कोई अछूत नहीं है।

कांग्रेस ने भी नीतीश और नायडू के लिए अपना दरवाजा खुला रखा है।

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश का कहना है कि लोकसभा चुनाव के नतीजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ जनादेश है।

उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा, “मोदी अब कार्यवाहक प्रधानमंत्री बन चुके हैं। देश ने इनके खिलाफ प्रचंड जनादेश दिया है, लेकिन ये डेमोक्रेसी को डेमो-कुर्सी बनाना चाहते हैं।”

कांग्रेस का इशारा

चुनाव के नतीजे आने के बाद बुधवार को कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के आवास पर इंडिया गठबंधन के नेताओं की एक अहम बैठक हुई.

बैठक के बाद मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि दो घंटे लंबी चली बैठक में कई सुझाव आए हैं. उन्होंने एक तरह से ये इशारा भी किया कि सही समय आया तो इंडिया गठबंधन सरकार पलटने से नहीं हिचकेगी.

उन्होंने कहा, “हम बीजेपी सरकार के विपरीत जनादेश को साकार करने के लिए उचित समय पर उचित क़दम उठाएंगे.”

इस बैठक में गठबंधन की 21 पार्टियों के 33 नेता शामिल हुए थे. इन नेताओं का कहना था कि टीडीपी नेता चंद्रबाबू नायडू और जदयू नेता नीतीश कुमार के लिए दरवाज़े खुले रखे जाएं और गठबंधन सही वक़्त और सही मौक़े का इंतज़ार करे.

अंग्रेज़ी अख़बरा द हिंदू ने लिखा है कि नेताओं में इस बात को लेकर भी सहमति बनी कि बीजेपी सरकार के ख़िलाफ़ संसद में विश्वास प्रस्ताव लाने को लेकर गठबंधन के नेता सतर्क रहेंगे क्योंकि ये उनके लिए नए रास्ते खोल सकता है.

सूत्रों के हवाले से अख़बार ने ये भी लिखा है कि समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने कहा है कि इंडिया गठबंधन “ब्रैंड मोदी” को ख़त्म करने में सफल रहा है.

वहीं इन सबमें तृणमूल कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव अभिषेक बनर्जी एकमात्र नेता थे जिनका दावा था कि चुनाव जीत चुके बीजेपी के कई नेता पार्टी के साथ संपर्क में हैं.

बीजेपी का एकता प्रदर्शन

वहीं बुधवार को दिल्ली स्थित प्रधानमंत्री आवास पर एनडीए की भी एक अहम बैठक हुई. चुनाव के नतीजे आने के बाद ये एनडीए की पहली बैठक थी.

इस बैठक में 16 पार्टियों के 21 नेता शामिल हुए. इसमें बीजेपी की तरफ़ से नरेंद्र मोदी, जेपी नड्डा, राजनाथ सिंह और अमित शाह शामिल हुए.

वहीं इसमें टीडीपी के चंद्रबाबू नायडू, जेडीयू के नीतीश कुमार, शिव सेना के एकनाथ शिंदे गुट के एकनाथ शिंदे, जनता दल सेक्युलर के एचडी कुमारस्वामी, लोक जनशक्ति पार्टी रामविलास के चिराग पासवान, एचएएम के जीतन राम मांझी, आरएलडी के जयंत चौधरी, एनसीपी के प्रफुल्ल पटेल और असम गण परिषद के प्रमोद बोरो शामिल हुए.

कांग्रेस के ‘खुले दरवाज़े’

जयराम रमेश ने जाति सर्वे और बिहार को विशेष दर्जा जैसे मुद्दों पर प्रधानमंत्री मोदी और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बीच रहे मतभेद को लेकर टिप्पणी की.

उन्होंने एनडीटीवी का एक ट्वीट रीपोस्ट करते हुए लिखा, “क्या नरेंद्र मोदी इस बयान पर कायम रहेंगे कि जाति जनगणना देश को जाति के नाम पर बाँटने की राजनीति है?”

मीडिया में ख़बरें हैं कि चुनाव के नतीजे आने के बाद किंगमेकर की स्थिति में पहुंच चुके नीतीश ने देश में जाति जनगणना कराने और बिहार को विशेष दर्जा दिलाने की मांग की है.

एक टेलीविज़न चैनल से बात करते हुए जदयू नेता केसी त्यागी ने कहा है कि “हम चाहते हैं कि अगली सरकार बिहार को विशेष दर्जा दे और देश में जाति जनगणना करवाए.”

जयराम रमेश इतने पर नहीं रुके. उन्होंने फ़रवरी 2019 का मोदी का एक वीडियो शेयर किया, जिसमें मोदी चंद्रबाबू नायडू पर अपने राजनीतिक कार्यक्रमों के लिए सरकारी पैसों का दुरुपयोग करने का आरोप लगा रहे थे.

वीडियो में मोदी ने कहा था, “मेरी सरकार उनसे हिसाब मांगती है, पहले उन्हें दिल्ली के गलियारों में कभी भी हिसाब नहीं देना पड़ेगा. अब मोदी उनसे कहता है, आंध्र प्रदेश के विकास के लिए जो राशि आपको दी गई, टैक्सपेयर का जो पैसा आपको दिया गया, उसकी पाई-पाई का हिसाब दीजिए.”

