विलुप्त हो चुकी काष्ठ कला को जौनसार क्षेत्र के युवा दे रहे नवजीवन
विलुप्त हो चुकी काष्ठ कला को जौनसार क्षेत्र के युवा दे रहे नवजीवन
देहरादून। पहाड़ की विलुप्त हो चुकी काष्ठ कला को जौनसार क्षेत्र के युवा नवजीवन दे रहे हैं। मंदिर से लेकर घरों और विभिन्न विभागों के भवनों में उत्तराखंड की संस्कृति को यह युवा अपने हाथों की कलाकारी से दर्शाने का कार्य कर रहे हैं। बाइला गांव चकराता निवासी अरुण खन्ना भी इन्हीं युवाओं में शामिल हैं। अरुण अब तक विभिन्न क्षेत्रों के मंदिरों में लकड़ी पर नक्काशी कर उत्तराखंडी संस्कृति से लोगों को जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं। इसके साथ ही वह अपने साथ तीन अन्य युवकों को भी रोजगार दिला रहे हैं।
24 वर्षीय अरुण खन्ना के स्कूली दौर से लेकर यहां तक की कहानी संघर्षों से भरी है। राजकीय इंटर कॉलेज डाकपत्थर से 12वीं के बाद अरुण ने वर्ष 2017 में डाकपत्थर डिग्री कालेज में बीए में एडमिशन लिया, लेकिन इस बीच उनके पिता का कैंसर के चलते निधन हो गया। मां के अलावा दो बहनों का इकलौते भाई अरुण पर घर की पूरी जिम्मेदारी आ चुकी थी। अरुण के पिता क्षेत्र के काष्ठ कला के कारीगर थे, लेकिन अरुण ने कभी भी नहीं सोचा था कि वह काष्ठ कला को आगे बढ़ाएंगे। अरुण बताते हैं कि पिता भी पिता के निधन के बाद आर्थिक स्थिति भी कुछ अच्छी नहीं रही। ऐसे में उन्होंने पढ़ाई के साथ काष्ठ कला का काम शुरू किया, जिसमें क्षेत्र के ही कारीगर गजेंद्र सिंह ने उनका पूरा साथ दिया। अब इसी काम में पूरा मन लग गया है, क्योंकि इससे व्यक्ति अपनी संस्कृति से जुड़ा रहता है और इस कला की मांग लगातार बढ़ रही है।
अब तक चालदा महासू मंदिर, बाइला गांव में शिव मंदिर के अलावा उत्तरकाशी, टिहरी और श्रीनगर गढ़वाल के कई घर और भवनों पर काष्ठ कला का कार्य कर चुके हैं। इनमें देवी देवताओं के अलावा फूल पत्ती और उत्तराखंडी संस्कृति से जुड़ती कलाकारी को लकड़ी पर दर्शाने का कार्य किया। इसके अलावा देहरादून के हरिद्वार बाइपास स्थित संस्कृति विभाग के ऑडिटोरियम में बने फसाड़ पर नक्काशी कर उत्तराखंड की संस्कृति को दर्शाने का कार्य किया।
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