उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में ‘भगतदा’ पर बड़ा दांव खेल सकती है भाजपा
उत्तराखंड विधानसभा चुनाव:
उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में ‘भगतदा’ पर बड़ा दांव खेल सकती है भाजपा
सोशल मीडिया में चल रही चर्चाओं के मुताबिक कोश्यारी को भाजपा नेतृत्व उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव संचालन समिति की बागडोर सौंप सकता है.
देहरादून: उत्तराखंड में चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहे हैं वैसे-वैसे सभी पार्टियां चुनाव की तैयारियां कर रही हैं। अगले साल होने वाले चुनावों को देखते हुए सत्ताधारी बीजेपी और कांग्रेस में उठापटक शुरू हो गई है। वहीं बीजेपी के सूत्रों की मानें तो चुनाव से पहले उत्तराखंड की राजनीति में एक बार फिर से भगत सिंह कोश्यारी बीजेपी के चुनाव अभियान की कमान संभाल सकते है । सोशल मीडिया में चल रही चर्चाओं के मुताबिक कोश्यारी को भाजपा नेतृत्व उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव संचालन समिति की बागडोर सौंप सकता है। लेकिन वहीं इस मामले में पार्टी का कोई भी वरिष्ठ नेता खुलकर कुछ नहीं बोल रहे हैं आपको बता दें की कांग्रेस ने पूर्व मुख्यमंत्री व राष्ट्रीय महासचिव हरीश रावत को चुनाव अभियान संचालन समिति का अध्यक्ष बनाया है तो वहीं सूत्रों के मुताबिक पार्टी के अंदर भी इस बात को स्वीकार किया जा रहा है, कि हरीश रावत को टक्कर देने के लिए भगत सिंह कोश्यारी को वापस सक्रिय राजनीति में आना चाहिए आपको बता दें की बीते बुधवार को उत्तराखंड में दो राजनैतिक घटनाक्रम घटे जिसके बाद से सत्ता के गलियारों में भगत सिंह कोश्यारी की चर्चाएं तेज हो गयी हैं.
उत्तराखंड विधानसभा के चुनाव से पहले दो चिर प्रतिद्वंद्वी दल भाजपा और कांग्रेस के भीतर टिकटों के एलान से पहले दावेदारी को लेकर संघर्ष शुरू हो गया है। यह संघर्ष कुछ सीटों पर असंतोष तो कहीं बगावत की आहट भी दे रहा है। सियासी हलकों में यह चर्चा अब भी गर्मा रही है कि चुनाव आचार संहिता के एलान के साथ कुछ दिग्गज नेता पार्टी को बाय-बाय कर कांग्रेस में शामिल हो जाएंगे। उन नेताओं के नाम पिछले काफी समय से सत्ता के गलियारों में तैर रहे हैं।
इसके अलावा टिकटों के एलान से ठीक पहले भाजपा कब्जे वाली कुछ सीटों पर पार्टी विधायकों के खिलाफ कार्यकर्ताओं की नाराजगी खुलकर सामने आने लगी है। इस असंतोष पर पर्दा डालने की पार्टी का केंद्रीय व प्रांतीय नेतृत्व भरसक कोशिश कर रहा है। कांग्रेस छोड़कर भाजपा के टिकट पर विधायक बनें व दोबारा टिकट की दावेदारी कर रहे नेता पार्टी कार्यकर्ताओं की आंखों की किरकिरी बने हैं। वे पार्टी पर उनका टिकट काटे जाने का दबाव बना रहे हैं। टिकट न मिलने की दशा में वे संगठन को संकेत दे चुके हैं कि वे चुनाव मैदान में उतरेंगे।
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