ऋषिगंगा कृतिम झील से साइफोनिक एक्शन से पानी निकलना रहेगा सुरक्षित

ऋषिगंगा कृतिम झील से साइफोनिक एक्शन से पानी निकलना रहेगा सुरक्षित

रुड़की: भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) रुड़की के वैज्ञानिकों ने चमोली जिले में ऋषिगंगा नदी पर बनी कृत्रिम झील से साइफोनिक एक्शन (तकनीक) से पानी निकालने की सलाह दी है। वैज्ञानिकों का तर्क है कि अभी जिस चैनल (झील का मुहाना) के माध्यम से पानी का रिसाव हो रहा है उसको एक सीमा तक ही गहरा किया जा सकता है। ऐसे में साइफोनिक एक्शन ही कृत्रिम झील से पानी निकालने के लिए सुरक्षित तरीका रहेगा। साइफोनिक एक्शन वह तकनीक होती है जिससे पानी की निकासी पाइप के माध्यम से की जाती है।

चमोली जिले में ग्लेशियर टूटने से सात फरवरी को आसपास की नदियों में उफान आ गया था। इससे जान-माल का काफी नुकसान हुआ था। तपोवन के ऊपरी इलाके रैणी में हिमस्खलन के बाद ऋषिगंगा नदी के मुहाने पर कृत्रिम झील बन गई थी। गृह मंत्रालय की ओर से रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) ने ऋषिगंगा में बनी कृत्रिम झील से पानी निकालने को लेकर आइआइटी रुड़की के वैज्ञानिकों से संपर्क साधा था। इसके बाद संस्थान के सिविल इंजीनियङ्क्षरग विभाग के प्रो. जुल्फिकार अहमद के नेतृत्व में तीन सदस्यीय टीम ने ऋषिगंगा के मुहाने पर बनी झील का हेली सर्वे किया था। आइआइटी रुड़की के प्रो. जुल्फिकार अहमद ने बताया कि हालांकि करीब दस मीटर चौड़े चैनल के माध्यम से ऋषिगंगा पर बनी झील से पानी का रिसाव हो रहा है। लेकिन, जिस चैनल से पानी निकल रहा है उससे और ज्यादा पानी निकले, इसके लिए उसे और गहरा करना उचित नहीं है। यदि इसे और गहरा किया जाएगा तो इसके अस्थिर होकर ढहने की संभावना रहेगी। इसलिए इस चैनल को एक हद तक ही गहरा किया जा सकता है। ऐसे में साइफोनिक एक्शन से झील से पानी निकालना सुरक्षित रहेगा।

डा. अहमद ने बताया कि ऋषिगंगा पर बनी कृत्रिम झील का सर्वे करने के बाद और डीआरडीओ से प्राप्त आंकड़ों के आधार पर रिपोर्ट तैयार डीआरडीओ को भेज दी गई है। साथ ही साइफोनिक एक्शन के डिजाइन की रिपोर्ट भी डीआरडीओ को जल्द बनाकर भेजी जाएगी। यदि प्रस्ताव को अनुमति मिलती है तो फिर इसका डिजाइन आइआइटी रुड़की में तैयार किया जाएगा। बताया कि साइफोनिक एक्शन में पाइप (पीवीसी व रबड़ पाइप) को झील की सतह पर डाला जाएगा। साइफोनिक एक्शन में स्वत: ही पाइप के माध्यम से पानी निकलता है।

प्रो. अहमद के अनुसार झील से पानी निकालने के लिए करीब 500 मीटर लंबे पाइप की जरूरत होगी। उनके अनुसार ऋषिगंगा में बनी झील करीब 550 मीटर लंबी और अधिकतम 46 मीटर गहरी हो सकती है। उनके अनुसार इसमें लगभग 0.8 (दशमलव 8) मिलियन मीटर क्यूबिक पानी है। उन्होंने बताया कि सर्वे टीम में  संस्थान के सिविल इंजीनियङ्क्षरग विभाग के प्रो. नरेंद्र कुमार समाधिया और सिविल इंजीनियङ्क्षरग विभाग से ही सेवानिवृत्त प्रो. एन विलादकर शामिल हैं।

Share this content:

देश/दुनिया की खबरें