बागपत का विनयपुर गांव हिंदू मुस्लिम भाईचारे की मिसाल फिर दाऊद त्यागी की पीट पीट कर हत्या क्यों?: ग्राउंड रिपोर्ट

हत्या

 

दो सितंबर, 2022 को रात के दस सवा दस बजे यूपी के बाग़पत ज़िले के विनयपुर गांव के दाऊद अली त्यागी अपने घर के बाहर आराम से चारपाई पर लेटे फ़ोन पर बात कर रहे थे.

मोहल्ले के ही नईम त्यागी और अकरम उनके पास ही बैठे बतिया रहे थे.

अचानक 6-7 बाइकें रुकी. हथियारबंद युवा उतरे और बिना कुछ कहे हमला शुरू कर दिया. अगले एक डेढ़ मिनट में उन पर फरसों, डंडों और साइकिल की चेनों से अनगिनत वार हुए. फ़ोन के साथ कान से लगा हाथ टूट गया. चारपाई ख़ून से लाल हो गई.

चश्मदीदों के मुताबिक, ‘हमलावर फ़ायरिंग करते हुए और जय श्री राम का नारा लगाते फ़रार हो गए.’ पीछे दरवाजे से ये दृश्य देख रही दाऊद की बेटी लुबना चीखते हुए पिता के पास दौड़ी.

बुरी तरह ज़ख्मी दाऊद के मुंह से एक शब्द ना निकला. परिजन उन्हें लेकर अस्पताल गए जहां अगले दिन उन्होंने दम तोड़ दिया.

घटना के डेढ़ महीने बाद भी लुबना उस रात की दहशत से नहीं निकल पाई हैं. उनके बूढ़े पिता को उनकी आंखों के सामने ही मार दिया गया था.

लुबना कहती हैं, “मेरे पापा फोन पर बात कर रहे थे. अचानक 6-7 बाइकें आईं. उन्होंने कुछ नहीं पूछा सीधे लठ बजाना शुरू कर दिया. अनगिनत डंडे मारे, सर पर फरसा मारा और भाग गए. मोटरसाइकिलें स्टार्ट ही खड़ीं थीं.”

“मैं चिल्ला रही थी कि मेरे पापा को बचाओ, पापा को बचाओ. ख़ून की फुहारे छूट रही थीं. वो कुछ नहीं बोले, अगले दिन उनकी मौत हो गई.”

भारत की संसद से चालीस किलोमीटर दूर, उत्तर प्रदेश के बाग़पत के विनयपुर गांव में हुई ये घटना ना मीडिया की सुर्खियां बनीं, ना इस पर किसी ने कोई विरोध दर्ज कराया और ना ही कहीं कोई बहस हुई.

‘हमारे अब्बा को बेवजह मार दिया’

लिंचिंग के मामलों में अभियुक्तों का पक्ष लेने वाले ये तर्क देते रहे हैं कि घटना किसी क्रिया की प्रतिक्रिया में हुई. लेकिन दाऊद अली अपने घर के बाहर आराम कर रहे थे. उनकी बेटी सवाल करती हैं कि हमारे बेग़ुनाह बाप को क्यों मारा गया?

लुबना कहती हैं, “मुझे नहीं पता कि उन्होंने हमला क्यों किया. हमारे अब्बा कि किसी से किसी तरह की दुश्मनी नहीं थी. वो तो घर से बाहर भी नहीं निकलते थे. ये हमला बिलकुल बेवजह हुआ है. कोई उनका गुनाह तो बताए. हम तो यही पूछ रहे हैं कि उन्हें क्यों मारा गया. एक सीधे-सादे आदमी के साथ ऐसा क्यों हुआ?”

बाग़पत पुलिस के मुताबिक हमलावरों की मृतक से ना किसी तरह की जान पहचान थी और ना ही कोई दुश्मनी.

पुलिस अधीक्षक नीरज कुमार जादौन बीबीसी से कहते हैं, “अभी तक की जांच में किसी तरह की जान पहचान या दुश्मनी का पता नहीं चला है.”

बेटे की पढ़ाई पर असर

दाऊद एक छोटे किसान थे और उनके तीनों बेटे दिल्ली में रहकर पढ़ाई करते हैं. जब उन पर हमला हुआ तो उनके बेटे शाहरुख़ दिल्ली में ही थे.

सिविल सेवा की तैयारी कर रहे शाहरुख़ इस हमले के बाद से ही घर पर हैं और सदमे में हैं.

