गुरु माणिकनाथ जी की साधना स्थली माणिकनाथ धाम डांडा, इस क्षेत्र में नहीं होती लहसुन और प्याज की खेती
गुरु माणिकनाथ जी की साधना स्थली माणिकनाथ धाम डांडा, इस क्षेत्र में नहीं होती लहसुन और प्याज की खेती
देहरादून। गुरु माणिकनाथ धाम टिहरी जिले के कोटी फैगुल में स्थित है। यह धाम कोटी गांव के शीर्ष पर स्थित पहाड़ी माणिकनाथ डांडा के नाम से जाना जाता है। माणिकनाथ जी का एक मंदिर कोटी गांव के मध्य में स्थित चैतरा (खोली) नामक पवित्र जगह पर स्थित है, मदिर में बारह मास प्रातःकाल और संध्याकाल के समय में गुरु माणिकनाथ भजन कीर्तन का अमृत सुनने को मिलता है और भक्त धन्य हो जाते हैं।
इस मंदिर में हर महीने की संक्रांति के दिन यहां पर पूजा-अर्चना की जाती है और ज्येष्ठ महीने में पंडितों द्वारा एक शुभ मुहूर्त निकाला जाता है और श्री गुरु माणिकनाथ जी अपने भक्तों के साथ कोटी गांव श्री घंटाकर्ण देवता (घंडियाल धार कोटी ) के पवित्र मंदिर में जाकर फिर घंटाकर्ण देवता को साथ में लेकर अपने पवित्र धाम श्री गुरु माणिकनाथ धाम डांडा के लिए प्रस्थान करते हैं। चैंरी कुलैं होकर देवता अपने धाम तक पहुंचते हैं जहां देवता की प्रचीन गुफा है और श्री गुरु माणिकनाथ जी की साधना स्थली है। वहां पहुंचकर भक्तों द्वारा पूजा-अर्चना की जाती है और देव पुरोहित द्वारा श्री गुरु माणिकनाथ जी की राशि के अनुसार एक शुभ मुहूर्त निकाला जाता है जो मुहूर्त पूरे कोटी, पाली, स्यालकुंड की रोपाई का लग्न कहलाता है। श्री गुरु माणिकनाथ धाम की इस पवित्र भूमि पर जो भी कार्य किए जाते हैं सभी श्री गुरु माणिकनाथ जी अनुसार ही किया जाता है। इसी वजह से इस पूरे पवित्र क्षेत्र में लहसुन और प्याज की खेती नहीं होती है और न ही की जाती है। श्री गुरु माणिकनाथ धाम में जाने से 3-4 दिन पूर्व से ही भक्तों को खुद को सात्विक रखना पड़ता है। श्री गुरु माणिकनाथ धाम मंदिर में सिर्फ फूल और जितना जिस भक्त की इच्छानुसार देवता के लिए दान होता है चढ़ावा चढाया जाता है। इस मंदिर नारियल जैसी वस्तुएं नहीं चढाई जाती हैं। यह सब कार्यक्रम समाप्ति के बाद श्री गुरु माणिकनाथ जी और घंटाकर्ण देवता के साथ अपने अग्वानी वीर श्री नादबूद भैरों देवता से भेंट करने के बाद अपने ग्रामीण मंदिर पहुंचते हैं।
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