प्राइमरी टीचर के एक इनोवेशन से बची हैदराबाद की 9 झीलें
प्राइमरी टीचर के एक इनोवेशन से बची हैदराबाद की 9 झीलें
आंध्र प्रदेश का पोचमपल्ली गाँव साड़ियों के लिए काफ़ी प्रसिद्ध है। यहाँ से सिर्फ़ एक किलोमीटर की दूरी पर स्थित है मुक्तापुर गाँव। मछली पकड़ना इस गाँव के लोगों का मुख्य पेशा है। स्थानीय तालाबों से यहाँ के मछुआरे मछलियाँ पकड़कर बेचते हैं और अपना घर चलाते हैं।
लेकिन इन तालाबों में बरसात के मौसम में उग आने वाले खर-पतवार से यहाँ के मछुआरे काफी परेशान थे। ये खर-पतवार इतनी तेजी से बढ़ते कि दो-तीन दिन में ही पूरे तालाब को ढक लेते थे। इसके चलते मछलियों तक न तो सूर्य की रोशनी पहुँच पाती और न ही उन्हें पर्याप्त ऑक्सीजन मिल पाता। खर-पतवार हटाने के लिए इन मछुआरों को साल के 3 महीने लगातार तालाब की साफ़-सफाई करनी पड़ती।
उन्होंने एक ऐसी मशीन का प्रोटोटाइप तैयार किया, जिससे खर-पतवार को न सिर्फ़ बाहर निकाला जा सकता था, बल्कि उसे छोटे-छोटे टुकड़ों में काटा भी जा सकता था, ताकि वह दोबारा न उग आए। एक मछुआरे का इस तरह मशीन बना देना शायद आश्चर्य की बात लगे, लेकिन नरसिम्हा की रुचि शुरू से ही इनोवेशन में थी।
सबसे पहले ‘कटिंग मशीन’ बनाई, जिसकी मदद से वे चाहते थे कि तालाब में ही खर-पतवार को काटा जा सके। लेकिन यह मशीन तालाब के बाहर ही कामयाब थी। पानी में इसके ब्लेड काम नहीं कर पा रहे थे। ऐसे में, उन्होंने तय किया कि एक और मशीन बनानी होगी जो खर-पतवार को बाहर भी निकाले। लेकिन फिर वही पैसों की समस्या आ खड़ी हुई।
इस बार तो गाँव के लोगों ने भी उनका सहयोग करने से मना कर दिया, क्योंकि उन्हें लगा कि उनका पैसा बर्बाद हुआ है। ऐसे में, उन्होंने इधर-उधर से पैसे इकट्ठे करने की कोशिश की और आखिरकार उनके एक रिश्तेदार ने उन्हें 30,000 रुपए का कर्ज दिया। इससे उन्होंने लिफ्टिंग मशीन तैयार की।
वह बताते हैं, “मशीन तो तैयार थी और कामयाब भी, पर इसको अंतिम रूप देने के लिए 10, 000 रुपए की और ज़रूरत थी। इसके लिए मैं आस-पास के गाँवों में गया और वहाँ के लोगों को बताया कि अगर वे कुछ पैसे दें, तो मैं उनके गाँव के तालाब भी साफ़ कर दूंगा। पूरे इलाके में यह समस्या थी। इस तरह मैंने 10, 000 रुपए का जुगाड़ कर लिया।”
60, 000 रुपए की लागत से उन्होंने यह मशीन बनाई जो कामयाब रही। उन्होंने अपने गाँव के साथ-साथ दूसरे गाँवों के तालाबों को भी साफ़ किया। उनके बारे में जब स्थानीय अखबार में खबर आई, तो ‘पल्ले सृजना’ नामक एक संगठन ने उनसे संपर्क किया। यह संगठन नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन की ही एक इकाई है, जो ग्रामीण और ज़मीनी स्तर पर होने वाले इनोवेशन को सपोर्ट करती है।
‘पल्ले सृजना’ की मदद से नरसिम्हा को अपना यह इनोवेशन राष्ट्रीय मंच पर दिखाने का मौका मिला। इसके बाद, हैदराबाद नगर निगम ने उन्हें हैदराबाद के कई तालाब और झीलों की साफ़-सफाई का कार्यभार सौंपा। आर.के पुरम लेक, तौलीचौकी का तालाब सहित उन्होंने अब तक लगभग 8-9 झीलों की सफाई की है।
इसके अलावा, उनका इनोवेशन कार्य भी चलता रहा। उनके और उनकी मशीन के बारे में पढ़कर और भी कई लोगों ने उनसे संपर्क किया और मदद मांगी। नरसिम्हा ने बताया, “अब तक मैंने ओडिशा के एक पॉवर प्लांट के लिए मशीन बनाई है और किसानों के लिए कई मशीनें बनाई हैं। खर-पतवार हटाने की अपनी पहली मशीन में भी मैंने बहुत से बदलाव किए हैं। अब एक अच्छी क्वालिटी की मशीन की कुल लागत लगभग 30 लाख रुपए है। अगर इस तरह की मशीन आप विदेशी बाज़ारों से खरीदें तो लागत कम से कम 1 करोड़ रुपए पड़ेगी।”
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