शाहरुख़ कहते हैं, “इस घटना ने मेरी पूरी ज़िंदगी बदल कर रख दी है. अब मैं किताबों के पास भी नहीं जा पा रहा हूं. मेरी दिमाग़ी हालत भी ठीक नहीं है. करियर एक तरफ़ है और दूसरी तरफ़ पिता को इंसाफ़ दिलाने की चुनौती है. अब परिवार की ज़िम्मेदारी भी मुझ पर ही है.”

शाहरुख़ कहते हैं, “जिन लोगों ने ये हमला किया है उनसे भी ख़तरा है. अब मैं पहले की तरह आज़ादी से बाहर नहीं निकल पाऊंगा.”

शाहरुख़ का दावा है कि कुछ दिन पहले जब उनका छोटा भाई और रिश्ते के चाचा खेत पर काम करने गए थे तब अभियुक्तों के गांव के लोगों ने उन्हें घेरने की कोशिश की.

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टल गया दंगा

हिंदू युवाओं की भीड़ के हाथों एक मुसलमान बुजुर्ग की हत्या की इस घटना के बाद इलाके में तनाव पैदा हो गया था.

शाहरुख़ कहते हैं, “जब मैं गांव पहुंचा तो माहौल बहुत ख़राब था. मेरे पास बहुत लोगों ने फ़ोन किया और कहा कि हाईवे पर शव रखकर प्रोटेस्ट करते हैं. लेकिन मैं माहौल की गंभीरता को समझ रहा था. अगर हम प्रोटेस्ट करते या विरोध में कुछ करते तो बड़ी घटना घट सकती थी. दंगा भी हो सकता था.”

शाहरुख़ कहते हैं, “प्रशासनिक अधिकारी मेरे संपर्क में थे. पुलिस ने हमें जांच करके अभियुक्तों को गिरफ़्तार करने और हमारी मांगें मानने का भरोसा दिया. मुझे यही सही लगा कि बॉडी का पोस्टमार्टम कराके शांति से अंतिम संस्कार करा दिया जाएगा. माहौल को ख़राब ना करते हुए हमने यही किया.”

स्थानीय पुलिस प्रशासन की तारीफ़ करते हुए शाहरुख़ कहते हैं, “पुलिस ने हमें तीन दिन के भीतर हत्यारों को पकड़ने का भरोसा दिया था. पुलिस ने दो दिन के भीतर चार अभियुक्तों को पकड़ लिया और तेरह अन्य की पहचान की.”

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शांतिप्रिय गांव में सदमे में लोग

विनयपुर मिश्रित आबादी का गांव हैं. यहां क़रीब पंद्रह सौ लोग रहते हैं जिनमें हिंदुओं और मुसलमानों की तादाद लगभग बराबर है. गांव में हिंदू अधिकतर गुर्जर हैं और मुसलमान अधिकतर मुसलमान त्यागी समाज से हैं.

राजधानी दिल्ली के क़रीब होने की वजह से विनयपुर आर्थिक रूप से संपन्न है. यहां शिक्षा की स्थिति बेहतर होने की वजह से सरकारी और निजी नौकरियों में भी लोग बड़ी संख्या में है.

शाहरुख़ कहते हैं, “इस तरह का माहौल हमने कभी देखा नहीं है. मैं, मेरे पिता, मेरे दादा, मेरे परदादा सभी यहीं रहे. हमारी कभी किसी से किसी तरह की कोई रंजिश नहीं रही. आज़ादी के समय और उससे पहले भी यहां कभी ऐसा कोई माहौल नहीं था. यहां के बच्चे पढ़ाई में ध्यान लगाते हैं और अपने भविष्य के बारे में सोचते हैं. “

90 साल के रिटायर्ड सीओ चौधरी धर्मचंद कहते हैं, “जब देश आज़ाद हुआ तब मैं छोटा था. तब इस गांव में मुसलमान थे और हिंदू भी थे. तब भी बाहर हिंदू-मुसलमानों के झगड़े हुए. ये बातें खूब चलीं. लेकिन तब भी इस गांव में लोग शांति और प्यार से ही रहे. अब से पहले कभी यहां इस तरह की कोई भी घटना नहीं हुई है.”

विनयपुर के रहने वाले प्रताप सिंह को लगता है कि हमलावरों का मक़सद हिंदुओं और मुसलमानों के बीच नफ़रत फैलाना था.

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