जरूरत पड़ी तो ज्योतिर्मठ को भी कराया जाएगा विस्थापित, तीखे सवालों पर पढ़ें आपदा सचिव के जवाब
सामारिक लिहाज से अति महत्वपूर्ण व चर्चित हेलंग-मारवाड़ी बाईपास पर काम आगे बढ़ेगा या नहीं ये एक हफ्ते में पता चल जाएगा। राज्य सरकार व सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) ने आईआईटी रुड़की को जांच कर सात दिन के भीतर रिपोर्ट देने को कहा है।
जोशीमठ के अस्तित्व को लेकर कई तरह के सवाल और शंकाएं हैं। सरकार उन्हें शांत करने की कोशिश कर रही है, लेकिन संतोषजनक जवाब अभी उसके पास भी नहीं है। इसके लिए वैज्ञानिक संस्थाओं की रिपोर्ट का इंतजार है। ऐसे में पूरे मामले को लीड कर रहे सचिव आपदा प्रबधंन डॉ. रंजित सिन्हा से हमारे वरिष्ठ संवाददाता विनोद मुसान ने विभिन्न पहलुओं पर बातचीत की। पेश हैं कुछ प्रमुख अंश-
प्रश्न: 14 महीने से विरोध हो रहा था। स्थानीय लोग चेतावनी दे रहे थे। अब जब मुसीबत सिर पर आ खड़ी हुई है, तब आपदा प्रबंधन जागा?
-बीते साल जून-जुलाई में इस समस्या के साथ स्थानीय लोग मुझसे मिलने आए थे। मैंने तत्काल शासन के वरिष्ठ अधिकारियों और वैज्ञानिकों की एक टीम बनाकर अगस्त में उन्हें जोशीमठ भेजा। सितंबर में रिपोर्ट मिल गई थी। टीम ने जोशीमठ में ड्रेनेज प्लान, सीवरेज सिस्टम, निर्माण की गाइड लाइन को बदलने जैसी संस्तुतियां दी थीं जिस पर हमने काम शुरू कर दिया था।
प्रश्न- लेकिन वह काम जमीन पर तो कहीं नहीं दिखा?
– ये बड़ा काम है। इसमें वक्त लगता है। सीवरेज सिस्टम के लिए नमामि गंगे के साथ मिलकर कार्ययोजना बनाई गई। पेयजल विभाग को लाइन बिछाने और घरों को जोड़ने के निर्देश दिए गए थे। डीपीआर बनाने के साथ ही टेंडर की प्रक्रिया भी शुरू हो गई थी। अलकनंदा के तट पर टो-इरोजन के लिए भी डीपीआर बनाने का काम शुरू किया गया। इसके बाद 2 जनवरी को भू-धंसाव की समस्या अचानक से बड़े स्वरूप में सामने आ गई। इसके बाद हमारी प्राथमिकताएं बदल गईं।
प्रश्न- वह डीपीआर आज तक नहीं बनी?
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