भ्रष्टाचारियों के विकास के बीस साल उत्तराखंड में घोटालेबाजों को बचाती रही सरकारें
भ्रष्टाचारियों के विकास के बीस साल
उत्तराखंड में घोटालेबाजों को बचाती रही सरकारें
चन्द्र प्रकाश बुड़ाकोटी
देहरादून। भ्रष्टाचार पर देवभूमि में भले ही राज्य सरकारों ने लाख डंका बजा लिया हो, परन्तु हकीकत यह है कि प्रदेश में भ्रष्टाचारियो पर नकेल कसने में इन बीस सालो में कोई भी सरकार कामियाब नहीं हो पाई है। नवोदित उतराखण्ड राज्य गठन से वर्त्तमान तक सैकड़ो करोड के घोटाले घपले हुए जिसकी मार राज्य की आज भी जनता झेल रही है। जिन अफसरों ने इनमे मुख्य भूमिका निभाई और वे जांचो में दोषी पाए गए वे सभी एक के बाद एक जांचों में बरी ही नही हुए बल्कि मलाईदार पदों पर आसीन होते चले गए। आज भी इनके द्वारा किये गए घपले घोटालो की जाँच की फाइलें रसुक के चलते शासन और बिभागो की अलमारियो की शोभा बढ़ा रही है।राज्य निर्माण से आज तक पहाड़ी राज्य उतराखण्ड में भ्रष्टाचार को बर्दाश्त न करने का ढोंग करने वाली भाजपा कांग्रेस या मिलीजुली सरकारों ने भ्रष्टाचारियो को जमकर पनाह दी,नतीजा प्रदेश में एक के बाद एक करोडो की बित्तीय अनिमित्ताये,घोटाले सामने आते रहे। हकीकत यह है कि उतराखण्ड की सरकारें सिर्फ समाचार पत्रों की सुर्खियों के लिए जांच की बात कर अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ती रही। कुम्भ घोटाला ट्रांसफार्मर घोटाला,बिजली मीटर,ढेंचा बीज,चावल घोटाला जैसे सैकड़ो छोटे बड़े घोटाले घपले राज्य में होते रहे।दो हजार सत्रह से जीरो टॉलरेंस का राग अलापने वाली त्रिबेन्द्र सरकार पर भी भ्रष्टाचार को संरक्षण देने के आरोप लगातार लगते रहे,लेकिन त्रिबेन्द्र भी इस मामले के नाकाम साबित हुए। प्रदेश में दसवें सीएम के रूप में तीरथ रावत को राज्य की कमान भाजपा आलाकमान ने सौप दी है,क्या नए सीएम इनके खिलाफ डंडा चला पाएंगे यह बड़ा सवाल है? उतराखण्ड की बात करे तो इस प्रदेश में वैसे भी पहले तो कोई भ्रष्ट अधिकारी आसानी से जाल में फसता नहीं, अगर कोई गाये बगाए फंस भी गया तो राजनीतिक सरक्षण सेटिंग गेटिंग से अभयदान पा जाता है। इससे भी बड़ा सवाल तो यह है कि आखिर कब तक भ्रष्ट और दागी लोग सरकार से संरक्षण पाते रहेंगे ? सवाल सरकार की उस मुहीम पर भी खड़े होते है जिसमे दावा किया जाता है की राज्य में भ्रष्टाचार कत्तई बर्दास्त नहीं किया जायेगा।
शिक्षा बिभाग 1
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शिक्षा बिभाग में 2004 से 2007 के बीच एससीआरटी में 54 लाख कि बित्तीय अनिमित्ता का खुलासा हुवा था जाँच के 22 बिंदु में से 18 बिंदु में तत्कालीन शिक्षा महानिदेशक सी एस ग्वाल दोषी पाए गए थे । लेकिन अब उन पर लगे सारे आरोपों से उन्हें मुक्त कर दिया गया है। इसमे हैरान करने वाली बात यह है कि उन्हें उसी सिस्टम ने आरोपमुक्त किया है जिसकी जांच में वे दोषी साबित हुए थे। आदेशो में कहा गया ग्वाल पर लगे आरोप गंभीर प्रवृति के नहीं होते है। इसलिए उनको आरोप मुक्त कर दिया जाता है। तो क्या यह मान लिया जाए कि सरकार की नजर में 54 लाख रुपए का घोटाला गंभीर नहीं है ?
सिचाई बिभाग 2
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वही दूसरी और सिचाई बिभाग के यांत्रिक उपकरण भंडार खंड देहरादून में डेढ़ करोड़ का फर्जीवाड़ा 2011 में सामने आया जिसकी जाँच में तत्कालीन अधिशासी अभियंता बिजेंद्र कुमार,सहायक अभियंता एम के खरे एवं जूनियर अभियंता महेश गुप्ता को दोषी ठहराया गया इन सभी अधिकारियो को 6 माह निलंबित करने के बाद उन्हें बाईज्जत बरी कर दिया गया जबकि इनकी कार्यो कि जाँच जिसको साशन के निर्देशों पर की तत्कालीन मुख्य अभियंता लोक निर्माण बिभाग द्वारा कि गई थी जाँच अधिकारी ने अपनी रिपोर्ट में लिखा की खंड के उक्त अधिकारियो की मिली भगत से सरकार को 47 लाख का चूना लगाया गया लेकिन सरकार और साशन ने सरकारी राजस्व को ठिकाने लगाने वाले इन अधिकारियो से न ही बसूली की और न ही दण्डित बल्कि इन्हे फर्जी बाड़े की एवज में मलाई दार पदों से नवाज दिया। .
उद्यान बिभाग 3
उद्यान बिभाग के सबसे बड़े अल्मोड़ा मटेला कोल्ड स्टोर प्रकरण जिसमे कि डेढ करोड़ का फटका बिभाग और किसानो को लगाया गया साथ ही 40 करोड़ के इस स्टोर को बैंक में आज भी गिरवी रखा गया है। इसके दोषी तत्कालीन प्रमुख सचिव बिभापुरी दास दो पदोनात्ति ले सेवानिवृत हो चुकी है । वही अपर सचिव संजीव चोपड़ा मूल कैडर वापिस जा चुके है। तत्कालीन निदेशक उद्यान विनोद सिंघल इस घोटाले के बाद मलाई दार पद प्रदूषण बोर्ड के सदस्य सचिव पद के बाद उन्हें भूमि सरक्षण बिभाग के निदेशक पद पर भी नवाजा गया है। ये सभी अधिकारी करोडो के घोटाले के आरोपी है। इनके साथ ही आधा दर्जन अफसरों की सहभागिता जाँच में सामने आई थी लेकिन कार्यवाही क्या हुई घोटालो के बाद पदोनात्ति ? करोडो के इस घोटाले की जाँच जब सीबीसीआईडी ने की तो एक और अधिकारी जो की उस समय सयुक्त निदेशक उद्यान थे को पूर्ण रूप से दोषी माना इनके खिलाफ पुलिस रिपोर्ट तक दर्ज करने की सिफारिस सीबीसीआई डी ने की थी। लेकिन घोटाले को अंजाम देने के बाद सरकार की सरपरस्ती ने इनकी भी नैय्या पार लगा दी और सयुक्त निदेशक से अपर निदेशक उद्यान पद पर पदोनात्ति कर फिर निदेशक तक बना डाला जो आज रिटायर हो चुके है।
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