उन्होंन तंज़ कसा, “और लोगों के उन्हें रिजेक्ट करने के बाद गद्दी पर बने रहने के लिए नायडू से भीख मांग रहे हैं.”

वहीं कांग्रेस नेता कार्ति चिदबंरम ने एक टीवी चैनल से बात करते हुए कहा, “नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू हमारे लिए अनजान नहीं हैं, वो हमारे दोस्त हैं. चंद्रबाबू नायडू मेरे दोस्त हैं. मैं उन्हें 1996 से जानता हूँ और ज़ाहिर है, हम अपने दोस्तों से संपर्क में हैं.”

नीतीश कुमार, बीजेपी और कांग्रेस

2019 में लोकसभा चुनाव नीतीश कुमार बीजेपी के साथ मिलकर लड़े. फिर 2020 में बिहार विधानसभा चुनाव दोनों से साथ मिलकर लड़े.

2022 में बीजेपी से अलग होकर उन्होंने आरजेडी (कांग्रेस के साथ गठबंधन में थी) के साथ हाथ मिलाया. साल भर बाद इंडिया गठबंधन से नाता तोड़ वो एक बार फिर बीजेपी के साथ आ गए.

बीते साल जून में इंडिया गठबंधन की पहली बैठक पटना में हुई थी. इसके लिए पहल नीतीश कुमार ने ही की थी और ये बैठक पटना स्थित उनके आवास पर ही हुई थी.

उस वक्त वो इस गठबंधन का हिस्सा थे और उन्होंने कहा था, “सभी नेता केंद्र में मौजूदा शासन के ख़िलाफ़ एकजुट होकर लड़ने के लिए सहमत हुए हैं.”

लेकिन छह महीने बाद नीतीश कुमार ने महागठबंधन का हाथ छोड़ा और बीजेपी के साथ मिलकर राज्य में सरकार बना ली.

कांग्रेस उनके इसी पार्टी बदलने वाली बात को सामने ला रही है और शायद इसी पर उसकी उम्मीद भी टिकी है .

हालांकि नतीजे आने के बाद बिहार में नीतीश की पार्टी ने जो पोस्टर लगाए उन पर लिखा था, “नीतीश सबके हैं”. इसे भी एक इशारे की तरह देखा जा रहा है.

इमेज स्रोत,X

चंद्रबाबू नायडू और बीजेपी

टीडीपी पहली बार 1996 में एनडीए में शामिल हुई थी और तब चंद्रबाबू नायडू की पहचान आईटी गवर्नेंस को लेकर थी.

टीडीपी जब 2018 में एनडीए से अलग हुई तो चुनाव में भारी नुक़सान उठाना पड़ा था. 2018 में तेलंगाना विधानसभा में टीडीपी के महज़ दो विधायक रह गए थे और 2019 में आंध्र प्रदेश विधानसभा चुनाव में महज़ 23 सीटों पर जीत मिली थी.

टीडीपी इस साल फ़रवरी में एनडीए में शामिल हुई थी और आंध्र प्रदेश विधानसभा चुनाव में 175 में से 135 सीटों पर जीत मिली और 16 लोकसभा सीटें भी उसकी झोली में आईं.

इस शानदार प्रदर्शन के बाद ही चंद्रबाबू नायडू किंगमेकर बनकर उभरे. चंद्रबाबू नायडू एक बार फिर से आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग कर रहे हैं.

इसके अलावा आंध्र प्रदेश की नई राजधानी अमरावती भी उनके एजेंडे में है, जहाँ कंस्ट्रक्शन का काम जल्द ही पूरा करना चाहते हैं.

कहा जा रहा है कि टीडीपी पर निर्भरता के कारण बीजेपी को अपने कई एजेंडे रोकने पड़ सकते हैं. जैसे परिसीमन और हिन्दी भाषा को लेकर बीजेपी को बैकफुट पर आना पड़ सकता है.

इमेज स्रोत,ANI , इमेज कैप्शन,जन सेना के पवन कल्याण के साथ चंद्रबाबू नायडू

चंद्रबाबू नायडू ने बुधवार को कहा है कि वो एनडीए के साथ रहेंगे.

बुधवार को हुई एनडीए की बैठक में दोनों नेता शामिल भी हुए.

कहा जा रहा है कि नीतीश कुमार ने एनडीए की बैठक में खुलकर कुछ मांग नहीं की है लेकिन रेल मंत्रालय की मांग कर सकते हैं.

वाजपेयी सरकार में नीतीश कुमार रेल मंत्री रह चुके थे. बीजेपी सत्ता में रहने के लिए जब-जब एनडीए पर निर्भर रही है तब-तब नीतीश कुमार ने आक्रामक हिन्दुत्व की नीति को आगे नहीं बढ़ने दिया है.

वाजपेयी को राम मंदिर, अनुच्छेद 370 और समान नागरिक संहिता पर एनडीए में शामिल दलों के कारण ही पीछे हटना पड़ा था. हिन्दुत्व की राजनीति से नीतीश कुमार कभी सहमत नहीं रहे हैं. नीतीश की राजनीति कांग्रेस से ज़्यादा मेल खाती है. ऐसे में कांग्रेस ने दरवाज़ा खुला रखा है तो नीतीश को भी यहाँ विचारधारा के स्तर पर कोई असहजता नहीं होगी.

Share this content:

Exit mobile version