आखिर जीत सिंह रावत और चंदोला को ही क्योँ बनाया गया निशाना
राकेश चंद्र डंडरियाल
देहरादून। कहानी की शुरुवात 1956 में बनी फिल्म “जागते रहो” के एक मशहूर गाने से ” सच्चे फाँसी चढ़दे वेखे झूठा मौज उड़ाए लोकी कैहंदे रब दी माया मैं कहंदा अन्याय,ते कि मैं झूठ बोलया “? . कुछ कुछ इसी तरह का वाकया आजकल उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में देखने को मिल रहा है , जहाँ बिना सोचे समझे व बगैर तथ्यों की जांच किए ही प्रमुख सचिव रमेश कुमार सुधांशु ने अधिशासी अभियन्ता जीत सिंह रावत को निलंबित कर दिया, अधिशासी अभियन्ता का दोष केवल इतना था कि जिस समय बड़ासी पुल का एप्रोच मार्ग बना था वे उस समय PMGSY लोक निर्माण विभाग कीर्तिनगर में कार्यरत थे। इस एप्रोच मार्ग से उनका कुछ लेना देना ही नहीं था। तो क्या सवाल प्रमुख सचिव रमेश कुमार सुधांशु की कार्यशैली पर नहीं उठने चाहिए ? नाम न छापने की शर्त पर उत्तराखंड के एक बरिष्ठ अधिकारी ने राजसत्ता न्यूज़ को बताया कि बाहरी प्रदेशो के अधिकारी एक ख़ास बर्ग बिशेष और प्रदेश बहुल के अधिकारीयों को बचाने में लगे हुए हैं, और उत्तराखंड के अधिकारीयों को दण्डित किया जा रहा है। जिसका उदहारण आपके सामने है।
उन्होंने कहा कि कुछ सवाल सचिव रमेश कुमार सुधांशु से भी किए जाने चाहिए , मसलन एप्रोच मार्ग का जो कॉन्ट्रैक्ट मैसर्स दून एसोसिएट्स को दिया गया था उसकी शुरुवात कॉट्रैक्ट के हिसाब से 15 सितम्बर 2016 से शुरू होकर काम ख़त्म होने की तय सीमा 14 दिसंबर 2017 थी , जबकि काम अक्टूबर 2018 के प्रथम सप्ताह में ख़त्म हुआ , उत्तराखंड में होने वाले इन्वेस्टमेंट समिट के कारण एप्रोच मार्ग को अक्टूबर 2018 के प्रथम सप्ताह में ही जनता के लिए खोल दिया गया। कॉन्ट्रैक्ट के मुताबिक कार्य पूर्ण होने के बाद भी मैसर्स दून एसोसिएट्स को अगले डेढ़ साल तक एप्रोच मार्ग की देखभाल करनी थी मैसर्स दून एसोसिएट्स का मेनटिनैंस का समय 9 अप्रैल 2020 जो खत्म हो चुका है, और एप्रोच मार्ग जून 2021 में टूटा। इस दौरान शैलेन्द्र मिश्र वहां पर तत्कालीन अधिशासी अभियन्ता थे। गौरतलब है कि शैलेन्द्र मिश्र को इसी दौरान भूपाल पानी में बने एक पुल की दीवार ढह जाने के आरोप में निलंबित कर दिया गया था।
जीत सिंह के खिलाफ कारवाही क्योँ ?
जिस दौरान बड़ासी पुल के प्रोच मार्ग का ठेका दिया गया यानि 15 सितम्बर 2016 से लेकर 14 दिसंबर 2017 , व उसके बाद निर्माण में कुछ अतरिक्त समय लगा यानि सितम्बर 2018 तक , उस दौरान जीत सिंह रावत PMGSY लोक निर्माण बिभाग कीर्तिनगर में थे। जिसके बाद उनका ट्रांसफर 15 अक्टूबर 2018 को रा. मा. खंड रुड़की कर दिया गया , उन्होंने 17 अक्तूबर 2018 को कार्यभार ग्रहण किया था, जबकि पुल का निर्माण रायपुर में होने वाली इनवेस्टर समिट से पूर्व ही 10 अक्तूबर को पूरा हो गया था। रावत ने अधिशासी अभियंता के रूप में पुल का कोई भी कार्य नहीं कराया। मैसर्स दून एसोसिएट्स का मेनटिनैंस का समय 9 अप्रैल 2020 जो खत्म हो चुका है और एप्रोच मार्ग जून 2021 में टूटा।
सचिव रमेश कुमार सुधांशु के पत्र में उन पर आरोप है कि उन्होंने एप्रोच मार्ग के निर्माण अपने दायित्व का सही प्रकार से निर्वहन नहीं किया।निलंबन की यह कार्रवाई मुख्य अभिंयता राष्ट्रीय राजमार्ग की प्राथमिक जांच रिपोर्ट के आधार पर की गई है। यहाँ सबसे बड़ा सवाल है कि जब प्रोजेक्ट के स्ट्रक्चरल ड्राइंग को बनाया गया तो उस समय इन बातों का ध्यान क्योँ नहीं दिया गया ? प्रोजेक्ट को जिस भी अभियंता ने पास किया उसे क्योँ नहीं पकड़ा गया ? सुधांसु जी क्या इस पर भी जवाबदेही बनती है या नहीं ?
मुख्य अभिंयता राष्ट्रीय राजमार्ग की प्राथमिक जांच रिपोर्ट पर सवाल ?
सवाल : इस कार्य के निर्माण में कंसलटेंट द्वारा प्रस्तुत स्ट्रक्चरल ड्राइंग सक्षम अधिकारी से बिना अनुमोदन के ही निर्माण करा दिया गया।
जवाब : जिस दौरान स्ट्रक्चरल ड्राइंग बनाई गई उस दौरान रावत कीर्तिनगर में थे, कौन था वो सक्षम अधिकारी , जिसने अनुमोदन किया ?
सवाल : निर्मित पहुंच मार्ग में बरसात के पानी की निकासी का कोई प्रबंध नहीं था।
जवाब : प्रोजेक्ट के स्ट्रक्चरल ड्राइंग में ही पानी के निकासी की पूरी ड्राइंग होनी चाहिए थी , तो रावत दोषी कैसे ?
मुख्यमंत्री के सामने वाहवाही लूटने के लिए विभाग के अधिशासी अभियंता जीत सिंह रावत व तत्कालीन अधिशासी अभियंता शैलेंद्र मिश्र व सहायक अभियंता अनिल कुमार चंदोला को तत्काल प्रभाव से निलंबित तो कर दिया गया है लेकिन सवाल रावत और अनिल कुमार चंदोला के निलंबन को लेकर हो रहे है, कि इनके खिलाफ कार्रवाई बिना विस्तृत तकनीकी जांच कराए की गई है। अनिल चंदोला ने उपलब्ध ड्राइंग व डिजाइन के अनुसार ही कार्य कराया है।
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