जमरानी की अधूरी कहानी – न मिली बिजली ,न मिला पानी
देवभूमि की बेहद अहम घोषणा … जमरानी बांध …. एक ऎसी परिकल्पना जो कई दशक बाद भी अधूरी है … सरकारें आई और चली गयी घोषणाएँ हुई और भुला दी गयी लेकिन जमरानी की कहानी आज भी अधूरी है ये अलग बात है कि अब जब चुनाव सर पर है तो ये जमरानी का जिन्न फिर बाहर निकल आया है और इन दिनों चर्चाओं में है … हैरानी की बात है कि किसी समय में महज 61 करोड़ में बनने वाली परियोजना आज सरकारी व्यवस्था के थपेड़े सहते हुए 2700 करोड़ तक पहुंच गई है….. हालत ये है कि जमरानी बांध का काम भले ही आगे नहीं बढ़ पाया है लेकिन बजट ने खूब उछाल मारी है ……
उत्तराखंड के हल्द्वानी, नैनीताल, ऊधम सिंह नगर और यूपी में बरेली के लाखों लोग 46 साल से जिस जमरानी बांध का इंतजार कर रहे हैं, उसका निर्माण कागजों में करोड़ों रुपए खर्च होने के बावजूद अभी तक शुरू नहीं हो सका है. नवंबर 2018 में नैनीताल हाईकोर्ट के निर्देश के बाद सरकारी एजेंसियों ने बांध से जुड़ी सारी कागजी कार्रवाई तो पूरी कर ली, लेकिन बजट की घोषणा के आगे सब अटका हुआ है. 25 करोड़ की लागत से शुरू हुआ प्रोजेक्ट 2700 करोड़ को पार कर चुका है, लेकिन उत्तराखंड, यूपी और केंद्र में भी बीजेपी की पूर्ण बहुमत की सरकार होने के बावजूद इस ओर किसी ने गंभीरता नहीं दिखाई. साल 1975 में जमरानी बांध के शिलान्यास के बाद देश में 13 बार लोकसभा चुनाव हो चुके हैं. हर चुनाव में राजनीतिक दल जमरानी बांध को बनाने का दावा करते हैं, लेकिन चुनावों के बाद मानों सब भूल जाते हैं….
पढ़िए आखिर क्या है जमरानी बांध परियोजना –
1975 में बांध निर्माण की स्वीकृति.
करीब 9 किलोमीटर की लंबाई में 130 मीटर ऊंचा और 480 मीटर चौड़ा बांध.
46 साल पहले बांध की लागत 61 करोड़.
वर्तमान में बांध परियोजना की लागत 2700 करोड़ के आसपास, यानी 46 सालों में लागत 39 गुना बढ़ गई.
61 करोड़ में बनने वाली परियोजना 2700 करोड़ तक पहुंच गई
46 साल का वक्त कम नहीं होता. 61 करोड़ में बनने वाली परियोजना 2700 करोड़ तक पहुंच गई है. जमरानी बांध का काम एक इंच भी आगे नहीं बढ़ पाया है. इतने सालों से जमरानी बांध केवल कागजों पर बनता जा रहा है. हर लोकसभा, विधानसभा चुनावों के दौरान एक ही मुद्दा की जमरानी बांध बनेगा, अब तक नेताओं के इस बयान में भी कोई कमी नहीं आई है.
जमरानी बांध बना चुनावी मुद्दा
जमरानी बांध परियोजना से जुड़े लोग रिटायर हो गए लेकिन योजना कागजों तक ही सीमित रही. हालांकि, अब इस परियोजना के लिए पर्यावरण विभाग से स्वीकृति मिल गई है. अब सरकार को वित्तीय संसाधन जुटाने होंगें, आम जनता के मुताबिक जमरानी बांध केवल चुनावी वायदा बनकर रह गया है.
पर्यटन के क्षेत्र में होगा लाभ
जमरानी बांध के निर्माण से उत्तराखंड को करीब 9458 हेक्टेयर और उत्तर प्रदेश को 47607 हेक्टेयर में अतिरिक्त सिंचाई की सुविधा मिलेगी. इस बांध से 14 मेगावाट बिजली का उत्पादन भी प्रस्तावित है, जबकि उत्तराखंड को 52 क्यूबिक मीटर पानी भी पेयजल के लिए मिल सकेगा. वहीं, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड को 57 और 43 के अनुपात में पानी बंटेगा. उम्मीद है की इस परियोजना से पर्यटन गतिविधियों में भी तेजी आएगी, लेकिन इन सब के बीच देखने वाली बात ये है इतने लंबे इंतजार के बाद जमरानी बांध फाइलों से निकल कर कब ज़मीन पर साकार होता दिखाई देता है।
जल्द शुरू हो सकता है काम
पिछले दिनों जब उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हल्द्वानी के दौरे पर आए थे तो उन्होंने कई योजनाओं की घोषणा की थी. इस दौरान सीएम ने परियाजनाओं की प्रोग्रेस रिपोर्ट के बारे में भी जानकारी दी थी. जिसमें, जमरानी बांध के बारे में सबसे पहले बताया गया कि केंद्र सरकार ने 2700 करोड़ की स्वीकृति दे दी है, काम जल्द शुरू हो सकता है. तो चलिए प्रदेश की लाखों जनता के साथ हम और आप करते हैं एक और दौर का इंतज़ार
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