अदालत में HRA की लड़ाई जीतने के बावजूद क्यों हार गए CRPF-BSF अफसर? दिल्ली हाईकोर्ट ने की सख्त टिप्पणी

अदालत में HRA की लड़ाई जीतने के बावजूद क्यों हार गए CRPF-BSF अफसर? दिल्ली हाईकोर्ट ने की सख्त टिप्पणी

अफसरों ने अपनी याचिका में कहा था कि जब बल के इन कार्मिकों को एचआरए मिल रहा है, तो उन्हें क्यों नहीं मिल सकता। दोनों बलों के अधिकारियों ने अपने केस में संविधान के अनुच्छेद-14 का हवाला दिया था।

देश के दो बड़े केंद्रीय अर्धसैनिक बल ‘सीआरपीएफ’ और ‘बीएसएफ’ के अफसरों ने दिल्ली हाईकोर्ट में ‘एचआरए’ देने की मांग को लेकर एक लंबी लड़ाई लड़ी थी।वे जीत भी गए। गत वर्ष दिसंबर में अधिकारियों को यह उम्मीद जगी थी कि अब उन्हें देर सवेर ‘एचआरए’ मिल जाएगा। दिल्ली उच्च न्यायालय ने गत वर्ष 16 दिसंबर को अपने फैसले में कहा था, जिस तरह से इन बलों में ‘पर्सनल ब्लिो ऑफिसर रैंक’ के नीचे वाले सभी कार्मिकों को एचआरए का फायदा मिलता है, उसी तरह अफसरों को भी वह लाभ दिया जाए। अदालत ने छह सप्ताह में ‘एचआरए’ को लेकर काम पूरा करने का समय दिया था।

हालांकि, फैसले में ये नहीं लिखा था कि ‘एचआरए’ का लाभ कब से देना है। इसके बाद सभी अधिकारी ‘एचआरए’ की राह देखते रहे। केंद्र सरकार ने हाईकोर्ट का फैसला लागू नहीं किया। नतीजा, ‘एचआरए’ का मामला अधर में लटक गया। जब अदालत की अवमानना को लेकर सीआरपीएफ अधिकारी दिल्ली हाईकोर्ट में पहुंचे तो जस्टिस जसमीत सिंह ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा, सात सप्ताह में कोर्ट का यह आदेश लागू नहीं हुआ तो बल के डीजी 23 नवंबर को अदालत में पेश होंगे।

अदालत के आदेशों को अनदेखा किया जा रहा  
दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस जसमीत सिंह ने अपने फैसले में कहा, बार-बार अदालत के संज्ञान में यह बात आ रही है कि किसी फैसले को लागू करने के लिए जो भी समय-सीमा तय की जाती है या कोई निर्देश दिया जाता है, उन्हें अनदेखा किया जा रहा है। कोर्ट ने कहा, गत वर्ष 16 दिसंबर को आदेश दिया था कि छह सप्ताह में ‘एचआरए’ पर काम पूरा करो। वह आदेश अभी तक नहीं माना गया। केवल ‘विशेष अनुमति याचिका’ (एसएलपी) का फाइल होना ही किसी आदेश को लागू न करने का एक बहाना नहीं हो सकता है। यह कोई कारण नहीं है कि उस आदेश का पालन न किया जाए। सीआरपीएफ भी कोर्ट के न्यायिक दायरे से बाहर नहीं है।

कोर्ट के संज्ञान में बार-बार यह बात आ रही कि किसी फैसले का पालन करने के लिए जो भी समय-सीमा निर्धारित की जाती है, उसे अनदेखा कर देते हैं। निर्देशों को नहीं माना जाता। एसएलपी का होना, किसी आदेश के लागू होने से कोई संबंध नहीं है। अब सात सप्ताह में हाईकोर्ट का आदेश लागू नहीं हुआ तो 23 नवंबर को डीजी, अदालत में पेश होंगे। एचआरए देने का फैसला लागू करते समय उसमें विभाग की इच्छाशक्ति दिखनी चाहिए।

सीएपीएफ में एचआरए के लिए लगी थीं दो याचिकाएं
‘एचआरए’ देने की मांग को लेकर सीआरपीएफ और बीएसएफ के करीब डेढ़ दर्जन अधिकारियों ने दिल्ली उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। याचिका में मांग की थी कि इन बलों में सहायक कमांडेंट और उसके ऊपर के रैंक के सभी अधिकारियों को ‘एचआरए’ का फायदा दिया जाए। दिल्ली उच्च न्यायालय ने गत वर्ष 16 दिसंबर को दिए अपने फैसले में कहा था, जिस तरह से बल में ‘पर्सनल ब्लिो ऑफिसर रैंक’ के नीचे वाले सभी कार्मिकों को एचआरए का फायदा मिलता है, उसी तरह अफसरों को भी वह लाभ दिया जाए। अदालत ने छह सप्ताह में ‘एचआरए’ को लेकर काम पूरा करने का समय दिया था। 2019 में बीएसएफ के कैडर अफसरों ने यह केस किया था। उसके बाद 2020 में सीआरपीएफ के अफसरों ने भी दिल्ली हाईकोर्ट के समक्ष अपनी याचिका लगा दी।

