Germany Gas Crisis: जर्मनी पर मंडरा रहा है ‘डी-इंस्ट्रलियलाइज’ हो जाने का खतरा

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Germany Gas Crisis: यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से जर्मनी रूस के खिलाफ सबसे सख्त रुख अपनाने वाले देशों में रहा है। उसने रूस पर कई तरह के प्रतिबंध लगाए हैँ, जबकि जर्मनी रूसी प्राकृतिक गैस पर सबसे ज्यादा निर्भर देशों में एक था। जवाबी कार्रवाई में रूस ने जर्मनी के लिए गैस सप्लाई काफी घटा दी है l

प्राकृतिक गैस की कमी के कारण जर्मनी के उद्योगों का संकट बढ़ता जा रहा है। जर्मनी यूरोप की सबसे बड़ी और दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। लेकिन अब मांग के अनुरूप उत्पादन न कर पाने के कारण जर्मनी का निर्यात खतरे में पड़ गया है। विशेषज्ञों के मुताबिक इसी समय पर चीन की अर्थव्यवस्था में गिरावट से भी जर्मनी के निर्यातक मुश्किल में हैं। पिछले साल चीन ने जर्मनी से 101 बिलियन डॉलर की वस्तुओं का आयात किया था। उनमें कारें, मेडिकल उपकरण और ऊर्जा उत्पादन से जुड़े उपकरण शामिल थे। लेकिन इस वर्ष इस जर्मनी के इस निर्यात में गिरावट आने की संभावना है।

जानकारों के मुताबिक निर्यात गिरने का जर्मन उद्योग जगत पर मारक असर होगा। यहां तक कि उसके ‘डी-इंस्ट्रलियलाइज’ हो जाने (उद्योगों के अर्थव्यवस्था का मुख्य घटक ना रहने) की आशंका जताई जा रही है। ऐसी चर्चा के कारण इस साल जर्मनी की बड़ी कंपनियों के शेयरों के भाव में अब तक 27 फीसदी की गिरावट आ चुकी है। जर्मनी के उद्योग संघ- बीडीआई के प्रमुख सिगफ्रीड रुसवूर्म ने कहा है- ‘हमारे उद्योग का मुख्य आधार खतरे में है।’

ब्रिटिश पत्रिका द इकोनॉमिस्ट के एक विश्लेषण के मुताबिक जर्मन उद्योग की सबसे बड़ी समस्या ऊर्जा की बढ़ रही महंगाई है। अगले साल के बिजली की वायदा कीमत में 15 गुना बढ़ोतरी हो चुकी है। गैस फिलहाल दस गुना महंगी मिल रही है। जुलाई महीने में एक साल पहले की तुलना में जर्मनी के उद्योगों में गैस की खपत 21 फीसदी कम रही। इसका बहुत खराब असर उत्पादन पर पड़ा। थिंक टैंक कियेल इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल इकोनॉमी ने जर्मनी की जीडीपी वृद्धि दर में 0.7 से लेकर 1.4 फीसदी तक गिरावट की भविष्यवाणी की है। उसने कहा है कि 2023 में जर्मनी की अर्थव्यवस्था मंदी का शिकार हो जाएगी, जबकि इस वर्ष यहां मुद्रास्फीति दर 8.7 फीसदी रहेगी।

यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से जर्मनी रूस के खिलाफ सबसे सख्त रुख अपनाने वाले देशों में रहा है। उसने रूस पर कई तरह के प्रतिबंध लगाए हैँ, जबकि जर्मनी रूसी प्राकृतिक गैस पर सबसे ज्यादा निर्भर देशों में एक था। जवाबी कार्रवाई में रूस ने जर्मनी के लिए गैस सप्लाई काफी घटा दी है। उसने कहा है कि अगर पश्चिमी देशों ने उसकी गैस की कीमत पर सीमा लगाने की कोशिश की, तो वह गैस सप्लाई पूरी तरह रोक देगा। रूस की इस चेतावनी के बाद से जर्मनी में अफरातफरी का माहौल है। इसके बीच आबादी के कई हलकों से रूस के खिलाफ जर्मन सरकार के सख्त रुख की आलोचना होने लगी है।

कंसल्टैंसी फर्म एफटीआई आंद्रेश्च की एक रिपोर्ट के मुताबिक छोटी कंपनियों की मुश्किलें ज्यादा बढ़ी हैं। एक हजार से कम कर्मचारियों वाली कंपनियों ने उससे बड़ी कंपनियों के तुलना में 11 फीसदी अधिक ऑर्डर ठुकराए हैं। एक बीडीआई के एक हालिया सर्वे में सामने आया कि छह मझौली कंपनियों में 60 फीसदी में लागत महंगाई के कारण उत्पादन पर खराब असर पड़ा है।

द इकोनॉमिस्ट ने अपनी रिपोर्ट में जिक्र किया है कि दूसरे विश्व युद्ध के दौरान अमेरिका के वित्त मंत्री हेनरी मोर्गेनथाउ ने हिटलर की पराजय के बाद जर्मनी के उद्योगों को नष्ट कर उसे कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था में तब्दील कर देने का सुझाव दिया था। युद्ध में जर्मनी और अमेरिका अलग-अलग खेमों में थे। द इकोनॉमिस्ट ने कहा है कि उस योजना पर तो कभी अमल नहीं हुआ, लेकिन 80 साल बाद मुमकिन है कि रूसी राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन जर्मनी की ऐसी दुर्गति करने में कामयाब हो जाएं।

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