उत्तराखंड आंदोलनकारियों के दमन का मुजफ्फरनगर कांड फिर चर्चा में
नैनीताल : उत्तराखंड राज्य आंदोलन के दौरान चर्चित मुजफ्फरनगर कांड का मामला फिर चर्चा में आ गया है। ढाई दशक से इस मामले की निचली अदालत से सुप्रीम कोर्ट तक की लड़ाई लड़ रहे राज्य आंदोलनकारी रमन साह ने अब सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार एसएसपी मुजफ्फरनगर समेत डायरेक्टर जनरल सीबीआई, जिला बार एशोसिएशन मुजफ्फरनगर को रजिस्ट्री के माध्यम से प्रत्यावेदन भेज दिया है।
दो अक्टूबर 1994 को उत्तराखंड राज्य प्राप्ति के लिए आंदोलनकारियों ने दिल्ली कूच किया तो मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहा में उत्तर प्रदेश पुलिस व प्रशासन द्वारा अत्याचार किया गया। इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा इस घटना का संज्ञान लिया गया। 1996 में बर्बर दमन व अत्याचार की घटना के सीबीआई जांच के आदेश दिए। सीबीआई द्वारा उत्तराखंड में 24 हत्या, जिसमें पांच हत्याएं रामपुर तिराहा कांड, सात दुष्कर्म व 17 महिला अस्मिता उल्लंघन के मामले जांच शुरू की गई।
CBI द्वारा महिला अस्मिता उल्लंघन व दुष्कर्म की घटनाओं की 12 चार्जशीट दाखिल की। सात मुजफ्फरनगर की अदालत जबकि पांच देहरादून सीबीआई कोर्ट में। राज्य आंदोलनकारी रमन शाह के मुताबिक रामपुर तिराहा कांड के गवाह कांस्टेबल सुभाष गिरी की तक हत्या कर दी गई। उन्होंने साफ किया है कि यह शिकायत उत्तर प्रदेश पुलिस या प्रशासन के खिलाफ नहीं बल्कि उन पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों के खिलाफ है, जिनके द्वारा आंदोलनकारियों का दमन किया गया। जो उत्तराखंड की अस्मिता के लुटेरे हैं, उन्हें दंड मिलना ही चाहिए। आरोप लगाया कि मुजफ्फरनगर के तत्कालीन डीएम अनंत कुमार सिंह ने व्यक्तिगत प्रभाव से आज तक मुख्य गवाह सुभाष गिरी की हत्या तक का नोटिस नहीं लिया गया।
कहा कि अनंत कुमार सिंह 2019 में रिटायर हो चुका है। लिहाजा अब इस मामले में न्याय अपेक्षित है। उन्होंने पत्र में सुभाष गिरी की हत्या की सूचना जिला जज मुजफ्फरनगर को देने, न्यायालय से जमानत पर चलल रहे अभियुक्तों की जमानत निरस्त करने के लिए प्रयास करने का अनुरोध किया है। कहा कि देश को झकझोर देने वाले निर्भया मामले में सात साल में फैसला आ गया और दोषियों को फांसी तक हो गई मगर इस जघन्य कांड के मामले में 26 साल से न्याय की उम्मीद अधूरी है।