नैनीताल के नंदा देवी मेले को एक राजकीय मेले का स्थान मिला है, जानिए इसके पीछे का खास कारण।

बिहार के मंत्री

नैनीताल के प्रसिद्ध नंदा देवी मेले को राजकीय मेले का दर्जा दे दिया गया है। लोक निर्माण, पर्यटन व पंचायतीराज मंत्री सतपाल महाराज ने इसकी घोषणा की है।

नैनीताल के नंदा देवी मेले को राजकीय मेले का मान प्राप्त हुआ।

नैनीताल के नंदा देवी मेले को एक राजकीय मेला के रूप में घोषित कर दिया गया है। कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज ने यह घोषणा की है और इसके प्रभावी प्रमोशन का ऐलान किया है। वे मेले को और भी आकर्षक बनाने के लिए कठिन प्रयास करेंगे। उन्होंने जिले को 14 करोड़ 77 लाख की 10 विकास योजनाओं की भी घोषणा की है। इस घोषणा से पहले ही मांगें थी कि नैनीताल के नंदा देवी मेले को एक राजकीय मेला के रूप में मान्यता प्राप्त करें।

16 वीं शताब्दी से शुरू हुआ नंदा देवी के मेले का आयोजन

माना जाता है कि मेले का आयोजन 16 वीं शताब्दी में राजा कल्याण चंद के शासनकाल में कुमाऊं क्षेत्र में हुआ था। इसके बाद से लेकर अब तक, पूरे कुमाऊं क्षेत्र में नंदा देवी मंदिरों में मेले का आयोजन होता है। इस मेले का आयोजन एक सप्ताह तक किया जाता है।

माना जाता है कि नैनीताल में होने वाला नंदा देवी मेला अल्मोड़ा से ही आया है। इसका कारण है कि अल्मोड़ा से नैनीताल आकर बसे लोगों ने ही यहां पर मेले का आयोजन शुरू किया था। नैनीताल के नंदा देवी महोत्सव के बारे में कहा जाता है कि 1903 में यहां पर मोतीराम साह ने नन्दाष्टमी के मौके पर एक भव्य महोत्सव का आयोजन शुरू करवाया था। इसलिए, अल्मोड़ा के नंदा देवी महोत्सव और नैनीताल के नंदा देवी महोत्सव में कई समानताएं हैं।

ऐसे मनाया जाता है नंदा देवी महोत्सव

नंदा देवी को पूरे कुमाऊं की कुल देवी माना जाता है। जिस कारण पूरे कुमाऊं में नंदा देवी महोत्सव धूमधाम से मनाया जाता है। इस मेले की शुरूआत गणेश पूजन के साथ होती है इसके साथ ही एक दल ढोल बाजों के साथ कदली वृक्ष लेने के लिए निकलता है और कदली वृक्ष का चयन किया जाता है।

दूसरे दिन धूमधाम से कदली वृक्ष (केले का पेड़) लाया जाता है। जिसके बाद षष्ठमी के दिन इसके तनों की पूजा अर्चना के बाद इस से मां नंदा और सुनंदा की मूर्तियां बनाई जाती हैं। अष्टमी को वस्त्र पहनाकर और श्रृंगार कर इन मूर्तियों को मंदिर में स्थापित कर प्राण प्रतिष्ठा की जाती है।

स्थापना के बाद, मां की भक्तों द्वारा स्तुति की जाती है। नवमी के दिन, कन्याकुमारियों की पूजा की जाती है। दशमी के दिन, पूरे शहर में माँ नंदा के डोले के साथ एक महत्वपूर्ण शोभायात्रा निकाली जाती है, जिसके बाद इसका विसर्जन किया जाता है।

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