लो पहाड़ियो, मनाओ इस पागल की बर्बादी का जश्न!
लो पहाड़ियो, मनाओ इस पागल की बर्बादी का जश्न!
गुणानंद जखमोला की फेसबुक वाल से मार्मिकता भरा लेख लिया गया है
जवानी के 10 साल चकबंदी में बर्बाद किये, अब एक साल में लुटा दी कमाई
आठ लाख की आबादी, 200 लोग भी लेते सामान तो चल जाती दुकान
अति सर्वत्र वर्जियेतः, यानी अति सबसे खतरनाक होती है। यह कहावत एक पागल कपिल डोभाल पर अक्षरतः लागूू होती है। ये पागल, निकम्ॅमा अपने परिवार पर पिछले दस साल से बोझ बना हुआ था। पागल की एक धुन होती है जिस पर वह नाचता है। इस पागल को पहाड़ प्रेम है। पहाड़ के बंजर खेतों में खुशहाली की फसल लहलहाते देखना चाहता है। वहां के गांव आबाद होते देखना चाहता है। सो, पागल ने गरीब क्रांति अभियान छेड़ा। पहाड़ में चकबंदी के लिए लड़ता रहा। साल दर साल निकलते रहे। चकबंदी तो हुई नहीं, लेकिने कपिल का पागलपन बढ़ता रहा। पिता और फौजी भाई ने शादी करवा दी। पत्नी परेशान और पिता दुखी। बूढ़े पिता को लगा कि शादी के बाद तो अक्ल आएगी। भला पागलों को अक्ल आती तो उन्हें पागल कहता कौन?
खैर, परिवार में नये सदस्य का आगमन हुआ तो पागल को लगा कि कुछ रोटी-पानी का जुगाड़ कर लेता हूूं। एक साल पहले पर्वतीय उत्पादों की दुकान पहाड नाम से संचालित करनी शुरू की। दुकान में पिता बैठने लगे। कोदा-झंगोरा, तुअर, गहथ, भट्ट, लाल चावल जैसे विशुद्ध उत्पादों की बिक्री शुरू हो गयी। पिता खुश थे कि कपिल कुछ जिम्मेदारी समझने लगा। मैं एक-दो बार जोगीवाला में इस दुकान पर उत्पाद लेने गया और मेरी गलती कि फिर जाना नहीं हुआ।
अभी कपिल की पोस्ट पढ़ी तो उदास हो गया। कपिल ने लिखा कि एक साल पहले किराये पर खोली दुकान बंद होने जा रही है। कारण, दुकान घाटे में चल रही है। उसके मुताबिक उसने यह बात सोशल मीडिया पर इसलिए लिखी कि कुछ लोग कहते है कि नया काम शुरू करने पर पहाड़ी खूब शोर मचाते हैं लेकिन असफल होने पर चुप्पी साध लेते हैं। इसलिए कपिल ने लिखा कि वो अपनी दुकान मई में बंद कर देगा। उसने कुछ सुझाव भी मांगे हैं।
मैं और मेरे समान पहाड़ की दुहाई देने वाले चुनिंदा लोग भी कपिल की दुकान से सामान खरीद कर प्रोत्साहित नहीं कर सके। हम महीने में हजार-दो हजार रुपये की दारू पी जाते हैं। एक हजार बीड़ी-सिगरेट पर खर्च कर देते हैं लेकिन 500 रुपये के जैविक उत्पाद नहीं लेते। यदि कपिल की दुकान पर महीने में 200 ग्राहक भी उसके उत्पादों को लेते तो उसकी दुकान चल निकलती। लेकिन अफसोस, इस देश में जब आम आदमी की सुनवाई नही तो पागलों की कौन सुनता है? कपिल बंद कर दो दुकान। हम पहाड़ी सेफ साइड चुनते हैं। नौकरी को ही बेहतर आप्शन मानते हैं। हम पहाड़ी अपने लोगों को स्पेस ही नहीं देते। हमें अपनो की खुशी सहन भी नहीं होती। कपिल,ये दुनिया उतनी अच्छी नहीं हैॅ जितनी तुम सोचते हो? तो पहाड़ियो, सोच क्या रहे हो, मनाओ, इस पागल की बर्बादी का जश्न? ़
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