एक और जंग लड़ने की तैयारी में कर्नल कोठियाल
आप के हुवे कोठियाल, उत्तराखंड के लिए बढ़ी जिम्मेदारी
एक और जंग लड़ने की तैयारी में कर्नल कोठियाल
फौज की दुनिया में दुश्मन चिन्हित, राजनीति में होता है पीठ पर वार
क्या पहाड़ के सपनों को साकार करने में सफल होंगे कर्नल कोठियाल?
गुणानंद जखमोला
देश के वीर सपूत कर्नल अजय कोठियाल ने सेना में रहते हुए अनेक ऐसी उपलब्धियां हासिल की हैं जो संभवत देश के किसी अन्य कर्नल ने हासिल नहीं की। जम्मू-कश्मीर में आतंकी गतिविधियों पर नजर रखने के लिए रोजाना मस्जिद में भेष बदल कर जाते थे। उन्होंने सात आतंकवादियों को मुठभेड़ में मार गिराया, मुठभेड़ में आतंकियों की गोली आज भी उनके शरीर में मौजूद है। इस वीरता के लिए उन्हें शौर्य चक्र मिला तो दो बार एवरेस्ट पर फतह हासिल करने के लिए कीर्ति चक्र मिला। उनके उल्लेखनीय सेवा रिकार्ड को देखते हुए विशिष्ट सेवा मेडल भी मिला।
निम के प्राधानाचार्य रहते हुए वो 2013 की आपदा में गंगोत्री में फंसे छह हजार से भी अधिक लोगों के लिए वो देवदूत बने तो आपदा में नष्ट हुए करोड़ों हिन्दुओं की आस्था के केंद्र केदारनाथ धाम के पुनर्निर्माण की राह उन्होंने खोली। लोकनिर्माण विभाग ने केदारनाथ के लिए रास्ता बनाने के लिए तीन साल का समय मांगा, कर्नल कोठियाल ने महज तीन महीने में वो रास्ता तैयार कर दिया। आज जो केदारनाथ धाम है वो कर्नल और उनकी टीम के हौसलों की बदौलत है। सेना में रहते हुए ही कर्नल कोठियाल ने उत्तराखंड के युवाओं के लिए सेना, अर्द्धसैनिक बल, पुलिस में जाने के लिए यूथ फाउंडेशन की स्थापना की। यूथ फाउंडेशन सेना में भर्ती प्रशिक्षण शिविर लगाता है और इसमें युवाओं को निशुल्क रहना-खाना-पीना और डेªस दी जाती है।
यूथ फाउंडेशन अब तक प्रदेश के दस हजार से भी अधिक युवाओं को सेना और पैरामिलिट्री में रोजगार दिला चुका है। मैंने दृढ़संकल्पित और इरादों के पक्के कर्नल का दिल देखा है वो मासूमियत के साथ धड़कता है। मैंने उत्तरकाशी, सोनप्रयाग और देहरादून में कई ऐसे लोगों को देखा है, उनके बारे में लिखा है जिनका जीवन बोझ बन गया था लेकिन कर्नल कोठियाल ने उनका इलाज किया, उन्हें जीने की राह दिखाई।
सेना से रिटायर्ड होने के बाद कर्नल अजय कोठियाल ने 2019 में राजनीति में कदम रखने की शुरूआत की। वो गढ़वाल लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ना चाहते थे। उनकी उपलब्धियों को देखते हुए उम्मीद की जा रही थी कि भाजपा टिकट दे देगी। कर्नल मासूमियत से कहते हैं कि वो चार बार दिल्ली गये लेकिन उन्हें समझ में ही नहीं आया कि नेताओं से मिलें तो कैसे? भाजपा ने उनकी कद्र नहीं की। सूत्रों के अनुसार वो यूकेडी के अध्यक्ष दिवाकर भट्ट से भी मिले। दिवाकर भट्ट ने उनसे अजीबो-गरीब व्यवहार किया। इसके बाद कर्नल अजय कोठियाल मिशन म्यांमार पर चले गये। वहां आराकन आर्मी और वर्मा सरकार के बीच चल रहे गृहयुद्ध के बीच कर्नल कोठियाल और उनकी टीम भारत और वर्मा के बीच बहुत ही महत्वपूर्ण 109 किलोमीटर लंबी सड़क तैयार कर रहे हैं। यह कार्य बहुत ही खतरनाक था। कर्नल की टीम पर विद्रोहियों ने आईईडी से भी हमले किये। इसमें कैप्टन तेजपाल सिंह नेगी समेत कई लोग घायल भी हुए लेकिन कर्नल ने हौसला नहीं छोड़ा। यह सड़क अब तैयार हो रही है।
कर्नल कोठियाल अब राजनीति में आ रहे हैं। एक उनके लिए सबसे अहम जंग है। यहां हर कदम पर चुनौतियां होंगी। सेना में दुश्मनों की पहचान की जा सकती है लेकिन समाज में नहीं। कौन कब धोखा देगा? वार कहां से होगा? कौन दोस्त है और कौन दुश्मन। यह जानना कठिन होता है। राजनीति में शत्रुता और मित्रता स्थायी नहंी। चुनौतियों का पहाड़ है। एक ऐेसे समाज में अपने लिए राह बनानी है जहां मतदाताओं की मानसिकता भाजपा और कांग्रेस की है। आज तक उनके सामने कोई अन्य विकल्प रहा ही नहीं।
कर्नल की रणनीति क्या होगी? पता नहीं लेकिन कर्नल अजय कोठियाल को मैंने नजदीक से देखा है और कुछ समझने की कोशिश की है। वो अपनी जिद और धुन के पक्के हैं। कुशल प्रशासक हैं। अच्छे टीम लीडर हैं। अच्छे इंसान हैं। आर्मी में सीखे अनुशासन को जीवन में उतारते हैं। उनका टारगेट स्पष्ट होता है। लाल निशान लगाकर निशाना लगाते हैं। वो कहते हैॅ कि हम अपनी शर्तों पर राजनीति में आए हैं और हम नहीं बदलेंगे। कर्नल कहां और किस दल में जा रहे हैं, ये सवाल नहीं है। यदि कर्नल की निष्ठा पहाड़ है, पहाड़ियत है और वो उत्तराखंड बदलना चाहते हैं तो हमें उनके राजनीति में आने का इंतजार है। इतना तो विश्वास है कि ये आदमी जो कहता है वो करता है। टूट जाएगा, झुकेगा नहीं। कर्नल कोठियाल को अग्रिम शुभकामनाएं।
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