Israel Hamas War: क्या इजरायल और हमास जंग पर भारत के स्टैंड से अलग था पीएम मोदी का बयान? अरब देशों ने उठाए सवाल

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Israel Hamas War: सात अक्टूबर को इजरायल पर हमास के हमले के बाद से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक्स (पहले ट्विटर) पर कहा था कि इजरायल पर आतंकी हमले की खबर से व्यथित हूं. हमारी संवेदनाए  निर्दोष पीड़ितों के साथ हैं. हम  इस संकट की घड़ी में इजरायल के साथ खड़े हैं.



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Israel Hamas War: सात अक्टूबर को इजरायल पर हमास के हमले के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान और भारत के आधिकारिक बयान को लेकर अरब वर्ल्ड में खलबली मची हुई है. एक्सपर्ट्स का मानना है कि इजरायल पर हमले के बाद मोदी के बयान और भारत के आधिकारिक बयान में अंतर है जो बहुत कुछ बयां कर रहा है.

आईआईएसएस में मिडिल ईस्ट एक्सपर्ट हसन अलहसन कहते हैं कि भारतीय प्रधानमंत्री ने हमास हमले के कुछ ही घंटों के भीतर बहुत ही पक्षपाती रुख अख्तियार किया था. उन्होंने स्पष्ट रुख दर्शाते हुए कहा था कि भारत इस घड़ी में इजरायल के साथ खड़ा है.

अलहसन के इस विचार से सहमति जताते हुए आईआईएसएस में पॉलिटिकल साइंस के प्रोफेसर अब्दुल खालिद अब्दुल्ला ने कहा कि भारत का रुख लंबे समय से फिलिस्तीन के मुद्दे पर एकजुटता से था लेकिन बाद में इजरायल को मान्यता देकर और उसके साथ संबंधों को प्रगाढ़ कर उनके रुख में धीरे-धीरे बदलाव देखने को मिला. आज के समय में भारत का रुख पूरी तरह से इजरायल के पक्ष में है.

 

क्या खाड़ी देशों में रह रहे प्रवासी भारतीयों पर पड़ेगा असर?

इस तरह मौजूदा परिस्थिति में भारत के रुख को अरब वर्ल्ड जिस तरह से देखता है. उसका असर मिडिल ईस्ट या पश्चिम एशिया में रह रहे भारतीय समुदया पर पड़ सकता है. अलहसन ने चिंता जताई कि अगर भारत की आंतरिक राजनीति का असर खाड़ी देशों में रहने वाले प्रवासी भारतीयों तक पहुंचता है तो इससे सांप्रदायिक तनाव बढ़ सकता है.

उन्होंने कहा कि ऐसी स्थिति में हम सांप्रदायिक तनाव बढ़ता हुए देख सकते हैं. हमने 2020 में भी ऐसा देखा था जब दक्षिणपंथी रुझानों की वजह से खाड़ी देशों में मुस्लिमों के विरोध में भावनाएं भड़की थीं.

इस जंग पर भारत के रुख को लेकर अरब देशों में काफी असहजता है. अरब देशों में सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए इसे आसानी से समझा जा सकता है. एक सोशल मीडिया यूजर कहते हैं कि वे (प्रवासी भारतीय) हमारे साथ रहते हैं और दुर्भाग्य से वे खाड़ी देशों में बहुसंख्यक बन गए हैं. वे इजरायल की तुलना में अरब देशों के लिए सबसे बड़ी चुनौती हैं. भारत एक खतरा है, जो बढ़ रहा है.

बता दें कि सात अक्टूबर को इजरायल पर हमास के हमले के बाद से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक्स (पहले ट्विटर) पर कहा था कि इजरायल पर आतंकी हमले की खबर से व्यथित हूं. हमारी संवेदनाए  निर्दोष पीड़ितों के साथ हैं. हम  इस संकट की घड़ी में इजरायल के साथ खड़े हैं.

क्या पीएम मोदी और भारत के आधिकारिक बयान में वाकई अंतर था?

पीएम मोदी की इस पोस्ट के पांच दिन बाद ही भारत ने फिलिस्तीन को लेकर अपना पहला विस्तृत बयान जारी किया था. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बाची ने 12 अक्टूबर को मीडिया ब्रीफिंग में कहा था कि फिलिस्तीन को लेकर भारत की पॉलिसी लंबे समय से एक ही रही है. भारत हमेशा से बातचीत के जरिए आजाद और संप्रभु फिलिस्तीन की वकालत करता रहा है.इसके साथ ही भारत, इजरायल में भी शांति चाहता है. हमारा रुख पहले जैसा ही है.

हालांकि,भारत का यह बयान अरब देशों को हजम नहीं हुआ. जापान टाइम्स के लिए कॉलम लिखने वाले कुनी मियाके बताते हैं कि सोशल मीडिया पर पीएम मोदी का बयान अरब जगत को लेकर भारत के पारंपरिक संबंधों के संदर्भ में अप्रत्याशित है.

उन्होंने कहा कि मैंने कई ऐसे पश्चिमी देशों के बयान पढ़े हैं, जिन्होंने हमास की निंदा की है. फिर मैंने भारत के बयान पर भी गौर किया. 12 अक्टूबर को भारत ने आधिकारिक तौर पर जो बयान दिया वह दरअसल पीएम मोदी के पांच दिन पहले के बयान से अलग था.

माइकल कुगलमैन ने भारत की फॉरेन पॉलिसी पर गौर करते हुए कहा कि पीएम मोदी के बयान से भारत और इजरायल के बीच संबंधों को मजबूती मिली है लेकिन फिर भी भारत पूरी तरह से यह दर्शा नहीं सकता कि वह पूरी तरह से इजरायल के पक्ष में खड़ा है.

उन्होंने कहा कि मध्यपूर्व के हाल के भूराजनीतिक घटनाक्रमों से भारत और इजरायल के संबंध मजबूत हुए हैं लेकिन भारत और फिलिस्तीनियों के बीच कुछ दूरी आई है. भारत 2020 के अब्राहम समझौते का पालन करता है, जिसमें  भारत अरब देशों के साथ-साथ इजरायल के साथ मजबूत संबंधों को बढ़ावा देने की बात कही गई है लेकिन साथ ही I2U2 क्वाड और नए ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर जैसी कुछ परियोजनाएं भी शामिल हैं.

उन्होंने कहा कि इन सबके बावजूद भारत पूरी तरह से यह नहीं दर्शा सकता कि वह पूरी तरह से इजरायल के पक्ष में है. वह अभी भी दो स्टेट सॉल्यूशन का समर्थन करता है और बीते कुछ सालों में उसने कई संयुक्त राष्ट्र प्रस्तावनों में इजरायल के खिलाफ वोट किया है और फिलिस्तीनी शरणार्थियों के लिए मानवीय सहायता को मंजूरी दी है.