बारुद के ढेर पर बन रहे हैं शीशे के महल, प्रकृति दे रही संकेत, संभलो।

पर्यावरण दिवस: खतरे में मिट्टी, पानी और बयार
 पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा के बाद अब कौन करेगा हिमालय की पैरवी?
 बारुद के ढेर पर बन रहे हैं शीशे के महल, प्रकृति दे रही संकेत, संभलो।
पर्यावरणविद् पदमविभूषण सुंदरलाल बहुगुणा के निधन के साथ ही एक हिमयुग का अंत हो गया। अब हिमालय की बात कौन करेगा? कौन मिट्टी, पानी और बयार की बात करेगा? तथाकथित पर्यावरणविद् राजकीय पुरस्कार मिलते ही बिलों में घुस जाते हैं। वो गाहे-बगाहे सरकार के गीत गाने के लिए सार्वजनिक मंच पर आते हैं। उन्हें उनकी मंजिल यानी पुरस्कार मिल गया तो समझ रहे हैं कि अमरत्व मिल गया। केदारनाथ आपदा, ऋषिगंगा आपदा, ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेललाइन, चारधाम महामार्ग योजना, जौलीग्रांट एयरपोर्ट के लिए पेड़ों का कटान समेत जल, जंगल और जमीन पर नेताओं, अफसरों और ठेकेदारों में सांठ-गांठ है। आखिर हमारे जैसे हिमालयी राज्यों में विकास का क्या पैमाना है। पर्यावरण और प्रकृति की कीमत पर यह कैसा विकास? जबकि पहाड़ की मूलभूत समस्याएं यानी शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, पलायन यथावत हैं?
आज हिमालय में मिट्टी, पानी और बयार तीनों ही खतरे में है। विडम्बना है कि हमारे पास एक भी पर्यावरण का पैरोकार नहीं है। हमने टिहरी बांध से सबक नहीं सीखा और पंचेश्वर बांध बना रहे हैं। केदारनाथ की आपदा का सबक अभी अधूरा है तभी तो रैणी गांव के ठीक नीचे दो-दो बांध बन रहे हैं। प्रकृति अपना गुस्सा जता रही है। आए दिन बादल फट रहे हैं लेकिन हम इतने जिद्दी हैं कि प्रकृति से टकराने की कोई भी कसर नहीं छोड़ रहे हैं। तोताघाटी को विस्फोट से उड़ा दिया गया लेकिन हुआ क्या? आए दिन भूस्खलन से घाटी में आवागमन रुक गया है। वनागर््िन से ब्लैक कार्बन बना है और जलवायु परिवर्तन से ग्लेशियर पिघल रहे हैं। फरवरी माह में सुमना में जो एवलांच आया वो भी हमारे लिए सबक है।
इसके बावजूद कोई भी राजनीतिक दल पर्यावरण को चुनावों में मुद्दा नहीं बनाता। हां, पर्यावरण के नाम पर केंद्र से राज्य सरकार भारी-भरकम राशि हड़प लेते हैं और तुर्रा यह कि ग्रीन बोनस की बात करते हैं। श्रीदेव सुमन विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. पीपी ध्यानी विश्व के 100 नामी वैज्ञानिकों में शुमार हैं जो कि काॅप यानी कांफ्रेंस आफ पार्टीज में कई बार देश का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। काॅप कार्बन उत्सर्जन को कम करने की दिशा में काम कर रही है। डा. ध्यानी का कहना है कि हमें हिमालय को समझने के लिए पहले विज्ञान को समझना होगा। विज्ञान से हमने दूरी बना कर रखी है। यूसैक के डायरेक्टर डा. एमपीएस बिष्ट ने चेतावनी दी है कि इस बार मानसून में चमोली और रुद्रप्रयाग में भारी नुकसान होने की आशंका है। यानी प्रकृति संकेत दे रही है और हम उन संकेतों की अनदेखी कर रहे हैं। यही अनदेखी कहीं हमें भारी न पड़ जाएं। संभलें।

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