ग्रीष्म- शीत सब धोखा है, राजधानी मांगों मौका है – किशोर उपाध्याय
ग्रीष्म- शीत सब धोखा है, राजधानी मांगों मौका है – किशोर उपाध्याय
बोल उत्तराखंडी हल्ला बोल, धोखेबाजों पर धावा बोल।
‘भराड़ीसैण में स्थाई राजधानी की मांग के साथ किशोर उपाध्याय करेंगे सरकार की धोखेवाजी के खिलाफ, विरोध प्रदर्शन
उत्तराखंड राज्य आंदोलन का बड़ा कारण था कि देश की विकास नीतियों का लाभ उत्तर प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्र को नहीं मिल पा रहा था, और उम्मीद थी कि उत्तराखंड पर्वतीय आकांक्षाओं का राज्य बनेगा और राज्य की राजधानी गैरसैण (भराड़ीसैण) में बनेगी, यह भी लगभग तय था। राज्य बनने के साथ ही राजधानी का मामला भी उलझा दिया गया, गैर जरूरी क्षेत्रों को पर्वतीय राज्य में जोड़कर, पर्वतीय राज्य की अवधारणा को नुकसान पहुँचाया गया। राज्य में पहला मुख्यमंत्री और राज्यपाल गैर पहाड़ी पृष्ठिभूमि के व्यक्तियों को बना दिया गया। अच्छा होता कि कोई पहाड़ का विधायक मुख्यमंत्री बनता और कोई हिमालय क्षेत्र का वरिष्ठ राजनयिक राज्यपाल।
वैसे जिन विधायकों को पहली विधान सभा का सदस्य मनोनीत किया गया था वो किन परिस्थियों में विधायक बने थे, ये हम सबको पता है। उस वक्त अगर, उक्रांद के नेतृत्व वाली संयुक्त संघर्ष समिति चुनाव बहिष्कार जैसा आत्मघाती कदम न उठाती तो शायद राज्य की दिशा और दशा भी आज कुछ और ही होती। उक्रांद ने इसका नुकसान भी भुगत लिया है।
राजधानी का मामला राजनीति का अखाडा बना हुआ है। विजय बहुगुणा जी केदारनाथ आपदा के बाद राजनीतिक भंवर में फंसे तो उन्होंने भराड़ीसैण में विधानसभा भवन की नींव रख दी। मजे की बात है कि एक तरफ उन्होंने गैरसैण में विधानसभा भवन की नींव रखी और दूसरी तरफ देहरादून में विधानसभा और सचिवालय बनाने की मंजूरी दे दी। त्रिवेंद्र रावत जी को लगा कि मैं इतिहास के पन्नों में नाम अंकित करने से रह गया हूँ तो उन्होंने ग्रीष्मकालीन राजधानी की घोषणा कर दी (हालाँकि यह तय नहीं किया कि ग्रीष्म काल का क्या मतलब है? किस महीने से किस महीने तक वहां पर सरकार रहेगी? घोषणा होने के पहले वर्ष में तो सरकार एक दिन भी वहां नहीं रही)।
फिर एक सत्र भराड़ीसैण (गैरसैण) विधान सभा में हो रहा है। उत्तराखंड विधान सभा के सत्र की औसत 2 या 3 दिन से अधिक नहीं है। समय मुश्किल से 18 से 20 घंटे। प्रति मिनट विधानसभा सत्र चलाने का खर्च क्या आता होगा, कोई खोजी पत्रकार इस पर खोज करे। पी.टी.आई. के हवाले से आई खबर के अनुसार, संसद सत्र में प्रति मिनट खर्चा 2.5 लाख रुपए आता है।
उत्तराखंड विधानसभा में भी 1 लाख रुपये से कम तो क्या ही आता होगा?
तो जिस राज्य में प्रसूता को अस्पताल पहुँचाने के लिए एम्ब्युलेंस में डीजल डालने का पैसा न हो, जहाँ नवजात की मृत्य डॉक्टरों की कमी के कारण हो रही हो , गर्भवती सड़क में बच्चा जनने को मजबूर हो, क्या वहां पर यह ग्रीष्मकालीन और शीतकालीन के नवाबी शौक उचित हैं ?
क्या ये ग्रीष्मकालीन और शीतकालीन, राज्य की जनता, शहीदों, राज्य आंदोलनकारियों, की आकांक्षाओं के साथ धोखा नहीं है ?
आईये, इस धोखे का विरोध करें? हमारी मांग होगी कि भराड़ीसैण (गैरसैण) को तत्काल पूर्ण राजधानी घोषित किया जाये
नोट – ये वरिष्ठ कांग्रेस नेता किशोर उपाध्याय के निजी विचार हैं जो उन्होंने मीडिया को जारी किया है । यूके पोस्टमैन ने सिर्फ उनकी बातें पाठको तक पहुचाई है।
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