ताकि अपने बच्चों को अच्छी जगह पर शिक्षा दिला सकें
इन बलों में सहायक कमांडेंट से नीचे के सभी कार्मिकों को एचआरए मिलता है। वजह, बहुत से कार्मिक इन बलों में दूर दराज के क्षेत्रों में तैनात रहते हैं। वहां परिवार को साथ रखना संभव नहीं हो पाता। अधिकांश कर्मियों की यह सोच रहती है कि वे अपने बच्चों को किसी अच्छी जगह पर शिक्षा दिलाएं। परिवार की जरूरतें ठीक से पूरी हों, इसके लिए पति-पत्नी, दोनों नौकरी करने लगे हैं। बलों के पास खुद के इतने आवास नहीं हैं कि वे सभी कार्मिकों को आवास सुविधा मुहैया कर सकें। इसके मद्देनजर, यह नियम बनाया गया कि ‘पर्सनल ब्लिो ऑफिसर रैंक’ के नीचे वाले सभी कार्मिकों को एचआरए की सुविधा प्रदान कर दी जाए। एचआरए के जरिए वे किसी भी शहर में अपने परिवार को रख सकते हैं। बशर्तें, उन्हें बल की ओर से नॉन अवेलेब्लिटी सर्टिफिकेट ‘एनएसी’ जारी किया जाए। इसी सर्टिफिकेट के आधार पर उन्हें एचआरए की सुविधा मिलती है। वे अपने कैंपस से बाहर कहीं पर भी अपने परिवार को रख सकते हैं।

संविधान के अनुच्छेद 14 का दिया था हवाला 
अफसरों ने अपनी याचिका में कहा था कि जब बल के इन कार्मिकों को एचआरए मिल रहा है, तो उन्हें क्यों नहीं मिल सकता। दोनों बलों के अधिकारियों ने अपने केस में संविधान के अनुच्छेद-14 का हवाला दिया था। इसमें लिखा गया है कि आप एक क्लास के अंदर दूसरा वर्ग नहीं बना सकते। ऐसा तब, जब वहां पर परिस्थितियां एक समान हों। ऐसी स्थिति में सभी के साथ एक जैसा व्यवहार करना होगा। जब उनकी जिम्मेदारियां एक जैसी हैं, तो उनकी सुविधाएं भी एक जैसी होनी चाहिए। समान परिस्थिति वाली जॉब में दो वर्ग नहीं हो सकते। नीचे वाले कार्मिकों को एचआरए मिले और ऊपर वालों को उससे वंचित कर दिया जाए। उच्च न्यायालय के फैसले के बाद अधिकारी भी नॉन अवेलेब्लिटी सर्टिफिकेट के आधार पर एचआरए का फायदा लेने के योग्य हो गए थे। उन्हें लगा था कि अब वे भी एक्स, वाई और जेड श्रेणी के शहरों के आधार पर एचआरए का लाभ लेंगे। केंद्र सरकार में एक्स श्रेणी वाले शहरों में मूल वेतन का तीस फीसदी, वाई श्रेणी के शहरों में बीस फीसदी और जेड श्रेणी के शहरों में दस फीसदी एचआरए मिलता है।

सीएपीएफ की ड्यूटी को लेकर कहा गया
एचआरए के मामले में सातवें वेतन आयोग ने कहा था, हमने देखा है कि सीएपीएफ बहुत मुश्किल ड्यूटी करती है। इसमें कोई शक नहीं है। हमने कार्य स्थल पर जाकर देखा है। उनके रहने की जगह देखी है। कई क्षेत्रों में वह जगह रहने के लायक नहीं होती। आप कहीं भी परिवार रखें, आपको एचआरए मिलेगा। अफसरों से नीचे के रैंक वालों को मिल गया। इसके बाद अफसरों ने अपने बल को प्रतिवेदन दिया। सीआरपीएफ ने उस प्रतिवेदन को गृह मंत्रालय के पास भेज दिया। वहां उस प्रतिवेदन पर विचार करने से मना कर दिया गया। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 31 जुलाई 2017 के कार्यालय ज्ञापन का हवाला दे दिया। उसमें कहा गया था कि एचआरए का लाभ, नीचे के रैंक वालों को ही मिलेगा। अफसरों को नहीं मिलेगा।

सर्विस कंडीशन तो सभी के लिए बराबर
15 मार्च 2018 को डीआईजी ‘प्रशासन’ की तरफ से सिग्नल जारी हुआ। उसमें कहा गया कि गृह मंत्रालय ने कहा है कि नीचे वाले रैंक में ही एचआरए मिलेगा। इसके बाद मामला हाईकोर्ट में पहुंच गया। इस केस में ग्रुप ‘ए’ के कई अधिकारी लोग शामिल रहे। अधिकारियों का कहना था कि सर्विस कंडीशन तो सभी के लिए बराबर हैं। ग्रुप सेंटर में जगह नहीं है तो उन्हें अपना परिवार, बाहर रखना पड़ता है। ऐसे में हमें भी एचआरए दिया जाए। प्रवीण यादव एवं अन्य 11083/2019 और गौरव सिंह एवं अन्य 3370/2020, इन याचिकाओं के आधार पर वह ज्वाइंट आर्डर आया था, जिसमें सभी को ‘एचआरए’ देने की बात कही गई। इसके बाद आरिफ हुसैन व अन्य के द्वारा सिविल कन्टेम्पट केस 628/2023 किया गया था।

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