कभी खंडहर बन चुका था देहरादून का यह सरकारी स्कूल, प्र‍िंस‍िपल की जिद से चमकी सूरत,

देहरादून: देहरादून से 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित नयागांव पैलियो में एक अध्यापक ने कारनामा कर दिखाया है. दरअसल अध्यापक का नाम दुर्गा प्रसाद तिवारी है और यह उत्तराखंड के जोशीमठ सरस्वती शिशु मंदिर से राजधानी देहरादून एक विशेष जिम्मेदारी के साथ आए. जिम्मेदारी थी 5 सालों से बंद पड़े एक स्कूल को पुनः शुरू करने की. इन 5 सालों में स्कूल पूर्ण रूप से खंडहर में तब्दील हो चुका था, लेकिन दुर्गा प्रसाद तिवारी ने नयागांव पैलियो के सरस्वती शिशु मंदिर को अपने बलबूते पर एक बार फिर से शुरू कर दिया और आज इस स्कूल की दीवारें भी बच्चों को शिक्षा दे रही हैं. जी हां बिल्कुल सही सुना आपने. इस विद्यालय के प्रधानाचार्य दुर्गा प्रसाद तिवारी ने यहां की क्लास रूम की दीवारों को मैग्नेटिक दीवारों में बदल दिया है. इन दीवारों पर अंदर से स्टील की परत लगाई गई हैं. साथ ही स्टील की परत के ऊपर अंतरिक्ष और समुंद्र व महाद्वीपों जैसे बड़े फ्लेक्स लगाए गए हैं. यह दीवारें दिखने में तो सुंदर हैं ही साथ ही बच्चों को क्रिएटिव तरीके से ज्ञान भी देती हैं. बच्चे मैग्नेट की मदद से मैप पर मैग्नेट चिपकाकर किसी भी लोकेशन या बिंदु को दर्शाते हैं.

प्रधानाचार्य दुर्गा प्रसाद तिवारी बताते हैं कि सरस्वती शिशु मंदिर नया गांव पैलियो की स्थापना 1997 में हुई थी. समाज में संस्कारी शिक्षा के उद्देश्य से स्कूल का संचालन किया गया था. 2012 में विद्यालय को बहुत सी चीजों का अभाव होने लगा जिसके चलते विद्यालय को पूर्ण रुप से बंद कर दिया गया था. करीब 5 साल विद्यालय बंद रहने की वजह से भवन और प्रांगण की हालत बदतर हो चुकी थी. इन 5 सालों में शिक्षा का आंगन खंडहर में तब्दील हो चुका था.
2017 में प्रधानाचार्य दुर्गा प्रसाद ने फिर शुरू किया स्कूल
लोकल 18 से अपनी बातचीत में प्रधानाचार्य दुर्गा प्रसाद ने बताया कि 2017 में विद्यालय को दोबारा शुरू करने के लिए उन्हें बहुत ज्यादा मेहनत करनी पड़ी है. सबसे बड़ी चुनौती खंडहर में तब्दील हो चुके स्कूल को पुनः साफ सुथरा और शिक्षा योग्य बनाने की थी. जिसको उन्होंने विद्यालय हितेषी संस्था और लोगों के सहयोग से पूरा किया. स्कूल का भवन और प्रांगण दुरुस्त होने के बाद बच्चों को विद्यालय तक लेकर आने के लिए उन्हें गांव-गांव घर-घर जाकर लोगों से बातचीत करनी पड़ी और लोगों से अपने बच्चों को विद्यालय बेचने का अनुरोध किया. साथ ही बताया कि इसके बाद जनसंपर्क अभियान भी चलाए. विद्यालय भवन में कई धार्मिक कार्यक्रम भी करवाए, ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग विद्यालय से अवगत हो सकें और अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा के लिए विद्यालय भेजें.

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