आसानी से पाए शत्रु पर विजय : चाणक्य नीति

जैसा कि हम सभी जानते है कूटनीति के लिए प्रसिद्ध अर्थशास्त्र के महान ज्ञानी आचार्य चाणक्य ने अपनी नीतियों से  नंद वंश  का नाश किया  था. लेकिन वो कभी उग्र नहीं हुए और हर परिस्थिति का धैर्य के साथ सामना किया. उनकी ये  नीतियां ही थीं जिनके बदौलत उन्होंने एक साधारण से बालक चंद्रगुप्त को भारत का सम्राट बना डाला. चाणक्य ने अपनी नीतियों को नीति शास्त्र यानी ‘चाणक्य नीति’ में समाहित किया है. इसके 7वें अध्याय में वो एक श्लोक के माध्यम से बताते हैं कि मनुष्य को अपने दुश्मनों को किस प्रकार पराजित करना चाहिए. आइए जानते हैं उनकी इस नीति के बारे में…

अनुलोमेन बलिनं प्रतिलोमेन दुर्जनम्। आत्मतुल्यबलं शत्रु विनयेन बलेन वा।।

आचार्य चाणक्य कहते हैं कि बलवान शत्रु को उसके अनुकूल व्यवहार करके, दुष्ट शत्रु को उसके प्रतिकूल व्यवहार करके और अपने समान बल वाले शत्रु को विनय अथवा बल से वश में करना चाहिए. चाणक्य का कहना है कि शत्रु को कभी कमजोर नहीं समझना चाहिए और वो कैसा है, कितना बलवान है ये देखकर ही उसके प्रति आगे बढ़ना चाहिए.

अनुलोमेन बलिनं प्रतिलोमेन दुर्जनम्। आत्मतुल्यबलं शत्रु विनयेन बलेन वा।।

आचार्य चाणक्य कहते हैं कि बलवान शत्रु को उसके अनुकूल व्यवहार करके, दुष्ट शत्रु को उसके प्रतिकूल व्यवहार करके और अपने समान बल वाले शत्रु को विनय अथवा बल से वश में करना चाहिए. चाणक्य का कहना है कि शत्रु को कभी कमजोर नहीं समझना चाहिए और वो कैसा है, कितना बलवान है ये देखकर ही उसके प्रति आगे बढ़ना चाहिए.

चाणक्य के मुताबिक सब लोगों के साथ अलग-अलग व्यवहार करके काम निकालना चाहिए. यदि शत्रु हमसे अधिक शक्तिशाली है तो उसके अनुकूल चलना चाहिए, यदि दुश्मन दुष्ट या बुरा है तो उससे उलटा चलना चाहिए और अगर दुश्मन अपने समान ही शक्तिशादी है तो या तो उसे बल से जीतना चाहिए या फिर विनयपूर्वक व्यवहार करके वश में करना चाहिए.

 

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